बच्चों के स्वास्थ्य तथा शिक्षा की चिंतनीय स्थिति बारे भी कुछ कहो

punjabkesari.in Sunday, Dec 05, 2021 - 06:14 AM (IST)

केंद्र सरकार तथा इसके मंत्री पाकिस्तान से खतरे, एक अज्ञात पड़ोसी (चीन) की आक्रामकता, हिंदुत्व, संसद में व्यवधान, आंदोलन जीवियों, वंशवाद की राजनीति, 70 वर्षों में कोई विकास नहीं, भारत एक विश्व गुरु है, आदि बारे इतना बोलते हैं कि मन उकता जाता है। यद्यपि मैंने उन्हें हमारे बच्चों की स्थिति बारे बोलते नहीं सुना है, विशेषकर हमारे बच्चों के स्वास्थ्य तथा शिक्षा की स्थिति बारे। मैंने शिक्षा की वार्षिक स्थिति बारे रिपोर्ट (ए.एस.ई.आर.) का बड़ा ध्यानपूर्वक अनुसरण किया है जो समय-समय पर प्रकाशित होती रही है। इस बाबत 2018-20 में रिपोर्ट प्रकाशित  हुई है। अब 17 नवम्बर 2021 को ए.एस.ई.आर. की 2021 के लिए रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। 

इसके साथ ही राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) प्रकाशित हुआ। इसने वही प्रक्रिया का अनुसरण किया है जिसका एन.एच.एफ.एस.-4 ने किया था और तुलना के लिए मददगार था। दो रिपोर्टों-ए.एस.ई.आर. 2021 तथा एन.एफ.एच.एस.-5 ने बी.एस.ई. इंडैक्स अथवा निफ्टी इंडैक्स के विपरीत असल भारत की तस्वीर को पकड़ा है, जिन्होंने लगभग 100 सूचीबद्ध कम्पनियों के स्वास्थ्य बारे जानकारी दी थी। ये रिपोट्र्ररस गत 2 सप्ताहों से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं लेकिन मुझे नहीं याद कि प्रधानमंत्री अथवा शिक्षामंत्री या स्वास्थ्य मंत्री ने इन दो विषयों पर बात की हो। 

2 रिपोर्टें, महत्वपूर्ण निष्कर्ष
2 रिपोर्टों ने महामारी के प्रभाव का आकलन किया है। इन्हें दर-किनार नहीं किया जा सकता क्योंकि रिपोर्टों के निष्कर्ष निराशाजनक हैं। मैं इनकी कुछ महत्वपूर्ण बातों को सूचीबद्ध करूंगा :
ए.एस.ई.आर. 2021 (ग्रामीण) 
1. निजी से सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए स्पष्ट बदलाव। 
2. ‘ट्यूशन’ लेने वाले बच्चों में धीरे-धीरे बढ़ौतरी।
3. स्मार्ट फोन रखने वालों की संख्या बढ़ी लेकिन बच्चों तक इनकी पहुंच एक मुद्दा बनी रही।
4. स्कूल खुलने के बाद घर पर शिक्षण समर्थन में कमी।
5. बच्चों के लिए उपलब्ध शैक्षणिक मैटीरियल्स में हल्की-सी वृद्धि। 

एन.एफ.एच.एस. 2019-21
1. कुल प्रजनन दर 2.0 (बदलाव दर से जरा कम) पर पहुंची लेकिन तीन राज्यों की जनसंख्या (जो सर्वाधिक गरीब में से भी हैं) उच्च दर पर बढऩा जारी रही।
2. गत 5 वर्षों में जन्मे बच्चों के बीच लिंग अनुपात अकथनीय रूप से 929 (पुरुषों के मुकाबले महिलाएं) बढ़ रहा है। 
3. लाखों परिवारों के लिए स्वच्छता, स्वच्छ ईंधन तथा स्वास्थ्य के मुद्दे एक चुनौती बने हुए हैं। 
4. मृत्यु दरों में कमी आ रही है लेकिन अस्वीकार्य रूप से ऊंची है। 
5. बौनापन, पिंड रोग तथा रक्ताल्पता बच्चों के लिए गंभीर चुनौतियां बनी हुई हैं। 

शिक्षा पर निष्कर्षों के पहले सैट की स्वास्थ्य पर निष्कर्षों के दूसरे सैट के साथ तुलना करते हैं। यह स्पष्ट दिखाई देगा कि किसी भी देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत, बच्चे, भारत में नजरअंदाज हैं तथा इस विषय पर शायद ही कभी सार्वजनिक विचार-विमर्श होता हो। यहां तक कि उनके कल्याण के लिए विशेष तौर पर मंत्रालय का गठन किया गया है, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, जो गहरी नींद में दिखाई देता है। 

