अम्मा ने बनाया भारत का सबसे बड़ा अस्पताल

punjabkesari.in Monday, Jul 25, 2022 - 05:29 AM (IST)

ज्यादातर मशहूर धर्माचार्य आमतौर पर कार्पोरेट जिंदगी जीते हैं। महलनुमा आश्रमों में रहते हैं। महंगी गाड़यों में घूमते हैं, हीरे-जवाहरात से लदे रहते हैं, सैंकड़ों-करोड़ रुपए के निवेश करते हैं, अमीरों के पीछे भागते हैं और गरीबों को हिकारत की नजर से देखते हैं। पर दक्षिण भारत के केरल राज्य में मछुआरों की बस्ती में एक दरिद्र परिवार में जन्मीं माता अमृतानंदमयी मां ‘अम्मा’ एक अपवाद हैं, जिनका पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए ही समर्पित है। पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों के जीवन में सुख लाने वाली ‘अम्मा’ जनसेवा के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कदम रखने जा रही हैं। आगामी 24 अगस्त को फरीदाबाद में अम्मा के नए अस्पताल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। 

133 एकड़ में फैला यह अस्पताल भारत का सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का अस्पताल है। कोच्चि (केरल) में प्रतिष्ठित 1,200 बिस्तरों वाले अमृता अस्पताल के बाद यह देश में अम्मा का दूसरा बड़ा अस्पताल होगा। फरीदाबाद के सैक्टर-88 में फैला यह अस्पताल 1 करोड़ वर्ग फुट का होगा, जिसमें एक 14 मंजिला ऊंचा टावर है, जहां प्रमुख चिकित्सा सुविधाओं की मदद से विभिन्न बीमारियों के रोगियों का इलाज होगा। 

अम्मा के इस अस्पताल की 81 विशिष्टताओं में न्यूरोसाइंसिज, गैस्ट्रो-साइंसिज, ऑन्कोलॉजी, रीनल साइंस, हड्डी रोग, कार्डियक साइंस और स्ट्रोक और मां व बच्चे जैसे उत्कृष्टता के 8 केंद्र शामिल होंगे। 2400 बिस्तरों के लक्ष्य वाले इस अस्पताल में इस साल 500 बिस्तरों के साथ मरीजों का इलाज चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाएगा। आने वाले 2 वर्षों में यह संख्या बढ़ कर 750 बिस्तरों और 5 वर्षों में 1,000 बिस्तरों तक हो जाएगी। गौरतलब है कि पूरी तरह से चालू होने पर अस्पताल में 800 से अधिक डाक्टरों सहित 10,000 लोगों का स्टाफ तैनात होगा। अस्पताल में कुल 2,400 बैड होंगे, जिनमें 534 क्रिटिकल केयर बैड शामिल हैं, जो भारत में सबसे अधिक होंगे। 

64 मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर, सबसे उन्नत इमेजिंग सेवाएं, पूरी तरह से स्वचालित रोबोट प्रयोगशाला, उच्च-सटीक विकिरण ऑन्कोलॉजी, सबसे आधुनिक परमाणु चिकित्सा और नैदानिक सेवाओं के लिए अत्याधुनिक 9 कार्डियक और इंटरवैंशनल कैथ लैब भी होंगे। फरीदाबाद में अल्ट्रा-आधुनिक अमृता अस्पताल कम कार्बन पदचिह्न के साथ भारत की सबसे बड़ी ग्रीन-बिल्डिंग हैल्थकेयर परियोजनाओं में से एक होगा। यह एक एंड-टू-एंड पेपरलैस सुविधा है, जिसमें शून्य अपशिष्ट निर्वहन होता है। मरीजों के तेजी से परिवहन के लिए परिसर में एक हैलीपैड और एक 498 कमरों वाला गैस्ट हाऊस भी है, जहां मरीजों के साथ आने वाले परिचारक रह सकते हैं। 

अम्मा की संस्था द्वारा चलाई जा रही सेवाओं का मुख्य उद्देश्य दीनहीन लोगों की नि:स्वार्थ मदद करना है। मसलन, उनके सुपरस्पैशलिटी अस्पताल में गरीब और अमीर दोनों का एक जैसा इलाज होता है। पर गरीब से फीस उसकी हैसियत अनुसार नाम-मात्र की ली जाती है। गरीबों के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाली ये अम्मा कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं हो सकतीं। आज टी.वी. चैनलों पर स्वयं को परम पूज्य बताकर या धर्मग्रंथों की शिक्षा के नाम पर जादू-टोने दिखाकर या धर्म पर मंडरा रहे खतरे बताकर, धर्म की दुकानें चलाने वालों की एक लंबी कतार है।

