आजादी के 75 सालों का लेखा-जोखा और हमारा भविष्य

punjabkesari.in Thursday, Dec 30, 2021 - 04:32 AM (IST)

अब से कुछ महीने बाद देश अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह समय आत्ममंथन का है। यह समय यह जांचने का है कि हमने कितनी दूरी तय की है। यह समय हमारी उपलब्धियों की प्रशंसा करने तथा इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का भी है कि क्या हासिल करने में हम असफल रहे हैं और इतना ही महत्वपूर्ण यह है कि क्या हम स्वतंत्रता सेनानियों तथा संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं, जैसा वे देश को चाहते थे अथवा जो उन्होंने देश को लेकर सपना देखा था? 

निश्चित तौर पर यदि बहुत अच्छा नहीं तो कुछ क्षेत्रों में हमने अच्छा किया है। कुछ अन्य में हम संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच सके तथा कुछ अन्य पहलुओं में ऐसा लगता है जैसे हम पीछे लौट रहे हों। जब ब्रिटिश भारत में पहुंचे तो भारत निश्चित तौर पर ‘सोने की चिडिय़ा’ था जिसका विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में 25 प्रतिशत हिस्सा था। 1820 तक यह गिर कर 16 प्रतिशत तथा 1870 तक 12 प्रतिशत तक रह गया और जब ब्रिटिशर्ज ने 75 वर्ष पूर्व देश छोड़ा तो यह मात्र 4 प्रतिशत दर्ज किया गया। यह अब 3.8 प्रतिशत पर खड़ा है, हमारे गौरवशाली अतीत से बहुत दूर। 

एक ऐसा देश जिसे प्राचीन विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा के लिए जाना जाता था, 1947 में साक्षरता दर मात्र 12 प्रतिशत थी। अब आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कुल साक्षरता दर 72.9 प्रतिशत है यद्यपि महिलाओं के लिए यह अभी भी राष्ट्रीय औसत पर 64.64 प्रतिशत बनी हुई है। स्वतंत्रता के उदय के समय भारत में औसत जीवन प्रत्याशा मात्र 32 वर्ष थी। विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल जीवन प्रत्याशा 70.8 वर्ष थी। यद्यपि स्वस्थ जीवन प्रत्याशा मात्र 60.3 वर्ष थी। स्वास्थ्य सेवाओं में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ये अभी भी घटिया बनी हुई हैं। 1947 में स्वतंत्रता के समय प्रति व्यक्ति आय मात्र 249 रुपए वार्षिक थी। 2015 तक यह बढ़ कर 88,533 रुपए प्रति वर्ष हो गई और अब इसकी गणना प्रति वर्ष 1.35 लाख रुपए के अनुसार होती है। यद्यपि मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए यह लोगों तथा देश की समृद्धि की सूचक नहीं है। 

कृषि के क्षेत्र में देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है। एक ऐसे देश  से जिसमें खाद्यान्न की अत्यंत कमी थी तथा लोग भूख से मर रहे थे, यह एक खाद्यान्न आधिक्य वाला देश बन गया है। एक ऐसा समय था जब हमें चैरिटी पर निर्भर होना तथा अमरीका से घटिया गुणवत्ता के अनाज का इंतजार करना पड़ता था। इसका श्रेय हरित क्रांति को जाता है कि अब हम एक मजबूत स्थिति में हैं। हालांकि किसानों की आर्थिक स्थिति उसी अनुपात में नहीं सुधरी है। एक ऐसे देश से जो 1947 में सुईयों के लिए भी विदेशों पर निर्भर था, हमने एक लम्बा सफर तय किया है तथा वस्तुओं के उत्पादन तथा निर्यात में अच्छी कारगुजारी दिखा रहे हैं। अब आत्मनिर्भर बनने का नारा प्रचलित है तथा हम न केवल नागरिकों के इस्तेमाल के लिए वस्तुओं का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि उच्च स्तर के उपग्रह, विमान तथा हथियार भी बना रहे हैं। 

इसी तरह हमने ब्रिटिश द्वारा छोड़े गए आधारभूत ढांचे की बहुत घटिया स्थिति से अब एक उन्नत आधारभूत ढांचा विकसित कर लिया है। रेलवे नैटवर्क मात्र लगभग 55,000 किलोमीटर था जो अब बढ़ कर 1,26,000 किलोमीटर हो गया है। उच्च मार्ग नैटवर्क लगभग 21,000 कि.मी. से बढ़ कर 1,36,000 किलोमीटर हो गया है। वर्तमान सरकार को हालिया वर्षों के दौरान अच्छी गुणवत्ता के उच्च मार्गों तथा एक्सप्रैस वेज विकसित करने का श्रेय दिया जाना चाहिए। निश्चित तौर पर हमने स्वतंत्रता के समय से काफी लम्बा सफर तय किया है लेकिन कुछ क्षेत्रों में हम अभी भी पिछड़े हुए हैं तथा इनमें काफी सुधार की जरूरत है। जिस तरह की क्षमता हमारे पास है, कोई कारण नहीं कि हम विश्व विजेता न बन सकें, विशेषकर  जब हम विश्व में सबसे युवा देश हैं जिसकी लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। 

स्वतंत्रता के बाद से हमारी नियमित प्रगति के कारणों में से एक साम्प्रदायिक तनावों तथा झगड़ों के कुछ छोटे समयकालों के अतिरिक्त सामान्य तौर पर शांतिपूर्ण माहौल का होना है। देश ने तीन युद्ध, लाइसैंस राज, विमुद्रीकरण तथा कोविड महामारी के प्रभाव के बाद आर्थिक पतन देखा है। यद्यपि दुर्भाग्य से कुछ क्षेत्रों में हम वास्तव में पीछे जा रहे हैं तथा देश को भी पीछे ले जा रहे हैं। इन दिनों  के समाचारों की कुछ सुर्खियां हमारे स्वतंत्रता सेनानियों तथा उन लोगों को, जिन्होंने संविधान का निर्माण किया, को शर्मसार कर देंगी। 

क्या उन्होंने एक ऐसे देश का सपना देखा था जहां स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी जाति तथा पंथ एक संवेदनशील मुद्दा बने हुए हैं। जहां विश्व आधुनिकीकरण के साथ आगे बढ़ रहा है, सिवाय उन क्षेत्रों या देशों के जहां मुस्लिम आतंकवाद ने अपनी पकड़ बना रखी है, हम साम्प्रदायिक राजनीति में और अधिक उलझते जा रहे हैं। जहां हमें प्राचीन भारतीय समझ तथा हमारी महान संस्कृति, जिसमें सभी समुदायों के लिए सहिष्णुता शामिल थी, के लिए बहुत गर्व करने की जरूरत है, हिंदुत्व के नाम पर ये आत्म-प्रवृत्त जख्म राष्ट्र की प्रगति तथा विकास के लिए अच्छे नहीं हैं। 

हमें जाति, पंथ तथा लिंग की परवाह न करते हुए समाज के सभी वर्गों को साथ लेने की जरूरत है तथा यह सुनिश्चित करने की कि हम वैसी गहरी खाई में नहीं गिरेंगे जैसे कि विश्व में अन्य स्थानों पर कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों द्वारा खुद के लिए खोदी गई हैं। परमात्मा के लिए हमें उत्थान, विकास तथा प्रगति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ताकि सभी नागरिक स्वतंत्रता के फल का मजा उठा सकें।-विपिन पब्बी
 


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