हिन्दू और देश विरोधी सोच ही ‘कम्युनिस्टों’ को ले डूबी

punjabkesari.in Wednesday, Jan 22, 2020 - 02:00 AM (IST)

प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने कम्युनिस्टों के संबंध में तीन महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जिस पर मीडिया में गंभीर चर्चा हुई है। एक बात उनकी यह है कि वामपंथ पाखंडी है और उनकी दूसरी बात यह है कि वामपंथ की आस्था देश के प्रति नहीं है, उनकी आस्था दूसरे देशों से जुड़ी हुई है। रामचन्द्र गुहा यहीं तक नहीं रुकते हैं बल्कि अपनी तीसरी बात में वे कहते हैं कि हिन्दुत्व के विस्तार में वामपंथियों का अतिरंजित-अतिरेक विरोध शामिल है। क्या रामचन्द्र गुहा की ये तीनों बातें सही हैं? क्या इन तीनों बातों में वामपंथ की करतूत ही स्पष्ट होती है? 

कम्युनिस्टों का इतिहास यही कहता है कि ये देश की संस्कृति को कभी आत्मसात नहीं कर सके। देश की संस्कृति को ये कभी प्रेरक नहीं मान सके। देश की संस्कृति को ये हमेशा अतिरंजित तौर पर देखते रहे। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इन्होंने देश की संस्कृति को साम्प्रदायिकता का प्रतीक भी मान लिया। जब इन्होंने देश की संस्कृति को साम्प्रदायिकता का प्रतीक मान लिया तो फिर इनकी पूरी सक्रियता देश की संस्कृति को नष्ट करने, लांछित करने और  अपमानित करने में ही जारी रही। कोई भी देश अपनी संस्कृति पर राज करता है, अपनी संस्कृति पर गर्व करता है, अपनी संस्कृति से निकले हुए महापुरुषों पर अभिमान करता है। ऐसी प्रवृत्तियां सिर्फ  भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हैं। 

फिर अपनी संस्कृति को ही नष्ट करने वालों, अपनी संस्कृति को ही लांछित करने वालों का साथ जनता कैसे देगी? भारत में भी ऐसा हुआ है। कम्युनिस्ट जरूर तेजी के साथ पनपे थे लेकिन अब ये धीरे-धीरे न केवल सीमित होते गए बल्कि अब तो इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इनकी सत्ता तो अब सिर्फ  केरल में है, अगले केरल विधानसभा के चुनाव में इनकी सत्ता वापस होगी या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता है। विश्वविद्यालयों और अन्य बुद्धिजीवी संगठनों में इनकी जो भी उपस्थिति बची है वे भी कोई देश के प्रेरक तत्व नहीं हैं। 

देश विरोधी विचारों का लम्बा इतिहास
देश विरोधी इनकी करतूतों का एक लंबा-चौड़ा इतिहास है। कम्युनिस्ट इसे स्वीकार भी करते हैं। यह अलग बात है कि इनकी स्वीकृति प्रत्यक्ष नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष होती है। ये देश विरोधी अपनी करतूत का बचाव करने के लिए भूल शब्द का प्रयोग करते हैं। आम कम्युनिस्ट कहते हैं कि हमने कुछ  ऐतिहासिक भूलें की हैं। इनकी करतूतों में महात्मा गांधी को अंग्रेजों का दलाल कहना, सुभाष चन्द्र बोस को हिटलर का दलाल कहना, भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करना, पाकिस्तान का समर्थन करना, आजादी के पूर्व दंगों में मुसलमानों का साथ देना, मुस्लिम जेहाद का समर्थन करना, चीनी आक्रमण का समर्थन करना, चीन की आक्रमणकारी सेना के स्वागत में बैनर लगाना, चीनी आक्रमण के समय भारतीय आयुध कारखानों में हड़ताल करना, ताकि भारतीय सेना के पास गोला-बारूद और अन्य हथियार न पहुंच सकें तथा भारतीय सेना हार जाए। चीन के तानाशाह माओ त्से तुंग को अपना प्रधानमंत्री यानी भारत का प्रधानमंत्री बताना, इंदिरा गांधी की एमरजैंसी का समर्थन करना, एमरजैंसी के वीरों को गुप्तचर बन कर पकड़वाना, कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद का समर्थन करना, कश्मीर में हिन्दुओं के पलायन करने के खिलाफ बोलने वालों, लिखने वालों को सांप्रदायिक कहना आदि शामिल हैं। 

