(अ) सहकारी संघवाद देश को कहां ले जाएगा

punjabkesari.in Sunday, May 08, 2022 - 04:19 AM (IST)

सन् 2014 में सत्ता में आने के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिपहसालारों, जिन्हें हिंदी/अंग्रेजी के अनुप्रास अलंकार युक्त शब्द और फ्रेज गढऩे में महारत हासिल है, ने को-आप्रेटिव फैड्रलिज्म (सहकारी संघवाद) का नारा दिया। 

प्रधानमंत्री ने जब इसका अपने गुड गवर्नैंस के वादे के एक पड़ाव के रूप में जनमंचों से ऐलान किया तो जनता को लगा कि यह मोदी के व्यक्तित्व के विस्तार का हिमालयी रूप है और अब राज्यों की सरकारों को केंद्र समान भाव से देखेगी, सबको साथ ले कर चलेगी और सत्ता किस दल की है, यह केंद्र से सम्बन्ध का आधार नहीं होगा। चूंकि यह फ्रेज 2 शब्दों से बनी है, लिहाजा यह भी विश्वास हुआ कि केंद्र सभी सरकारों को सहकार भाव से देखेगा और संविधान की तीनों अनुसूचियों के मुताबिक केंद्र और राज्यों के कार्य विभाजन का पूरा सम्मान होगा। 

8 साल बाद परिदृश्य ठीक उलट गया। हाल ही में प्रधानमंत्री के खिलाफ गुजरात के युवा और प्रभावशाली दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने एक टिप्पणी क्या ट्वीट किया, भारतीय जनता पार्टी इतनी आहत हो गई कि असम के एक पार्टी नेता ने मुकद्दमा कर दिया। राज्य में ‘अपनी सरकार’ है, लिहाजा सक्षम पुलिस ने हजारों किलोमीटर दूर आकर गुजरात से इस नेता को उठा लिया। असम में 3 दिन बाद जब कोर्ट ने कोई खास मामला न पाते हुए जमानत दे दी तो उसी सक्षम पुलिस ने बाहर निकलते ही मेवाणी को फिर गिरफ्तार कर लिया। 

इस बार आरोप था कि उन्होंने गिरफ्तारी के बाद लाए जाने के दौरान पुलिस टीम में शामिल महिला दारोगा को गलत ढंग से छुआ। जरा आरोप पर गौर कीजिएगा ...गुजरात के लोकप्रिय नेता द्वारा असम में पुलिस टीम की दारोगा से छेडख़ानी और जब पहली दफा में जमानत पर बहस हो रही थी तो पुलिस ने कभी यह आरोप नहीं लगाया था। 

दूसरा ताजा केस ठीक इसी किस्म का है पर किरदार बदल गए। दिल्ली के एक युवा भाजपा नेता ने राज्य के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ एक धमकी भरा ट्वीट किया। दर्द हुआ पंजाब की केजरीवाल की पार्टी की सरकार को। उसकी पुलिस दिल्ली आकर दूसरे राज्य में गिरफ्तारी के सी.आर.पी.सी. के प्रावधानों की धाराओं 48 और 79 का उल्लंघन करते हुए इस नेता को उठा ले गई। दफा 79 के तहत वारंट जरूरी है और अगर वह संभव न हो तो पुलिस अभियुक्त का पीछा करते हुए जा सकती है। लेकिन दफा 48 में यह स्पष्ट नहीं है कि ‘पीछा’ करते हुए अगर दूसरे राज्य में जाना हो तो क्या करना चाहिए। 

दिल्ली हाई कोर्ट ने सन् 2019 में इसके लिए बजाप्ता प्रक्रिया निर्धारित की, जिसके अनुसार बाहर की पुलिस को अपने सीनियर से अनुमति लेकर स्थानीय थाने को जाने बारे अवगत करना होगा और वह थाना मदद करने को बाध्य होगा। फिर गिरफ्तारी के बाद स्थानीय अदालत से ले जाने की इजाजत लेनी होगी या अगर मूल स्थान पर 24 घंटे से पहले पहुंचते हैं तो वहां की कोर्ट के संज्ञान में लाना होगा। 

असम पुलिस का गुजरात पुलिस से विवाद का कोई कारण नहीं था क्योंकि ‘अपनी सरकार’ थी। पंजाब पुलिस को यह ‘लाभ’ नहीं था, क्योंकि दिल्ली में पुलिस केंद्र सरकार के पास यानी दूसरे दल की है ‘अपनी नहीं’। लिहाजा रास्ते में पडऩे वाली ‘अपनी सरकार’ से केंद्र सरकार की पुलिस ने गुहार लगाई। हरियाणा पुलिस ने वही तत्परता दिखाई जो असम और पंजाब की पुलिस ने अपनी-अपनी सरकारों के लिए दिखाई थी। पंजाब पुलिस की टीम को हरियाणा पुलिस ने घेर लिया। ‘बिरादरी की दिल्ली पुलिस’ भी पहुंच गई क्योंकि पंजाब पुलिस पर अपहरण का मुकद्दमा लिखा गया, आखिर दोनों राज्यों की सत्ता में भी तो सरकार-सरकार भाई-भाई हैं। 

अभी कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल में एक अधिकारी के घर छापा मारने गई सी.बी.आई की टीम के साथ वहां की पुलिस ने क्या किया, यह सबने देखा। ई.डी. और आई.टी. की टीम कई बार गैर-भाजपा शासित राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और उसकी पुलिस के असहयोग और गुस्से का शिकार बनती हैं। 

तेल पर टैक्स से मालामाल कौन : कोरोना पर राज्यों की तैयारी पर चर्चा के नाम पर प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई। पर इस एकतरफा संवाद का मुद्दा हो गया यह आरोप कि ‘कुछ राज्य तेल पर वैट या सेल्स टैक्स कम न करके जनता के साथ अन्याय कर रहे हैं।’ निशाना थे गैर-कांग्रेस राज्य, जिनके मुख्यमंत्री ठगे महसूस करते हुए बाहर निकल कर अलग-अलग प्रैस कांफ्रैंस कर हकीकत बताते रहे कि केंद्र ने कितना बकाया उन्हें आज तक नहीं दिया है। 

अब (अ)सहकारी संघवाद का नमूना देखें। सन् 2014-15 में तेल पर वैट या सेल्स टैक्स के रूप में देश भर के राज्यों को कुल 1,37,157  करोड़ रुपए की आय हुई थी, जबकि केंद्र को एक्साइज ड्यूटी के रूप में इस मद में मात्र 99,068 करोड़ की, लेकिन उसके बाद आज तक केंद्र की आय लगातार बढ़ती हुई विगत वर्ष 5 गुना बढ़कर 2020-21 में 3,72,970 करोड़ तक पहुंची, जो 21-22 में करीब 5 लाख करोड़ होने की उम्मीद है, जबकि राज्यों की इस मद में कुल आय मात्र 2,02,937 करोड़ हुई। यानी केंद्र को 5 गुना आय जबकि राज्यों को मोदी के 7 वर्षीय कार्यकाल में मात्र 40 प्रतिशत बढ़ौतरी। ऐसे में जनता को राहत देने के लिए किसको पैट्रोल, डीजल पर टैक्स कम करना चाहिए? कौन है जो जनता के साथ अन्याय कर रहा है?-एन.के. सिंह
 


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