क्या वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं हमारे विश्वविद्यालय

punjabkesari.in Friday, Dec 02, 2022 - 06:21 AM (IST)

पिछले वर्ष करीब 8 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेशों की ओर गए। उन्होंने केवल अपनी ट्यूशन फीस के लिए ही 45000 करोड़ (वार्षिक) खर्च डाले। करीब 2 लाख भारतीय छात्रों ने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अमरीका का रुख किया। यह गिनती पिछले वर्ष की तुलना में 19 प्रतिशत अधिक थी। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2024 तक 18 लाख छात्र विदेश जाएंगे और ट्यूशन और रहन-सहन पर करीब 6.4 ट्रिलियन रुपए खर्च करेंगे। यह राशि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 2.7 प्रतिशत बनता है। 

वित्तीय और मानवीय पूंजी की यह भारत से सबसे बड़ी निकासी है। भारतीय संस्थान घरेलू स्तर पर टैलेंट को कायम रखने में असमर्थ हैं। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे विश्वविद्यालयों को और मजबूत करना पड़ेगा। इस मांग से निपटने के लिए भारतीय नीति निर्माता भारत में विदेशी यूनिवर्सिटियों को आमंत्रित करने पर विचार कर रहे हैं। क्या यह एक अच्छा विचार है? क्या इससे टैलेंट और पूंजी को वापस पाने में मदद मिलेगी? इसका घरेलू संस्थानों पर क्या प्रभाव पड़ेगा तथा इस प्रतिस्पर्धा को वे कैसे झेल पाएंगे? उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों के विदेशी रुख को देखते हुए भारत सरकार के पास उपलब्ध विकल्प सीमित हैं। अनिवार्य रूप से यह लगता है कि भारत अपने दरवाजे विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए खोल देगा। 

एक माह पहले एक पायलट प्रोजैक्ट के तहत भारत सरकार ने गुजरात में गिफ्ट सिटी में अपने कैंपस स्थापित करने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति दी। यह एक विशेष आर्थिक जोन है जहां पर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यू.जी.सी.) के नियम लागू नहीं होते। ऐसी विदेशी यूनिवर्सिटियां अपने कैंपस में से प्रॉफिट कमाने के लिए स्वतंत्र होंगी। इससे पहले कि भारत के अन्य राज्य अपने दरवाजे विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए खोलें, इस पर विचार करने की जरूरत है। ऐसा अभी देखना बाकी है कि किस तरह से विदेशी यूनिवर्सिटियां और घरेलू छात्र इस कदम पर प्रतिक्रिया देंगे। हालांकि हम एक न्यायोचित भविष्यवाणी कर सकते हैं। 

विदेशों की ओर छात्र प्राथमिक रूप से उच्च शिक्षा के लिए नहीं बल्कि वे वहां पर नौकरी तथा अन्य आव्रजन मौकों की तलाश भी करते हैं। शिक्षा पर खर्चे गए पैसे की वापसी भी पाना चाहते हैं। विदेशों में रोजगार पाकर वे अपने लोन चुकाते हैं। जब विदेशी यूनिवर्सिटियां भारतीय क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का प्रस्ताव रखेंगी तो छात्र तथा उनके परिवार वाले बिना किसी मौके और आव्रजन के ऊंची फीस क्यों देने के लिए तैयार होंगे? 

यूनिवर्सिटियों को अनेकों रास्ते वाले विकल्पों का प्रस्ताव देना पड़ेगा जो छात्रों को भारत में रहने तथा अपनी डिग्रियों को विदेशों में पूरा करने की अनुमति देंगे। इसके अतिरिक्त ऐसा भी देखना बाकी होगा कि क्या विदेशी यूनिवर्सिटियां भारत में अपने विभागों से आकर्षण पैदा करेंगी। बिजनैस स्कूल की बात करें तो छोटे कोर्सों के लिए यह आसान होगा जो बड़ी फीस चार्ज करते हैं, मगर अंडरग्रैजुएट कार्यक्रम के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा। 

मुख्य तौर पर भारत में यूनिवर्सिटियां ऊंची आय वाले छात्रों को लक्षित करती हैं। अब उन्हें एक नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा। हालांकि एक बार जब भारत में विदेशी यूनिवर्सिटियां अपने कैंपस स्थापित कर लेंगी तो उससे गुणवत्ता वाले विभाग तथा स्टाफ में बढ़ौतरी  होगी। यहां पर परोपकारी पूंजी के लिए अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा भी होगी। अपने अस्तित्व के लिए बाजारी ताकतें घरेलू यूनिवर्सिटियों को अपने आपको अलग दिखाने के लिए बाध्य करेंगी। मूल स्तर पर एकमात्र कारक यह होगा कि भारतीय विश्वविद्यालय भारत तथा उसकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझते हैं। यही उनका प्रमुख लाभ होगा। 

विश्व के लिए भारत वृद्धि तथा टैलेंट इंजन को लेकर प्रमुख रूप से उभर सकता है। हमें अपनी यूनिवर्सिटियों में विश्वास लाने और उन्हें नए ढंग से डिजाइन करने की भी जरूरत है। हमें वैश्विक स्टैंडर्ड  की तरफ नहीं भागना जो यूनिवर्सिटियों की रैंकिंग के लिए इस्तेमाल होता है। इस संदर्भ में हमें अपनी गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। हमें उच्च क्वालिटी की रिसर्च की भी जरूरत है। विश्व भर में भारतीय छात्र आज धन के मामले में एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं क्योंकि अगले 25 वर्षों में भारतीय आबादी तेजी से बढ़ेगी। इसलिए देश भर में एक क्वालिटी वाली शिक्षा की महत्वाकांक्षा भी बढ़ेगी।-सुरेश प्रभु एवं शोभित माथुर


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News