कांग्रेस के बाद अब मोदी का प्रहार पारिवारिक पार्टियों पर

punjabkesari.in Sunday, Jul 10, 2022 - 05:00 AM (IST)

नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर क्या आए, कांग्रेस लुढ़कती ही चली गई। राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्यों में भी कांग्रेस का सितारा डूबता चला गया। कहां तो उस का परचम  सारे देश में लहराता था, आज मात्र 2 राज्यों में सिमट गई। लोकसभा में जिस कांग्रेस के कभी 443 सदस्य हुआ करते थे आज मात्र 50 पर अटक गई। क्यों? क्योंकि पार्टी परिवार से बाहर नहीं आ पाई। एक गांधी परिवार ही कांग्रेस की गाड़ी को हांक रहा है। परिवार आधारित राजनीतिक दलों की यही नियति है। परिवार आधारित राजनीति सामंतवाद की जननी है और सामंतशाही का साधारण जनता से कोई संबंध नहीं रहता। 

पंजाब में मैं स्वयं साक्षी हूं कि शिरोमणि अकाली दल बादल परिवार से बाहर नहीं आ सका। जनता आलोचना करती रही, स. प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री, बेटा उप मुख्यमंत्री, दामाद मंत्री, उनके बेटे का साला मंत्री और बहू केंद्र में मंत्री? यह परिवारवाद की राजनीति की पराकाष्ठा थी। क्या परिणाम निकला? कुछ अकाली दल टकसाली हो गया, कुछ संयुक्त और कुछ सिमरनजीत सिंह मान अकाली दल बन गया। पारिवारिक राजनीति सौ साल ऊपर के अकाली दल को ले डूबी। हरियाणा में कभी चौ. देवीलाल की तूती बोलती थी। उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला को अपना वारिस चुना, दूसरे पुत्र रणजीत सिंह चौटाला ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। ओम प्रकाश ने अभय चौटाला को अपना उत्तराधिकारी बनाया तो दूसरे पुत्र अजय चौटाला रूठ गए। हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की ‘इनैलो’ टूटी तो दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जे.जे.पी.) बना भाजपा से मिल सरकार में भागीदारी बना ली। 

यू.पी. में अखिलेश यादव सुपुत्र मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, स्वयं यू.पी. विधानसभा में विपक्ष के नेता पहले मुख्यमंत्री भी, बहू सांसद, चाचा शिवपाल यादव एम.एल.ए.। पार्टी चले भी तो कैसे? चाचा बगावत पर उतर आए। भतीजे ने चाचा शिवपाल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। चाचा नई पार्टी बनाने चल पड़े। बिहार में राम विलास पासवान लोक-जन शक्ति पार्टी के मुखिया बन सारी उम्र सत्ता में रहे। उनकी आंखें क्या बंद हुईं, उनके बेटे चिराग पासवान को उन्हीं के चाचा पशुपति पासवान ने पार्टी से ही निकाल दिया। 

इसी तरह बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का वर्षों तक वर्चस्व रहा। चारा घोटाले में लालू जेल चले गए तो उनकी विरासत को उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव ने संभाला। आज लालू की पार्टी में तेजस्वी के भाई तेज प्रताप यादव ने तूफान खड़ा कर रखा है, जिनकी पत्नी तलाक के लिए अदालत के दरवाजे खटखटा रही है। न परिवार संभले, न पार्टी, न समाज। जनता की सेवा कहां गई? तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति, आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू की तेलुगूदेशम पार्टी, पारिवारिक राजनीतिक दल ही तो हैं। सर्वविदित है कि ‘तेलुगू देशम पार्टी’ के संस्थापक और आंध्र प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे एन.टी. रामाराव को उन्हीं के दामाद चंद्र बाबू नायडू ने अपदस्थ कर दिया था। 

इसी तरह मध्यप्रदेश में वर्षों श्यामचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल बंधुओं का राज रहा। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी, उनके पुत्र अमित जोगी और बिलासपुर से विधायक रेणु जोगी की पारिवारिक पार्टी का राज रहा। मैं यकीनन भूल कर जाता यदि जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला की पारिवारिक पार्टी ‘नैशनल कांफ्रैंस’ का जिक्र न करता। शेख अब्दुल्ला के बाद उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला, फिर उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, एक ही पारिवारिक पार्टी वर्षों जम्मू-कश्मीर राज्य पर राज करती रही। 

परिवार आधारित राजनीतिक दलों पर यदि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन समारोह में प्रहार किया है तो निश्चय ही उन्होंने राजनीति को परिवारों से मुक्त करवाने का आह्वान किया है। इनका राजनीतिक उद्देश्य ही यही होता है ‘मैं और मेरा परिवार’। परिवार से बाहर कुछ नहीं। सादगी से सभी यही कहेंगे कि हमारा सारा परिवार समाज सेवा को समॢपत है परन्तु वास्तव में सारे पद अपने ही परिवार में बांट लिए जाते हैं। महाराष्ट्र की शिवसेना इसका ज्वलंत उदाहरण है। पारिवारिक मोह से राज ठाकरे नई पार्टी बना गए। उद्धव ठाकरे अपने बेटे का मोह भी नहीं त्याग सके। उन्हें भी मंत्री पद से नवाज दिया। विस्फोट तो होना ही था। 

परिवार आधारित राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। स्वार्थ, निजता, मैं, मेरा इन राजनीतिक दलों का आधार है। कोई सिद्धांत नहीं, न आंतरिक प्रजातंत्र, न बाहरी तौर पर समाज सेवा का भाव। बिना चुनावों के पदाधिकारियों की नियुक्ति। चुनाव आयोग का इन पारिवारिक राजनीतिक दलों पर अंकुश होना चाहिए। लेन-देन का आडिट प्रति वर्ष हो अन्यथा ये पारिवारिक राजनीतिक दल लोकतंत्र की मूल भावना को ध्वस्त कर देंगे। देश को पुन: सामंतशाही की ओर धकेल देंगे।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब) 


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