क्या हम लोगों को क्षेत्रीय लकीरों पर बांट रहे हैं

punjabkesari.in Wednesday, May 12, 2021 - 04:59 AM (IST)

1947 से पहले भारत में अंग्रेजों को बाहर फैंको की गूंज सुनाई दी। राष्ट्रवाद के छिड़काव के साथ सभी लोगों ने भारत को एकजुट और धर्मनिरपेक्ष होने का प्रण लिया। 2021 में ‘मेरा भारत महान’ के द्वारा राज्यों में से बाहरी आम व्यक्ति को बाहर फैंकना चाहा। सभी संबंधित राज्यों ने ‘स्थानीय छाप’ होने का वायदा किया। 21वीं शताब्दी को देखते हुए भारत राजनीतिक दलदल में है जिसके तहत जाति+समुदाय+क्षेत्र= राजगद्दी है।  

विश्वास : उत्तर प्रदेश के मु यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र की वैक्सीनेशन नीति को अपने सिर पर ले लिया है। अपनी जगह के अनुसार राज्य में से कोई व्यक्ति कोरोना की खुराक ले सकता है। भगवा मु यमंत्री ने 18 से 44 वर्ष के राज्य के स्थानीय लोगों को टीकाकरण करने की ठानी है जो वैक्सीन के लिए अपना स्थानीय पता प्रस्तुत करेंगे। 

योगी का तर्क : राज्य सरकार ने अपने पैसे के दम पर निवेश कर अपने ही लोगों के लिए वैक्सीन को खरीदा है। इस कारण उत्तर प्रदेश के स्थानीय लोगों का टीकाकरण किया जाए। यह ‘बाहरी’ व्यक्तियों के लिए नहीं जिन्हें वैक्सीन की जरूरत है। रोजाना 100 खुराकों में से मात्र 5 स्थानीय लोगों का टीकाकरण होता है क्योंकि  25 से 50 प्रतिशत बाहरी लोग लाभार्थी होते हैं। 

इस बात ने उत्तर प्रदेश में क्षेत्रवाद के जिन्न को बाहर निकाला है। बाहरी निवासियों के बीच घबराहट है। मध्य प्रदेश से संबंधित एक नोएडा पेशेवर अब दिल्ली या फिर हरियाणा में वैक्सीन की तलाश कर रहा है क्योंकि उसके पास स्थानीय यू.पी. निवासी होने का पहचान पत्र नहीं है। ऐसी ही बात गाजियाबाद तथा मेरठ इत्यादि शहरों की भी है। 

तमिलनाडु में सभी आंखें राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के ऊपर लगी हैं जिन्होंने स्थानीय लोगों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण का वायदा चुनावों के दौरान किया था। सुप्रीमकोर्ट की संवैधानिक पीठ ने पिछले सप्ताह कोटे में 50 प्रतिशत की सीमा को लेकर शैक्षिक संस्थाओं में 13 प्रतिशत तथा सरकारी नौकरियों में 12 प्रतिशत आरक्षण देने के महाराष्ट्र के कानून को अलग कर दिया था।

सुप्रीमकोर्ट ने राज्य के उस तर्क को नहीं माना जिसमें कहा गया था कि 85 प्रतिशत मराठा आबादी पिछड़ी हुई है। मार्च में हरियाणा के राज्यपाल ने हरियाणा स्टेट इ प्लायमैंट आफ लोकल  कैंडिडेट्स बिल जिसके तहत स्थानीय उ मीदवारों के लिए प्राइवेट सैक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरंक्षण का प्रावधान है, को अपनी मंजूरी दे दी। 

कर्नाटक ने भी अपने निवासियों के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र हेतु ग्रुप-सी और डी (जो राज्य में 10 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं और जिन्होंने 10वीं कक्षा तक कन्नड़ पढ़ी है) के लिए नौकरियों हेतु आरक्षण देने का निर्णय किया है। कन्नड़ समर्थकों की यह मांग ल बे समय से चली आ रही थी। यह बात मुझे आश्चर्यचकित नहीं करती। आजादी के बाद भारत में वर्षों से क्षेत्रवाद एक सबसे प्रबल बात रही है। जहां पर राज्य बाहरी लोगों के विरुद्ध खड़े हुए हैं। यही बात क्षेत्रीय पाॢटयों के गठन का मूल आधार भी है। 

