भारत की राजनीति में एक दिलचस्प सप्ताह

punjabkesari.in Friday, Sep 30, 2022 - 06:58 AM (IST)

राजनीति हमेशा चर्चा में रहती है लेकिन गत सप्ताह 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए तैयारियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों में प्रत्यक्ष हड़बड़ाहट देखने को मिली। अभी तक जो स्थिति है उसमें उन चुनावों के परिणाम काफी स्पष्ट दिखाई देते हैं लेकिन विभिन्न विपक्षी दलों ने भाजपा को गद्दी से उतारने में कुछ रुचि दिखाई है। हालांकि कुछ भी पूरी गारंटी से न लेते हुए वर्तमान प्रभुत्वशाली पार्टी ने अपनी मशीनरी को सक्रिय कर दिया है।

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद हमारे प्रधानमंत्री टोक्यो से सीधे अपने गृह राज्य गुजरात पहुंच गए हैं जहां ‘आप’ ने कुछ रुचि दिखाई है। ‘आप’ तथा कांग्रेस के बीच विपक्षी मतों का विभाजन मोदी की पार्टी के पक्ष में जाएगा लेकिन फिर भी भाग्य के सहारे कुछ भी नहीं छोड़ा जा सकता। जो चीज वास्तव में कांग्रेस पार्टी को प्रोत्साहित करने वाली है वह है राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में जनता की रुचि। राहुल ने बहुत प्रासंगिक मुद्दा उठाया है-वर्तमान राजनीति की विभाजनकारी प्रकृति।

यह प्रत्येक सोचवान भारतीय के दिल के तारों को छुएगा। अंतिम समीक्षा में एक विभाजनकारी एजैंडे द्वारा देश के भविष्य का नेतृत्व करना लाजिमी है। भारत में प्रशासन चलाना मुश्किल होगा यदि इसके अल्पसंख्यकों को अलग-थलग रखा जाए, जिनमें मुस्लिम सबसे अधिक हैं। 13 या 14 प्रतिशत की बड़ी संख्या को नजरअंदाज करना मुश्किल है। इसका स्वाद गत सप्ताह चखने को मिला जब पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पी.एफ.आई.), एक मुस्लिम संगठन जिस पर उसकी मान्यताओं तथा प्रथाओं को लेकर हिंदुत्व विचारधारा द्वारा हमला किया जाता है और वह इसका प्रतिरोध करता है, पर पड़े देशव्यापी छापे।

पी.एफ.आई. की गतिविधियों का केंद्र केरल का मुस्लिम प्रभुत्वशाली जिला मल्लापुरम है तथा साथ लगते कोझीकोड व कासरगोड जिले। मगर प्रत्येक अथवा अधिकांश राज्यों के क्षेत्र के भीतर मुसलमानों का एकत्र है। सभी इसी तरह अपने प्रति हिंदुत्व की असुखद भावनाओं से पीड़ित हैं। केरल में एक हड़ताल का आह्वान किया गया और ङ्क्षहसा हुई। यदि इसी तरह की विपरीत स्थितियां और कड़ी हुईं तो भविष्य में भी यह रुझान जारी रहना लाजिमी है। नूपुर शर्मा तथा उसके सहयोगी को अनुशासित करने के बाद तनाव में कुछ राहत दिखाई दी थी।

मगर अचानक अखिल भारतीय स्तर पर छापों तथा संगठन के मुख्य कार्याधिकारियों की गिरफ्तारियों ने बड़ा आतंक पैदा कर दिया है। हिंदुत्व के अविवादित नेता के साथ परेशान समुदाय के तनाव को समाप्त करने के प्रयास में 5 वरिष्ठ मुसलमान नेता संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिले। इन 5 में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वाई.एस. कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग तथा एक पूर्व चार-सितारा जनरल लैफ्टिनैंट जनरल जमीरूद्दीन शाह शामिल थे। यह एक स्वागतयोग्य कदम था।

हिंदुत्व की शक्तियां, जो अब देश पर शासन कर रही हैं, को यह अवश्य बताना चाहिए कि एक बार जब हिंदू राष्ट्र का विचार फलीभूत होता है तो अल्पसंख्यकों के लिए क्या होगा? मुस्लिम पक्ष को यह बताना चाहिए कि अपने युवाओं को यह शिक्षा देने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं कि इस्लाम एकमात्र सच्चा धर्म ‘नहीं’ है। संभवत: ये 5 बड़े मुस्लिम नेता बड़ी मुसलमान जनसंख्या के साथ कोई विशेष नाता नहीं रखते जो गरीब तथा अशिक्षित हैं। वे उसी पर अमल करते हैं जो मुल्ला कहते हैं।

