सुरंग के उस पार कोई ‘दीया तो टिमटिमाए’

punjabkesari.in Friday, Jul 17, 2020 - 05:06 AM (IST)

रोगियों की संख्या 30,000, मरने वालों का आंकड़ा 500 पार और कोरोना महामारी का एक बार फिर उन इलाकों में प्रसार जहां स्थिति काबू में लगने लगी थी, डरावना मंजर पेश कर रहा है। एक बार फिर से लॉकडाऊन का दौर शुरू, एक बार फिर आंकड़े डरानेे लगे हैं। समाज में भविष्य के प्रति भय से मानसिक बीमारी बढ़ रही है, अवसाद के मामले चिंताजनक हैं, दोबारा लॉकडाऊन का सीधा मतलब है कि जो मकसद अनलॉक-1 और -2 के जरिए हासिल करना चाहते थे वह विपरीत दिशा में चलेगा। जो प्रवासी मजदूर काम पर पहुंचे हैं वे फिर बेरोजी होंगे, जो घर रह गए हैं वे ‘न लौटने’ के लिए कृतसंकल्प होंगे, मशीनें जो झाड़-पोंछ कर चलाने की प्रक्रिया में थीं, फिर से धूल फांकने लगेंगी, अर्थ-व्यवस्था का पहिया चलना एक सतत प्रक्रिया है। 

एम.एस.एम.ई. से  कर्ज भी ले लिया है लेकिन अगर उत्पादन नहीं शुरू हुआ तो वे सरकार का कर्ज तो छोडि़ए ब्याज भी नहीं दे पाएंगे, मंदी और बढ़ेगी। क्या सरकार ने लॉकडाऊन खोलने में अदूरदॢशता का परिचय दिया? क्या उसे अंदाजा नहीं था कि इस रोग का प्रसार ऊपरी वर्ग से निचले वर्ग में हो रहा है लिहाजा सामुदायिक प्रसार में वक्त ज्यादा लगेगा? बेहद संक्रामक बीमारी कोरोना ने पूरी दुनिया को पिछले 6 महीने से अपनी  चपेट में ले रखा है। इस महामारी से बचना है तो घर से न निकलें लेकिन भूख से नहीं मरना है तो घर से निकलना मजबूरी भी है। लिहाजा पूरी दुनिया ने एक समझौता किया है इस बीमारी के साथ जीने का। कोई वैक्सीन फिलहाल नहीं बन सकी है। कोई मुकम्मल दवा का ईजाद भी नहीं हो सका है। जिन देशों या शहरों में रोग का प्रभाव आंकड़ों के हिसाब से कम दिखने लगा था वहां अचानक फिर से कोरोना का हमला हुआ है। 

इसका ताजा उदाहरण है बेंगलुरू जिसके बारे में 17 जून को सरकार की सबसे बड़ी स्वास्थ्य नियामक संस्था आई.सी.एम.आर. की टास्क फोर्स के सदस्य डा. गिरधर आर. बाबू ने कहा था ‘‘एक वाक्य में बेंगलुरू मॉडल की सफलता को समेटना हो तो कहा जा सकता है ‘‘बेहतरीन कांटैक्ट ट्रेसिंग’’ उन्होंने सारे राज्यों से यह मॉडल लागू करने की वकालत भी की लेकिन दो हफ्ते बाद ही कर्नाटक की इस राजधानी के आंकड़े बताने लगे कि भारत के औसत से 3 गुना मामले प्रति लाख इस शहर में अचानक होने लगे हैं और स्थिति नियंत्रण के बाहर हो रही है। कोरोना पलट कर वापस हमला कर रहा है। और वह भी पहले से ज्यादा क्रूरता के साथ। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लगातार बताया कि कोरोना दोबारा पलट कर आ सकता है और तब वह पहले से ज्यादा घातक रूप में होगा। 

ठीक होने के बाद भी प्रभाव
कोरोना महामारी प्रबंधन में लगे एम्स के निदेशक का मानना है कि कुछ मरीजों को ठीक होने के बाद दिमागी, किडनी व श्वसन संबंधी समस्याए बढ़ीं और कुछ अन्य मामलों में फेफड़े पत्थर की तरह सख्त हो रहे हैं यानी ऐसे मरीजों को घर पर भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है। मंत्रालय ने उन सभी डाक्टरों को जो देश भर के अस्पतालों के आई.सी.यू. में कोरोना का इलाज कर रहे हैं, दिल्ली के एम्स से सीधा जोड़ कर उनसे फीडबैक लेना शुरू किया है।

