अफगानी सिख-हिंदू वहां से निकलना तो चाहते हैं लेकिन...

punjabkesari.in Monday, Sep 06, 2021 - 06:00 AM (IST)

अफगानिस्तान पर तालिबान का पूरी तरह कब्जा हो जाने के बाद वहां अभी भी भारत के कई अफगानी सिख एवं हिंदू नागरिक फंसे हुए हैं। अब यह साफ नहीं हो पा रहा है कि उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी और उन्हें वहां से कैसे निकाला जाएगा। कई भारतीय कह रहे हैं कि वे जिस कम्पनी में काम करते थे, वह उनके पासपोर्ट वापस नहीं कर रही। 

तालिबान के पूर्ण शासन या कब्जे के बाद वहां बरसों से रह रहे सिख एवं हिंदू समुदाय के लोग चिंता में हैं। उनका कहना है कि चाहे तालिबान हुकूमत ने उन्हें पूरी सुरक्षा का भरोसा देते हुए वहीं रहने को कहा है लेकिन उनको वहां के हालातों से डर लग रहा है। अब तो काबुल एयरपोर्ट पर भी तालिबानियों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है, जिससे अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीय सिखों व हिंदुओं की घर वापसी की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। तालिबानी असीमित अत्याचार कर रहे हैं। वे बेवजह लोगों को मार रहे हैं।

इस भयानक नरसंहार से परेशान परिवारों का रो-रोकर बुरा हाल है। वे कह रहे हैं कि हम यहां से जल्दी से जल्दी बाहर जाना चाहते हैं। काबुल एयरपोर्ट पर तालिबान का पूरे कब्जे और तनावपूर्ण माहौल के बीच भी भारत अपने लोगों को वतन लाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। इतना ही नहीं, तालिबानी हुकूमत उन्हें सही सलामत एयरपोर्ट तक पहुंचने दे, इसके लिए भी उच्च स्तर पर बातचीत चल ही रही है। मगर आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि भारतीय मूल के तमाम अफगानी नागरिकों की पहली पसंद भारत नहीं, बल्कि अमरीका या कनाडा समेत कई अन्य देश हैं।

काबुल में विदेश मंत्रालय के मिशन से जो सूची आव्रजन यानी इमीग्रेशन को भेजी गई थी, उसमें लगभग अढ़ाई हजार से ज्यादा लोग थे, मगर ऐन मौके पर कई सिख-हिंदू परिवार, जो ग्लोब मास्टर सी-17 में आने थे, वे नहीं आए, जिस कारण भेजे गए प्लेन खाली दिल्ली पहुंचे। अफगान मूल के इन भारतीय नागरिकों के अमरीका या कनाडा समेत अन्य देशों में जो रिश्तेदार बसे हैं, वे इस आपदा में शरणार्थी का दर्जा लेकर इन्हीं देशों में उन्हें आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसीलिए, ऐन वक्त पर भारतीय वायुसेना के विमान पर चढऩे से पहले भी कई लोग नहीं आए। 

हालांकि भारत का रुख साफ है कि जो भी भारतीय मूल का नागरिक वतन आना चाहेगा, उसे लाने में कोई भी हीला-हवाली नहीं की जाएगी। बाकी यह अफगानी सिखों या हिंदुओं पर निर्भर है कि वे कहां जाना चाहते हैं। मैं अपने देश की मिट्टी को बस पहचान लिखता हूं। मेरा मजहब न तुम पूछो, मैं तो हिन्दुस्तान लिखता हूं॥-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News