ये ऐसे ‘धर्मगुरु’ हैं, जिनके  सान्निध्य में आपकी आध्यात्मिक जिज्ञासा शांत नहीं होती, बल्कि भौतिक इच्छाएं बढ़ जाती हैं। पर, प्रचार का जमाना है। चार आने की लागत वाले स्वास्थ्य-विरोधी शीतल पेयों की बोतल 20 रुपए की बेची जा रही है। इसी तरह धर्मगुरु विज्ञापन एजैंसियों का सहारा लेकर टी.वी., चैनलों के माध्यम से अपनी दुकान अच्छी चला रहे हैं और हजारों करोड़ के साम्राज्य को भोग रहे हैं। 

दूसरी ओर केरल की यह अम्मा गरीबों का दुख निवारण करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। इसका ही परिणाम है कि केरल में जहां गरीबी व्याप्त थी और उसका फायदा उठाकर भारी मात्रा में धर्मांतरण किए जा रहे थे, वहीं आज अम्मा की सेवाओं के कारण धर्मांतरण बहुत तेजी से रुका है। हिंदू धर्मावलंबी अब अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मिशनरियों के प्रलोभनों में फंसकर अपना धर्म नहीं बदलते। पर, इस स्थिति को पाने के लिए अम्मा ने वर्षों कठिन तपस्या की है। 

कृष्ण भाव में तो वह जन्म से ही डूबी रहती थीं। पर उनके रूप, रंग और इस असामान्य व्यवहार के कारण उन्हें अपने परिवार से भारी यातनाएं झेलनी पड़ीं। वयस्क होने तक अपने घर में उनकी हैसियत नौकरानी से ज्यादा नहीं थी, जिसकी दिनचर्या सूर्योदय से पहले शुरू होती और देर रात तक खाना बनाना, बर्तन मांजना, कपड़े धोना, गाय चराना, नाव खेकर दूर से मीठा पानी लाना, क्योंकि गांव में खारा पानी ही था, गायों की सेवा करना, बीमारों की सेवा करना, यह सब कार्य अम्मा को दिन-रात करने पड़ते थे। ऊपर से उनके साथ हर वक्त मारपीट की जाती थी। उनके बाकी भाई-बहनों को खूब पढ़ाया-लिखाया गया। पर, अम्मा केवल चौथी पास रह गईं। 

इन विपरीत परिस्थितियों में भी अम्मा ने कृष्ण भक्ति और मां काली की भक्ति नहीं त्यागी। इतनी तीव्रता से दिन-रात भजन किया कि उनकी साधना सिद्ध हो गई। कलियुग के लोग चमत्कार देखना चाहते हैं, पर अम्मा स्वयं को सेविका बताकर चमत्कार दिखाने से बचती रहीं। पर यह चमत्कार क्या कम है कि वह आज तक दुनिया भर में जाकर 5 करोड़ से अधिक लोगों को गले लगा चुकी हैं। उनको सांत्वना दे चुकी हैं, उनके दुख हर चुकी हैं और उन्हें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती रही हैं। 

इस चमत्कार के बावजूद हमारी ब्राह्मणवादी ङ्क्षहदू व्यवस्था ने एक महान आत्मा को मछुआरिन मानकर वह सम्मान नहीं दिया, जो संत समाज में उन्हें दिया जाना चाहिए था। यह बात दूसरी है कि ढोंगी गुरुओं के मायाजाल के बावजूद दुनिया भर के तमाम पढ़े-लिखे लोग, वैज्ञानिक, सफल व्यवसायी, सिने कलाकार, नेता और पत्रकार भारी मात्रा में उनके शिष्य बन चुके हैं और उनके आगे बालकों की तरह बिलख-बिलख कर अपने दुख बताते हैं। मां सबको अपने ममतामयी आङ्क्षलगन से राहत प्रदान करती हैं। उनके आचरण में न तो वैभव का प्रदर्शन है और न ही अपनी विश्वव्यापी लोकप्रियता का अहंकार। जबकि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व की सबसे बड़ी सम्मानित संत हैं। उनके द्वार पर कोई भी, कभी भी, अपनी फरियाद लेकर जा सकता है।-विनीत नारायण
 


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