चीन की बढ़ती आक्रामकता को लेकर अमरीका की सक्रियता

punjabkesari.in Tuesday, Aug 17, 2021 - 06:00 AM (IST)

हाल ही में अमरीकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिकेन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान एक तीर से कई शिकार किए, पहला शिकार चीन था, जिसके लिए ब्लिकेन ने एक के बाद एक तीर अपने तरकश से निकाले। पहला तीर ब्लिकेन ने भारत की यात्रा कर चीन को यह दिखा दिया कि अमरीका का खुला समर्थन किस देश को है। ब्लिकेन ने दूसरा तीर निकालते हुए बौद्ध दार्शनिक और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के प्रतिनिधि न्गोडुप तुंगचुंग से मुलाकात की, जो भारत के धर्मशाला शहर में केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं। इसे निर्वासित तिब्बत सरकार माना जाता है। 

इस मुलाकात से चीन इतना तिलमिलाया कि उसने अपने सरकारी मीडिया से अमरीका को धमकी तक दे डाली। ग्लोबल टाइम्स ने लगे हाथ भारत को भी धमकी दी है। अखबार लिखता है कि ब्लिकेन की भारत यात्रा ने अमरीका का दोमुंहा चेहरा दुनिया के सामने रख दिया है। अभी दो दिन पहले ही अमरीकी उप विदेश मंत्री विंडी शेरमन ने उत्तरी चीन के थियेनचिन शहर में चीनी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर यह बात कही थी कि दोनों देशों में बातचीत के द्वार खुले रहने चाहिएं। 

इसके अलावा ब्लिकेन ने भारत में तिब्बत हाऊस के निदेशक दोर्जी दामदुल से भी मुलाकात की। दामदुल पहले दलाई लामा के अनुवादक थे। ब्लिकेन की इन मुलाकातों से चीन चारों खाने चित्त हो गया है। हालांकि अमरीका ने चीन का इससे पहले भी ऐसा हाल किया है। बात वर्ष 2016 की है जब तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दलाई लामा से मुलाकात की थी। उस समय भी दुनिया ने चीन को तिलमिलाते हुए देखा था। भारत में तिब्बती बौद्ध प्रतिनिधियों से अमरीकी प्रतिनिधि की भेंट होने से एक सीधा संदेश चीन को जाता है कि चीन ने तिब्बत पर अपना अवैध कब्जा कर रखा है और तिब्बत भारत से अपनी निर्वासित सरकार चला रहा है, उसे अमरीका एक तरह की मान्यता देता है कि चीन अपनी दमनकारी नीति के चलते एक देश का अस्तित्व खत्म करने पर तुला है, जिसे अमरीका सहन नहीं करेगा। इस पर चीन की तीखी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था। 

ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि इससे यह बात एकदम साफ है कि अमरीका भारत का इस्तेमाल चीन की राह में रोड़ा अटकाने के लिए कर रहा है। ब्लिकेन ने अपनी यात्रा के दौरान कहा कि अमरीका और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों को सांझा करते हैं। तिब्बत की निर्वासित सरकार भी लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर चल रही है और यही वजह है कि अमरीका और तिब्बत में बातचीत होनी चाहिए।

इस यात्रा के दौरान ब्लिकेन ने इंडोनेशियाई विदेश मंत्री रेत्नो मर्सूदी के साथ भी रणनीतिक वार्ता की। जाहिर है यह वार्ता चीन को ध्यान में रख कर ही की गई है क्योंकि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अमरीका अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है, ताकि इस क्षेत्र में चीन की आक्रामक गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके। दक्षिणी चीन सागर में जहाजरानी और साइबर सुरक्षा में भी दोनों देशों ने आपसी सहयोग पर बात की। इंडोनेशिया को इन दोनों क्षेत्रों में चीन से ज्यादा खतरा है, इसलिए इंडोनेशिया अमरीका की हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सक्रीय मौजूदगी का पक्षधर है। 

ब्लिकेन की भारत यात्रा के दौरान अफगान मुद्दे पर भी बातचीत हुई। अमरीका 31 अगस्त तक अपने सारे सैनिकों को अफगानिस्तान से निकाल लेगा और चीन अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। अमरीका अफगानिस्तान में भारत की मजबूत उपस्थिति चाहता है, जिससे वहां पर शांति स्थापित हो और लोकतांत्रिक मूल्यों वाली सरकार प्रशासन की बागडोर संभाले लेकिन अमरीका किसी भी कीमत पर चीन को वहां नहीं देखना चाहता। 

हाल के वर्षों में अमरीका की मौजूदगी भारत, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में बढ़ी है। इसे चीन की इन क्षेत्रों में बढ़ती आक्रामकता के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए क्योंकि जहां एक ओर चीन दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर अपनी समृद्धि में इजाफा कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उन देशों में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म कर रहा है इसलिए पूरा विश्व एकजुट होकर चीन की बढ़ती शक्ति का मुकाबला करना चाहता है और अमरीका किसी भी कीमत पर वर्तमान वैश्विक व्यवस्था पर चीन को काबिज होते नहीं देखना चाहता। अगर चीन ने इस व्यवस्था तंत्र को नुक्सान पहुंचाया तो इसका पूरे विश्व पर नकारात्मक असर पड़ेगा और बड़े देश इस बात को लेकर चिंतित हैं तथा वे क्षेत्रीय ताकतों के साथ मिल कर इस खुली व्यवस्था को बचाए रखने के लिए पूरी कवायद कर रहे हैं। 


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