अमरीका की गीदड़ भभकियां

punjabkesari.in Saturday, Feb 26, 2022 - 06:08 AM (IST)

यूक्रेन के मामले में अमरीका और नाटो बुरी तरह से मात खा गए हैं। अमरीका ने अपनी बेइज्जती यहां पहली बार नहीं कराई है। इसके पहले भी वह क्यूबा, वियतनाम और अफगानिस्तान में धूल चाट चुका है। रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली और सबसे संपन्न सैन्य गुट को चारों खाने चित्त करके रख दिया है। जो देश रूस से टूटकर नाटो में शामिल हो गए थे, अब उनके भी रौंगटे खड़े हो गए होंगे। उन्हें भी यह डर लग रहा होगा कि यूक्रेन के बाद अब कहीं उनकी बारी तो नहीं आ रही है। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह बयान कितना बेशर्मी भरा है कि उनकी सेनाएं सिर्फ नाटो देशों की रक्षा करेंगी। वे अपनी सेनाएं यूक्रेन नहीं भेजेंगे। पुतिन ने पहले यूक्रेन के तीन टुकड़े कर दिए और फिर उन्होंने वहां अपनी ‘शांति सेना’ भिजवा दी। 

यदि नाटो राष्ट्र ईमानदार और दमदार होते तो वह तत्काल ही अपनी फौजें वहां भेजकर यूक्रेनी संप्रभुता की रक्षा करते, लेकिन उनका बगलें झांकना सारी दुनिया को चकित कर गया। मुझे तो उसी वक्त लगा कि अमरीका और नाटो अब तक जो धमकियां दे रहे थे, वे शुद्ध नपुंसकता के अलावा कुछ नहीं थीं। अमरीका के गुप्तचर विभाग ने पहले से दावा किया था कि रूस यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर चुका है। इसलिए बाइडेन और उनके रक्षा मंत्री यह नहीं कह सकते कि यूक्रेन पर रूसी हमला अचानक हुआ है। इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि अमरीका और नाटो गीदड़भभकियां देते रहे। इसका दूरगामी अभिप्राय: यह भी है कि रूस को अब नई विश्व शक्ति बन जाने का अवसर अमरीका ने प्रदान कर दिया है। 

यूक्रेन तो समझ रहा था कि अमरीका उसका संरक्षक है, लेकिन अमरीका ने ही यूक्रेन को मरवाया है। यदि अमरीका उसे पानी पर नहीं चढ़ाता तो उसके राष्ट्रपति वी. झेलेंस्की हर हालत में पुतिन के साथ कोई न कोई समझौता कर लेते और यह विनाशकारी नौबत आती ही नहीं। जर्मनी और फ्रांस के नेताओं ने मध्यस्थता की कोशिश जरूर की लेकिन वह कोशिश विफल ही होनी थी, क्योंकि ये दोनों राष्ट्र नाटो के प्रमुख स्तंभ हैं और नाटो यूक्रेन को अपना सदस्य बनाने पर आमादा है, जोकि इस झगड़े की असली जड़ है। 

इस सारे विवाद में सबसे उत्तम मध्यस्थ की भूमिका भारत निभा सकता था लेकिन दोनों पक्षों से वह सिर्फ शांति की अपील करता रहा, जो शुद्ध लीपापोती या खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं है। मैं पिछले कई हफ्तों से कहता रहा हूं कि भारत कोई पहल जरूर करे लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे पास पक्ष या विपक्ष में कोई ऐसा नेता नहीं है, जो इतनी बड़ी पहल कर सके। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन से बात की, यह अच्छा किया लेकिन यही काम वह बाइडेन के साथ भी महीना भर पहले करते तो उसकी कुछ कीमत होती। अब तो भारत का राष्ट्रहित इसी में है कि हमारे 20 हजार छात्र और राजनयिक लोग यूक्रेन में सुरक्षित रहें और हम तेल के बढ़े हुए भावों को बर्दाश्त कर सकें।-डा. वेदप्रताप वैदिक
 


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