इसी दिशा में लंदन के किंग्स कॉलेज के एक ताजा अध्ययन में पाया गया कि कोरोना के खिलाफ रोगियों में जो एंटीबाडीज विकसित भी हुए हैं वे कुछ दिनों में कमजोर पड़ते जा रहे हैं यानी रोग का दोबारा होने का खतरा। अध्ययन ने बताया कि कोरोना वायरस के प्रभाव को खत्म करने वाले एंटीबाडीज 18 से 65 दिनों में 2 से 23 गुना तक कम हुए जा रहे हैं। अभी तक यह माना जाता था कि एंटीबाडीज अगर एक बार किसी वायरस को प्रभावहीन करती है तो वह स्थायी रहता है। लेकिन कोरोना के मामले में 60 प्रतिशत रोगियों में वायरस के हमले के दौरान एंटीबाडीज अपनी चरम स्थिति (टाइटर) तक विकसित होती है लेकिन 65 दिन बाद ये एंटीबाडीज मात्र 16.7 फीसदी रह जाती हैं। 

हर्ड इम्युनिटी इस रोग में नहीं पनपेगी
तीन सप्ताह पहले चिकित्सा विज्ञान भी मानता रहा है कि जब कोई महामारी काफी फैल जाती है तो सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्युनिटी) स्वत: विकसित हो जाती है। मुंबई का शेयर बाजार भी लॉकडाऊन के दिन से आज तक 40 फीसदी इस उम्मीद में बढ़ गया कि वैक्सीन आएगी और सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। मानव स्वभाव है कि संकट के शुरूआत में तो घबराता है पर फिर अताॢकक आशावादिता उसे जीने का सहारा देती है।

इसी भाव से दुनिया के तमाम पश्चिमी मुल्क भी कोरोना महामारी के बावजूद झुंड में घूमते रहे यह मान कर कि महामारी जब सबको हो जाएगी तो रोग का एंटीबाडी (प्रतिरोधी प्रोटीन) इतना प्रबल विस्तार लेगा कि रोग खत्म हो जाएगा। लेकिन इस बीमारी के दुनिया को चपेट में लेने के लगभग 6 माह बाद एक ही दिन दो खबरें यह बता रही हैं कि इस संकट का फिलहाल कोई अंत नहीं है। पहली खबर है जिसमें लांसेट द्वारा स्पेन में किए गए व्यापक शोध और उसका दो जर्मन वैज्ञानिकों द्वारा किया गया विश्लेषण बताता है कि कोरोना के मामले में हर्ड इम्युनिटी पैदा होना ‘लगभग असम्भव’ है। यानी यह रोग बना रहेगा, फैलेगा और कोई भी संक्रमण से नहीं बचेगा। 

हां, घातक कितना होगा यह हर व्यक्ति के अपने इम्युन सिस्टम की ताकत पर निर्भर करेगा। अमरीका की जानी-मानी शैक्षिक संस्था एम.आई.टी. के एक ताजा शोध ने बताया कि अगर वैक्सीन न बना तो वर्ष 2021 के मार्च-मई के बीच भारत में हर रोज 2.83 लाख रोगी होंगे जबकि दुनिया में करीब 25 करोड़ लोग संक्रमित और 18 लाख लोग मर चुके होंगे। वैसे रोग की दवा का अभी तक कोई नामो-निशान नहीं। वैक्सीन पर पूरी दुनिया में पतंगबाजी हो रही है। कुछ देश या संस्थाएं कहती हैं कि ‘‘वैक्सीन बना लिया, बस ट्रायल हो रहा है।’’ 

जबकि उसके ठीक दो दिन बाद उसके दूने वैज्ञानिक और संस्थाएं जिनमें विश्व स्वास्थ्य संगठन भी है, कहते हैं कि इतनी जल्दी वैक्सीन बनाना असंभव है। ऐसे में दुनिया के 700 करोड़ लोगों के जीने के लिए एक ही आशा की किरण थी ....एक भरोसा कि जैसा कि पूर्व में कई अन्य महामारियों में पहले हो चुका है इसका भी कभी न कभी अंत होगा यानी ‘हर्ड इम्युनिटी’ विकसित होगी। नए शोध से जीने का वह सहारा भी जाता रहा।-एन.के.सिंह


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News