इनके दोहरे चरित्र देखिए
पाखंड  इनका देखिए, इनके दोहरे चरित्र देखिए। ये नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हमेशा हिटलर का दलाल कहते रहे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का अपमान करने का कोई अवसर कम्युनिस्ट जमात ने नहीं छोड़ा था पर कम्युनिस्ट स्टालिन के संबंध में कुछ भी नहीं बोलते हैं। स्टालिन को तो कम्युनिस्ट अपना प्रेरक महापुरुष मानते हैं। स्टालिन ने हिटलर के साथ अनाक्रमण संधि की थी। अगर हिटलर ने अनाक्रमण संधि नहीं तोड़ी होती और सोवियत संघ पर हमला नहीं किया होता तो फिर स्टालिन भी द्वितीय विश्व युद्ध में तटस्थ होता। 

अगर हिटलर की सहायता  लेने, उससे गठजोड़ करने के कारण कम्युनिस्टों की नजर में सुभाष चन्द्र बोस गद्दार और दलाल हुए तो फिर हिटलर से अनाक्रमण संधि करने वाले स्टालिन कैसे प्रेरक पुरुष बन गए? कम्युनिस्ट कभी भी यह नहीं कहते कि हिटलर से अनाक्रमण संधि करने वाला स्टालिन गद्दार था या फिर हिटलर का चमचा था। स्टालिन की तानाशाही भी दुनिया में कुख्यात रही है। उसने अपने लाखों विरोधियों की चुन-चुन कर हत्या करवाई थी। महात्मा गांधी को भी ये गद्दार कहते रहे हैं। अंग्रेजों का चमचा कहते रहे हैं। ये महात्मा गांधी की लंगोटी में गरीब भारत नहीं देख सके, गांधी की आम आदमी तक पैठ को नहीं देख सके, गांधी आम आदमी को आजादी के आंदोलन से क्यों और कैसे जोड़ सके, इसकी वीरता की ये पहचान तक नहीं कर पाए। पर कम्युनिस्ट जमात महात्मा गांधी को भद्दी गालियां देने में बहुत आगे रही है। इनका एक पाखंड और देख लीजिए। ये गांधी को गाली देने में आगे रहते हैं पर अपनी सुविधा के लिए गांधी का इस्तेमाल करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। आज गांधीवादी संगठनों पर कम्युनिस्टों का कब्जा हो गया है। कम्युनिस्टों और गांधीवादियों में एक तरह से संधि है। 

भारत परमाणु विस्फोट करे तो विरोध
भारत जब परमाणु विस्फोट करता है तब कम्युनिस्ट अपने देश को हिंसक बता कर अपमानित करते हैं। दुनिया में भारत की छवि एक ङ्क्षहसक देश के तौर पर बनाई जाती है। जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने परमाणु बम विस्फोट किया था तब सीताराम येचुरी सहित अन्य कम्युनिस्टों ने इसे ङ्क्षहसक नीति बताया था और कहा था कि भारत की यह कार्रवाई पड़ोसी देशों को डराने-धमकाने के लिए है, भारत एक हिंसक देश बन गया है। ठीक उसी समय उत्तर कोरिया ने परमाणु विस्फोट किया था। उत्तर कोरिया के  परमाणुविस्फोट पर कम्युनिस्टों की धारणा बदल गई थी। उस समय कम्युनिस्ट जमात ने कहा था कि उत्तर कोरिया का परमाणु विस्फोट करना उसका अपना अधिकार है, वह अपनी जरूरतों के हिसाब से परमाणु विस्फोट करने और अपनी सुरक्षा की जरूरतों को हासिल करने के लिए स्वतंत्र है। कम्युनिस्टों के आका चीन ने बार-बार बम विस्फोट किया है पर कम्युनिस्ट चीन को कभी ङ्क्षहसक देश नहीं बताते हैं, चीन की आलोचना तक नहीं करते हैं। 