हालांकि समुदाय में शिक्षित तथा सम्पन्न वर्ग से उभर रहे नए नेतृत्व की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता। सही सोच वाले स्वदेशवासियों को कुरैशी, जंग तथा जनरल शाह, जो संयोग से प्रसिद्ध अभिनेता नसीरूद्दीन शाह के भाई हैं, की इस पहलकदमी का स्वागत करना चाहिए। खुफिया एजैंसियों ने निश्चित तौर पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों बारे सूचना एकत्र की होगी जिसके बारे में सामान्य नागरिक अंजान हैं। मगर यह भी हो सकता है कि हिंदुत्व के इस केंद्रीय निर्वाचन क्षेत्र में सत्ताधारियों को अपना बहुलतावादी प्रभुत्व फिर से बनाने की जरूरत है जिसके लिए नूपुर शर्मा कांड के बाद कोई प्रत्यक्ष नहीं दी गई।

आमतौर पर इतने बड़े पैमाने पर मारे गए छापों के बाद इस्लामिक आतंकवादियों की ओर से कोई बड़ा हमला किया जाता है। मगर छापों की इन शृंखला को बड़े चुपचाप तरीके से सुनियोजित किया गया। निश्चित तौर पर इसकी योजना बनाने में काफी समय लिया गया होगा। यह तथ्य कि कुछ भी सूचना बाहर नहीं आई, अपने आप में अजीत डोभाल तथा आई.बी. व एन.आई.ए. में उनके लड़कों के लिए एक सम्मान है। आई.बी. को इस कार्रवाई के परिणामों पर गिद्ध जैसी नजर रखने की जरूरत है।

सामान्य मुसलमान, जो पहले ही डर में रह रहा है, का मनोबल और भी गिरा है। इस बीच राहुल गांधी, जिसे भाजपा के कट्टर समर्थक ‘पप्पू’ कहते हैं, ने उन समझदार लोगों को भी खामोश कर दिया है। अचानक उन्होंने अपना पुराना चोला त्याग दिया और एक स्टार के रूप में उभरे। निश्चित तौर पर केरल अपेक्षाकृत एक मैत्रीपूर्ण प्रदेश है जहां कन्वर्ट होने के लिए अधिक लोग नहीं हैं। राहुल ने उत्तर प्रदेश, जहां योगी आदित्यनाथ अपने बुल्डोजर तथा कमर पर हाथ रख कर उनका इंतजार कर रहे हैं, के लिए मात्र 2 दिन आरक्षित रखे।

राहुल को आवश्यक तौर पर उस भगवा राज्य के लिए अधिक समय आरक्षित रखना चाहिए था। संभवत: यदि एक ओर उनकी मां तथा दूसरी ओर नीतीश कुमार व लालू यादव के साथ बातचीत एक महागठबंधन बनने के रूप में सफलतापूर्वक सम्पन्न होती है तो अखिलेश को भी इसमें शामिल होने के लिए मनाया जा सकता है। इस मामले में राहुल की उत्तर प्रदेश में पग यात्रा को फिर से रि-डिजाइन किया जा सकता है ताकि समाजवादी पार्टी के कार्यकत्र्ता बड़ी संख्या में यात्रियों के रूप में इसमें शामिल हो सकें।

उधर कांग्रेस के प्रथम परिवार को तब जोर का झटका लगा, जब अशोक गहलोत ने राहुल गांधी के चुने हुए व्यक्ति द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी से उतार फैंकने के प्रयास के विरुद्ध ‘विद्रोह’ कर दिया। अगर संभावित कांग्रेस अध्यक्ष (गहलोत) ने ‘नापसंद’ सचिन पायलट को प्रसिद्धि से दूर रखने के लिए अपनी ऊर्जा को अपने गृह राज्य में केंद्रित रखा, तो विद्रोह और भी बुरा था! गांधी परिवार अब जानता है कि केवल ‘फैब 23’ ही नहीं है जो लगातार उनकी अवहेलना कर सकते हैं। नाराज होने पर पुराना वफादार भी उतना ही परेशान कर सकता है।- जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News