असमानताएं, बढ़ौत्तरी
लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच असमानता सभी देशों में देखी जाती है। आय तथा सम्पत्ति अंतर के सबसे बड़े कारक हैं। भारत में वे अंतर धर्म तथा जाति द्वारा बढ़ा दिए जाते हैं। समाज में वंचित तथा आर्थिक समूह सर्वाधिक गरीबों में से हैं तथा सबसे अधिक बेरोजगार, भेदभाव वाले तथा सरकार द्वारा तिरस्कृत हैं। आप उनके बच्चों की शिक्षा की स्थिति तथा अन्य बच्चों की तुलना में स्वास्थ्य बारे अनुमान लगा सकते हैं।
ए.एस.ई.आर. तथा एन.एफ.एच.एस. ने आंकड़ों की समीक्षा धर्म अथवा जाति के आधार पर नहीं की है। वे सभी बच्चों के बारे में है। जरा सोचिए  कि किस तरह के बच्चे समकालीन भारत में बढ़ रहे हैं, विशेषकर तब जब देश 
महामारी से प्रभावित है। मेरे निष्कर्ष हैं : 

-दम्पतियों के कम बच्चे हैं लेकिन वे लगभग पुरुषों अथवा महिलाओं की बराबर संख्या में उन्हें जन्म नहीं दे रहे। जहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का कुल लिंगानुपात स्वस्थ है (1020), इसमें 0-5 वर्ष के बच्चों के बीच 929 की दर पर चिंताजनक गिरावट आई है। इस संख्या को चुनौती दी गई है और इसकी गंभीरतापूर्वक जांच होगी लेकिन यदि यह रूझान सही है तो अत्यंत चिंता का विषय है। 
-तीन सर्वाधिक गरीब राज्य निरंतर बुरी तरह से प्रशासित हैं। वे राष्ट्रीय औसत से अधिक दर पर देश की जनसंख्या में वृद्धि कर रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि गरीब राज्यों में और अधिक बच्चे शामिल किए जा रहे हैं। ऐसा दिखाई देता है कि गरीबी उन्मूलन के उपाय इन राज्यों में असफल रहे हैं। 

-बड़े-बड़े दावों के बावजूद भारत अभी तक खुले में शौच से मुक्त नहीं हुआ है। मुफ्त सिलैंडर योजना (अब जिसे उज्जवला कहा जाता है) एक ऐसी सफलता नहीं है जिसके बारे में बड़े दावे किए जाएं। 
-जहां स्वास्थ्य ढांचे तथा स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है, माताओं तथा बच्चों का स्वास्थ्य अभी भी नजरअंदाज है। हम एक ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते जहां बहुत से बच्चे जन्म के समय (24.9 प्रति हजार), शैशवकाल में (35.2) तथा पहले 5 वर्षों (41.9) के दौरान मर जाते हैं। 

-जो बच्चे बच जाते हैं उनके लिए पोषण एक बड़ी चुनौती है। यह चिंताजनक है कि एक बड़ा प्रतिशत उन बच्चों का है जो बौनेपन (35.5 प्रतिशत), पिंडरोग (19.3) तथा पोषण के अभाव (32.1) से ग्रस्त हैं। 
-2020-21 तथा 2021-22 में ‘शिक्षा का नुक्सान’ प्रचंड रहा। वैश्विक औसत 35 सप्ताहों के मुकाबले हमारे देश में स्कूल 73 सप्ताहों के लिए बंद रहे। प्रवास तथा वित्तीय बाध्यताओं के चलते बच्चे निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित हो गए हैं। बच्चों की बढ़ी संख्या को समाहित करने में सरकारी स्कूलों की क्षमता संदिग्ध है और बहुत से बच्चे मल्टी-ग्रेड कक्षाओं में बैठे देखे गए।  केवल 39.8 प्रतिशत को शैक्षणिक मैटीरियल प्राप्त हुआ जब स्कूल बंद हो गए थे। आधारभूत कौशल (अध्ययन तथा गणित) क्लास के स्तर के हिसाब से बुरी तरह से पिछड़े थे। क्या प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय व राज्य सरकारें कुछ समय निकाल कर हमारे बच्चों के स्वास्थ्य तथा शिक्षा की चिंतनीय स्थिति बारे कुछ शब्द कहेंगे?-पी. चिदम्बरम


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