इनकी एकाकी साम्प्रदायिकता की सोच ने इन्हें दुष्परिणामों का सहचर भी बनाया है। कश्मीर में हिन्दुओं का जबरदस्ती पलायन कराया गया, ङ्क्षहसा से हजारों का जीवन नष्ट किया गया, हजारों हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुए पर कम्युनिस्ट जमात ने कभी विरोध नहीं किया। ये सभी करतूतें इस्लामिक सोच से उत्पन्न हुई थीं। कश्मीर में इस्लाम के शासन के लिए जेहाद जारी है, यह कौन नहीं जानता है। पर कश्मीर के हिन्दू शरणाॢथयों की बात करने वाले हिन्दू संगठनों को कम्युनिस्ट दंगाई और साम्प्रदायिक कहना नहीं भूलते हैं। इन्हें हर गेरुआ धारी व्यक्ति हिंसक और सांप्रदायिक लगता है पर बकरा दाढ़ी, बड़े भाई की कमीज और छोटे भाई की पायजामा वाली संस्कृति इन्हें प्रेरक लगती है। ये गेरुआ वस्त्र में साम्प्रदायिकता जरूर खोज लेते हैं पर बकरा दाढ़ी, बड़े भाई की कमीज और छोटे भाई के पायजामे में ये सांप्रदायिकता नहीं बल्कि सौहार्द खोज लेते हैं और उनके सहचर बन जाते हैं। 

हिन्दुत्व के विरोध का भूत इनके सिर पर नाचता रहता है 
इस्लाम के कारण देश का विभाजन हुआ। इस्लाम को मानने वालों ने मजहब के नाम पर पाकिस्तान बनवाया था पर कम्युनिस्टों को इसमें कोई सांप्रदायिकता नजर नहीं आती है। हिन्दुत्व का विरोध इनका प्रिय खेल है। हर जगह इनके सिर पर हिन्दुत्व के विरोध का भूत नाचता रहता है। हिन्दुत्व का इन्होंने ऐसा अतिरंजित विरोध किया कि यह कदम ही कम्युनिस्टों के सर्वनाश का कारण बन गया। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा तक इनका सर्वनाश हो गया। हिन्दुत्व की आज जो शक्ति बढ़ी है, देश पर हिन्दुत्व जो राज कर रहा है उसके पीछे कम्युनिस्टों के अतिरंजित विरोध की ही शक्ति है। क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है। हिन्दूवादियों में भी कम्युनिस्टों के खिलाफ प्रतिक्रिया हुई, हिन्दुओं का एकीकरण भाजपा के प्रति होता चला गया, जिसका सुखद परिणाम नरेन्द्र मोदी की फिर से सरकार है।

अभी कम्युनिस्ट एन.आर.सी. जैसे तमाम प्रश्नों पर जनता की इच्छा को समझने के लिए तैयार नहीं हैं। अब तो कम्युनिस्ट सिर्फ विश्वविद्यालयों और तथाकथित एन.जी.ओ. छाप बुद्धिजीवियों के बीच ही सीमित हो गए हैं। विश्वविद्यालयों में भी इन्हें अब राष्ट्रवादी छात्र समूहों से चुनौती मिल रही है। टुकड़े-टुकड़े गिरोह के कारण भी इनकी छवि संदिग्ध बनी हुई है। इनकी विश्वसनीयता भी अब समाप्त होने के कगार पर खड़ी है। फिर भी कम्युनिस्ट अपने पाखंड से विरक्त होने के लिए तैयार नहीं हैं।-विष्णु गुप्त


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News