सभी की निगाहें वार्षिक ‘आम बजट’ पर

punjabkesari.in Wednesday, Jan 29, 2020 - 01:06 AM (IST)

सभी की नजरें 2020 के वार्षिक आम बजट पर टिकी होंगी, जो इस सप्ताह पेश किया जाएगा। बजट सत्र संसद में 31 जनवरी को संयुक्त सत्र को राष्ट्रपति के सम्बोधन से शुरू होगा। यह सत्र बेहद अहम है क्योंकि संसद सरकार के बजट प्रस्तावों की जांच करेगी तथा बजट के लिए वोट करेगी। बजट सत्र के दो चरण होंगे पहला 31 जनवरी से 11 फरवरी तक और दूसरा 2 मार्च से लेकर 3 अप्रैल तक। इस वर्ष अलग से रेलवे बजट नहीं होगा क्योंकि वह आम बजट का ही हिस्सा होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को अपना दूसरा केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करेंगी। सीतामरण का प्रयास तेजी से गिर रही अर्थव्यवस्था को सुधारने पर होगा। आधिकारिक डाटा दर्शाता है कि इस वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद सिकुड़ कर 5 प्रतिशत हो जाएगा, जो कि एक दशक में अपनी धीमी गति पर है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2019 के लिए विकास दर 4.9 प्रतिशत आंकी है और 2020 में इसके सुधरने की उम्मीद जताई है। 

अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सीतारमण कुछ उपायों की घोषणा कर सकती हैं। हालांकि आर्थिक संकेतक सुझाव देते हैं कि अर्थव्यवस्था 2020 की पहली छमाही में तेजी पकड़ेगी। यह सब कुछ सरकार की बजट घोषणाओं पर निर्भर करेगा। ऐसा समझा जा रहा है कि सरकार लोकलुभावन उपायों को छोड़ कर उद्योग पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगी। सीतारमण ने पहले ही घोषणा की हुई है कि निर्यात को समर्थन, घरेलू उद्योग, लघु तथा मध्यम उद्यम, गैर-बैंक उधारदाताओं जैसे कदम उठाए जाएंगे। साधारण तथा न्यायपूर्ण आयकर के साथ कुछ नए आयकर स्लैब, लम्बी अवधि के कैपीटल गेन (एल.टी.सी.जी.) में तथा लाभांश वितरण कर (डी.टी.डी.) में भी छूट दी जा सकती है। इन सबके होते हुए संसद को साधारण तौर पर कार्य करना होगा। कुछ वर्षों से संसद ने ठीक तरह से कार्य नहीं किया। इसने कई अवरोधक तथा स्थगन देखे हैं। कुछ विधेयक तो बिना बहस के पास हुए। संसद के समक्ष कुल 42 विधेयक विचाराधीन हैं जिन्हें आगामी सत्र में क्लीयर करना होगा। क्या बजट सत्र ज्यादा शांतिपूर्ण तथा उपजाऊ होगा? शायद नहीं। विपक्ष का अडिय़ल रवैया व्यवधान डालेगा ही। पिछले दो दशकों के दौरान पिछला बजट सत्र सबसे व्यस्ततम में से एक था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार दोनों सदनों ने अपना आधा समय वैधानिक कारोबार पर गंवाया था। 30 विधेयक पास किए और 70 घंटे फालतू का वक्त कार्य पर लगा। 

विपक्ष सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. के खिलाफ अपना अडिय़ल रवैया अपनाए हुए है। विपक्ष इन मुद्दों को पहले से ही सड़कों पर ले गया है। छात्र वर्ग तथा सिविल सोसाइटी दोनों मुद्दों पर अपनी आशंकाओं को प्रकट कर चुके हैं। इसलिए यह मुद्दा विपक्ष की सूची में सबसे ऊपर होगा। दूसरी बात अर्थव्यवस्था में गिरावट की है। विपक्ष सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में निरंतर गिरावट को लेकर सरकार को खींचने के लिए तैयार है। हालांकि कुछ मैक्रो सूचकांक रिकवरी का संकेत दे रहे हैं मगर इसमें कुछ वक्त लग सकता है। वित्त मंत्री को रोजगार में कमी, लगभग सभी सैक्टरों में वृद्धि दर में गिरावट जैसे मुद्दों पर बोलना होगा। विनिर्माण, नागरिक उड्डयन, कृषि, मूलभूत ढांचे तथा बैंकिंग क्षेत्र पर भी वित्त मंत्री बोल सकती हैं। तीसरा मुद्दा जम्मू तथा कश्मीर के मामलों का होगा। हालांकि पिछले सत्र में जम्मू-कश्मीर के विभाजन का विधेयक पास हो गया था मगर घाटी में अभी भी जनजीवन सामान्य नहीं हो पाया। कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल इन हालातों पर और ज्यादा बहस करने के लिए तत्पर होंगे। सी.ए.ए. के बाद पूर्वोत्तर आग में जल रहा है। इस मुद्दे पर भी विपक्ष सरकार को आड़े हाथों लेगा। 

केन्द्र चाहता है कि पर्सनल डाटा प्रोटैक्शन बिल पास हो, जिससे मंजूरी के साथ डाटा को विदेश में स्टोर किया जाएगा। नए मतदाताओं के लिए आधार को मतदाता पहचान पत्रों के साथ लिंक करने का एक विधेयक प्रस्तुत होने की उम्मीद की जा रही है। एयरइंडिया की सेल एक और विवादास्पद मुद्दा है। चालू वित्त वर्ष में एयरइंडिया के विनिवेश को पूरा करने की तरफ सरकार देख रही है। आधा दर्जन एयरपोर्ट अथारिटी ऑफ इंडिया (ए.ए.आई.) हवाईअड्डे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) मॉडल पर बोली के लिए रखे जाएंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि विपक्ष सरकार को घेरने के लिए कोई रणनीति तैयार करेगा। मोदी सरकार बंटे हुए विपक्ष से फायदा उठाना चाहेगी जिसने अनुच्छेद 370 को खत्म करने तथा सी.ए.बी. जैसे विवादास्पद विधेयक को आगे बढ़ाने में सहयोग किया था। विपक्ष को एक धागे में पिरोने के लिए कांग्रेस सूत्रधार की भूमिका अदा कर रही है। मगर उसको तृणमूल कांग्रेस, बसपा तथा सपा जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों से प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है। 

यह बेहतर होगा कि संसद बहस करने तथा मुद्दों को सुलझाने के ऊपर अपना ध्यान केन्द्रित करे न कि सदन में शोर-शराबे तथा वॉकआऊट पर। लोकतंत्र में एक सभ्य बहस मुद्दों को सुलझाती है। सांसदों को अपने कत्र्तव्यों से दूर नहीं भागना चाहिए। उन्होंने तो बस सरकार की जवाबदेही तथा बजट को जांचने जैसे कार्य करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि लोगों ने उन्हें ऐसे कत्र्तव्य निभाने के लिए आखिरकार चुन कर भेजा है।-कल्याणी शंकर


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