तेलगू लीडर पोट्टी श्री रामूलू ने मद्रास राज्य से अलग आंध्र प्रदेश राज्य के गठन की मांग को लेकर आमरण अनशन किया। जिसके नतीजे में आंध्र प्रदेश बना। 1966 में शिव सेना ने महाराष्ट्र में कन्नड़ लोगों के खिलाफ आंदोलन चलाया और इस तरह स्वयं ये मराठी मानस के लिए स्वयंभू चै िपयन बन गई। 1970 में फिर स्थानीय और आदिवासियों के आधार पर उत्तर-पूर्वी पुनर्गठन हुआ।

हमारे नेता लोग क्षेत्रीय कार्ड खेलते हैं। 1989 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने कांग्रेस के लखनऊ से उ मीदवार और ज मू-कश्मीर के पूर्व सदर-ए-रियासत को बाहरी करार दिया और अटल बिहारी वाजपेयी को भीतरी बताया। लखनऊ ग्वालियर से कई मील दूर है जोकि वाजपेयी जी का जन्म स्थान है। दिलचस्प बात यह है कि संघ ने एक बार फिर हिमाचल में वाजपेयी जी को स्थानीय होने के तौर पर पेश किया। 

इस तरह क्षेत्रवाद पाॢटयों में व्याप्त है और नेता लोग इसे अपना मंत्र मानते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री तथा किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने किसान आधारित जनता पार्टी बनाई और चौधरी देवी लाल ने हरियाणा में लोकदल बनाया। प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब में अकाली दल तो एन.टी. रामाराव ने आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम बनाया। बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस तथा उड़ीसा में नवीन पटनायक ने बीजद को लांच किया। सभी ने इस बात पर जोर दिया कि हम स्थानीय हैं और शासन करेंगे और दिल्ली बाहरी लोगों के लिए है। 

क्षेत्रवाद का एक अन्य रूप हमें कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के बीच बेलगांव को लेकर अंतर्राज्यीय सीमा विवाद के रूप में दिखाई पड़ता है। जहां पर मराठी भाषा के लोग कन्नड़वासियों के बीच घिरे हुए हैं। इसी तरह पंजाब तथा हरियाणा चंडीगढ़ को लेकर आपस में भिड़ते दिखाई देते हैं। जलस्रोतों की बात की जाए तो वहां भी हमें क्षेत्रवाद दिखाई पड़ता है। मध्य प्रदेश और गुजरात में नर्मदा को लेकर, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में कृष्णा को लेकर और तमिलनाडु तथा कर्नाटक के बीच कावेरी को लेकर विवाद चल रहा है। पंजाब तथा हिमाचल के बीच भी रावी को लेकर विवाद है। इसी तरह पंजाब और दिल्ली के बीच बिजली को लेकर विवाद है। 

सवाल यह है कि क्या क्षेत्रवाद हमारे दिलोदिमाग पर घर कर गया है। क्या हम लोगों को क्षेत्रीय लकीरों पर बांट रहे हैं। नि:संदेह भारतीय नागरिकों को देश भर में एक समान नौकरियों के मौके होने चाहिएं। समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब स्थानीय अपने हिस्से की मांग करते हैं। 

आर्टिकल 19 प्रत्येक नागरिक को यह मूल अधिकार देता है कि वह देश के किसी भी हिस्से में रह सकता है और घूम सकता है। सामाजिक न्याय और समान मौके केवल स्थानीय लोगों के लिए नहीं। क्या युवा पीढ़ी इस क्षेत्रवाद को स्वीकार करेगी। एक भारतीय नागरिक होने के नाते हमारे नेता प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का स मान करेंगे, हम बिहारी हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं।-पूनम आई.कोशिश
 


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