और ‘बदतर’ हुई गरीबी, भूख और असमानता की स्थिति

punjabkesari.in Tuesday, Jan 21, 2020 - 04:43 AM (IST)

नीति आयोग सरकार का थिंक टैंक है। यह शोध करता है, नीतियों के बारे में सलाह देता है, विजन डाक्यूमैंट तैयार करता है, पायलट प्रोजैक्ट लागू करता है और कभी-कभी सरकार के  मुखपत्र के तौर पर भी काम करता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विभिन्न विकास सूचकों पर नजर रखता है। उदाहरण के लिए यह सभी राज्यों की ईज ऑफ डूइंग बिजनैस (ई.ओ.डी.बी.) में रैंकिंग तय करता है। अब ई.ओ.डी.बी. के लिए नीति आयोग की रैंकिंग में टॉपर आने के लिए राज्यों में प्रतियोगिता है। महाराष्ट्र सबसे ज्यादा औद्योगिक राज्य है। 3 या 4 साल पहले यह राज्य इस मामले में टॉप पर था लेेकिन अब 10वें रैंक से नीचे चला गया है। कई बार नीति आयोग के निष्कर्ष सरकार को चिंता में डाल देते हैं। 

उदाहरण के लिए नीति आयोग ने यह जानने के लिए एक सर्वे किया था कि क्या खाद के लिए डायरैक्ट कैश सबसिडी हासिल कर किसान खुश होंगे। इसके पीछे आइडिया यह था कि किसानों से पूरी कीमत ली जाए ताकि कम्पनियों को पूरा भुगतान हो सके और उसके बाद उनके बैंक खाते में इसे सीधे तौर पर वापस कर दिया जाए। इसे डायरैक्ट बैनिफिट ट्रांसफर (डी.बी.टी.) कहा जाता है। यह योजना रसोई गैस समेत कई चीजों पर लागू है। हैरानीजनक तौर पर किसानों ने कहा कि वे डायरैक्ट कैश ट्रांसफर नहीं चाहते। यह उस बात के विपरीत था जो सरकार करना चाहती थी। इसलिए अब नीति आयोग को अपनी योजना में संशोधन करना पड़ेगा ताकि यह किसानों को स्वीकार्य हो। इससे भी ज्यादा आहत करने वाला है सतत् विकास लक्ष्य (एस.डी.जी.)  पर नीति आयोग का निष्कर्ष। ये 17 लक्ष्य हैं जो 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकार किए गए हैं तथा इन्हें 2030 तक हासिल किया जाना है। यह काफी महत्वाकांक्षी है। 

एस.डी.जी.-1 नामक पहला लक्ष्य 2030 तक गरीबी को खत्म करने का है। क्या यह असंभव लगता है। यदि आप इसे मापने का तरीका देखें तो यह असंभव नहीं है। यह एक तरह से ‘एक डॉलर प्रतिदिन’ की परिभाषा की तरह है। यदि कोई व्यक्ति अपने खाने और मूलभूत जरूरतों पर एक डॉलर प्रतिदिन खर्च करता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। एस.डी.जी.-2 भुखमरी के खात्मे के बारे में है। यहां भी परिभाषा उपभोग की गई कैलोरीज तथा एनीमिया के बारे में है। एस.डी.जी.-6 साफ पानी के लिए पहुंच तथा सफाई के बारे में है। हालांकि यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी लग सकते हैं लेकिन जब तक इच्छित लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तब तक यह स्वीकार्य है। 

एस.डी.जी.-10 असमानता कम करने के बारे में है जिसे जनसंख्या के निचले पायदान पर खड़े 10 प्रतिशत लोगों के आय में हिस्से के हिसाब से मापा जा सकता है। आहत करने वाली बात यह है कि नीति आयोग ने पाया है कि भारत के लगभग सभी राज्यों में पिछले एक वर्ष में गरीबी, भूख तथा असमानता की स्थिति और खराब हुई है। यह रिपोर्ट करीब 15 दिन पहले आई है तथा काफी ङ्क्षचतित करने वाली है क्योंकि पिछले वर्ष तक भारत इन तीनों मोर्चों पर अच्छी स्थिति में था। वास्तव में यू.एन.डी.पी. और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रैस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार गरीबी कम करने में भारत की भूमिका को वैश्विक तौर पर सराहा गया था। 2005 से 2015 के बीच भारत 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सफल रहा। यहां गरीबी को केवल रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह से नहीं मापा जाता बल्कि इसे बहुआयामी सूचकांक (एम.पी.आई.) से मापा जाता है, जिनमें आय, स्वास्थ्य, भूख आदि शामिल हैं। एम.पी.आई. 10 सूचकों का इस्तेमाल करता है जो बाल गरीबी कम करने में भारत की  उल्लेखनीय प्रवृत्ति को दर्शाता है। इस मामले में भारत की परफॉर्मैंस चीन के बराबर है। 

ऐसी पृष्ठभूमि में यह बात काफी आहत करने वाली थी कि अधिकतर राज्यों की परफॉर्मैंस घटी है। नीति आयोग 62 विभिन्न सूचकों का इस्तेमाल करते हुए राज्य स्तरीय परफॉर्मैंस को आंकता है इसलिए यह काफी सही प्रक्रिया है। आयोग ने पाया है कि दिसम्बर 2018 की तुलना में 28 में से 22 राज्यों में पिछले एक वर्ष में गरीबी में बढ़ौतरी हुई है। बिहार और ओडिशा में इसमें ज्यादा बढ़ौतरी हुई है लेकिन पंजाब और उत्तर प्रदेश की परफॉर्मैंस भी खराब है। इसी प्रकार भूख के खात्मे के मामले में भी स्थिति खराब हुई है। इस मामले में सबसे खराब परफॉर्मैंस छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की है। इन निष्कर्षों से पता चलता है कि इस वर्ष वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की रैंकिंग खराब हुई है। खासतौर पर बच्चों की भूख के मामले में। जहां तक असमानता का सवाल है तो इसमें भी 28 में से 25 राज्यों में स्थिति बदतर हुई है।

इन तथ्यों पर गंभीरता से विचार करना होगा क्योंकि यह जी.डी.पी. और बेरोजगारी के पहले से उपलब्ध आंकड़ों की पुष्टि करते हैं। प्रोजैक्ट टाइगर की तरह हमें इन 3 मुख्य एस.डी.जीस पर ध्यान देना होगा ताकि स्थितियां और खराब न हों। यदि हमें इनमें से केवल एक चुननी हो तो यह एस.डी.जी. 2 होनी चाहिए जो 2030 तक शून्य भूख का लक्ष्य हासिल करने के बारे में है। यदि शेर स्वस्थ रहेगा  तो पेड़-पौधों का पूरा ईको सिस्टम भी फलेगा-फूलेगा। इसी प्रकार यदि बच्चों की भूख खत्म कर दी जाए तो जी.डी.पी. के अन्य सभी पहलू भी अच्छा काम करने लगेंगे।-ए. रानाडे


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