कृषि कानून : किसान व सरकार अहंकार छोड़ समस्या का समाधान करें

punjabkesari.in Wednesday, Sep 08, 2021 - 04:06 AM (IST)

तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर सरकार और किसानों के बीच गतिरोध जारी है। दोनों में विश्वास का अभाव है इसलिए इन कानूनों के विरुद्ध आंदोलन तेज करने के लिए रविवार को किसानों की नई कर्मभूमि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत ने महापंचायत का आयोजन किया। इस बात को भुला दिया गया कि 2013 में यह जिला हिन्दू-मुस्लिम दंगों के लिए कुख्यात हुआ था, जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए थे और उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इस क्षेत्र में भारी जीत दर्ज की थी। तब से भाजपा इस क्षेत्र में भारी राजनीतिक और चुनावी लाभ प्राप्त करती रही और इस बात का आभास कराती रही कि चुनावों में वह अविजित है। 

टिकैत के राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने के लिए एक तरह से केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार स्वयं दोषी हैं। जनवरी में योगी सरकार ने गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत की भारतीय किसान यूनियन के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया और उस समय टिकैत के रोने-धोने से उनका समर्थन बढ़ा और मोदी के कृषि कानूनों के विरुद्ध वह किसानों के एक नए मसीहा बने। फलत: सिख किसानों के नेतृत्व में आगे बढ़ रहे इस आंदोलन ने एक जाट विद्रोह का रूप लिया और वह सरकार के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ। सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अपने रुख से पीछे नहीं हटेगी। सरकार और किसानों के बीच इस बारे में चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा कि पहले कौन झुकता है। 

इस आंदोलन को 9 माह हो चुके हैं और किसानों में हताशा बढऩे लगी थी और कुछ अपने गांवों को लौटने लगे थे। राज्य में 2022 के आरंभ में विधानसभा चुनाव होने हैं। शायद टिकैत द्वारा अपने शक्ति प्रदर्शन और रैली तथा बंद के माध्यम से जाटों को भाजपा से अलग करने के लिए किसानों के गुस्से का प्रयोग करने का अवसर मिला और ऐसा कर वह स्वयं भी अगले विधानसभा चुनावों में प्रासंगिक बन जाएंगे। हालांकि पिछले चुनावों में टिकैत बंधुओं ने हिन्दुत्व ब्रिगेड को जाटों का समर्थन दिलाया था। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुख्यतया जाट, गुज्जर और मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। इस क्षेत्र से लोकसभा की 29 और विधानसभा की 136 सीटें हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 105 सीटों पर जीत दर्ज की थी तथा लोकसभा सीटों में से मुलायम की सपा और मायावती की बसपा को केवल 5 सीटें मिल पाई थीं तथा चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल को एक भी सीट नहीं मिली थी। किसानों का दावा है कि महापंचायत ने सांप्रदायिक तनाव को कम किया जिसके कारण भाजपा को सहायता मिली और हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित की, जिससे इस क्षेत्र में पार्टी की राजनीतिक स्थिति कमजोर होगी और 2022 से पूर्व उसके विरुद्ध एक नया राजनीतिक धु्रवीकरण बनेगा। 

उत्तर प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार जाट किसानों में इन कानूनों और इस महापंचायत को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कुछ किसानों ने इस रैली में भाग लिया और कुछ ने इस इससे दूरी बनाए रखी और एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत दिया है। कुछ लोगों का प्रश्र है कि क्या इस रैली से वास्तव में विपक्ष को लाभ मिलेगा। एक अन्य मंत्री के अनुसार यदि जाट हमारे विरोधियों के साथ एकजुट होते हैं तो इससे अन्य पिछड़े वर्ग हमारे साथ जुड़ जाएंगे जिससे हमें मदद मिलेगी। इसके अलावा हम अपने जाट नेताओं, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं, आध्यात्मिक गुरुओं और जिन लोगों का खापों में प्रभाव है, को शामिल करके जाट समुदाय से मिलेंगे और उनके गुस्से को शांत करेंगे तथा उन्हें विश्वास में लेंगे। 

केन्द्र और राज्य सरकारों ने नवंबर से पहले गन्ना के दाम बढऩे का वायदा किया है। राज्य सरकार ने चीनी मिलों से कहा है कि वे किसानों की बकाया राशि का भुगतान करें तथा किसानों का समर्थन प्राप्त करने के लिए अन्य उपाय भी किए गए। यदि गन्ने के दाम में 315 रुपए प्रति किं्वटल से पर्याप्त वृद्धि की जाती है तो किसान भाजपा का समर्थन करेंगे। खाप नेता भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यदि मुख्यमंत्री अपने वायदे पूरे करते हैं तो स्थिति में बदलाव आएगा। जबकि दूसरी ओर एक और किसान नेता का कहना है कि पिछले वर्ष राज्य सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम के अंतर्गत अनेक किसानों के विरुद्ध मामले दर्ज किए। अब यह कहती है कि वह उन मामलों को वापस लेने पर विचार करेगी। क्या वे सोचते हैं कि हम बेवकूफ हैं?  

समाजवादी पार्टी ने इन वायदों को राजनीतिक कार्य साधकता बताया है। पार्टी का कहना है कि केवल गन्ने का मूल्य मुद्दा नहीं है। बिजली किसानों के लिए राज्य में पंजाब और हरियाणा से अधिक महंगी है। पिछले चार वर्षों मेें सरकार ने किसानों को तोड़ दिया है, उन पर मानसिक अत्याचार किया है। कोई भी सरकार के वायदों पर भरोसा नहीं करने वाला। इसके विपरीत पंजाब में किसानों का आंदोलन न केवल तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए संघर्ष है अपितु यह उभरती कृषि अर्थव्यवस्था के बारे में व्यापक चिंताओं के बारे में भी है। 

पंजाब में भाजपा एक बड़ी राजनीतिक पार्टी नहीं है। वहां पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस, अकाली दल और ‘आप’ के बीच है। किंतु पार्टी की नजर इस बात पर है कि कहीं इसका प्रभाव पड़ोसी राज्य हरियाणा पर न पड़े। हरियाणा में भी अगले वर्ष विधान सभा चुनाव होने हैं। देखना यह है कि क्या मोदी सरकार की बलात् रणनीति काम करेगी या यह किसानों को और एकजुट करेगी। एक ओर सरकार आंदोलन स्थलों की घेराबंदी कर रही है और दूसरी ओर उसने बातचीत के दरवाजे खुले रखे हैं। 

समय आ गया है कि दोनों पक्ष अपने अहंकार को त्यागें और मध्यम मार्ग अपनाकर सद्भावना से समस्या का समाधान करें। किसानों की शिकायतें वास्तविक हो सकती हैं किंतु सरकार से अपनी बातें मनवाने का यह तरीका नहीं है। अपनी बात पर अड़े रहने से वह इस धारणा को जन्म दे रहे हैं कि वे अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढने के बजाय सरकार को झुकाना चाहते हैं। प्रत्येक पार्टी इस स्थिति का राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। इसलिए इस संबंध में तुरंत कदम उठाए जाने चाहिएं।-पूनम आई. कौशिश 
 


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