‘शहरी-नक्सली राष्ट्र के लिए एक नया खतरा’

punjabkesari.in Saturday, Feb 13, 2021 - 05:09 AM (IST)

शहरी -नक्सली माक्र्सवादी, माओवादी, लेनिनवादी विचारधारा के आतंकवादी हैं। नक्सलवाद माक्र्सवाद-लेनिनवाद का एक अधिक हिंसक, उग्र और आतंकवादी रूप है, जो मौजूदा राष्ट्र को उखाड़ फैंकने और उनके वर्ग-राज्य रहित समाज की स्थापना करने में विश्वास रखता है। इसलिए, राष्ट्रवाद की भावना का विचार उनके विचारों से मेल नहीं खाता है। 

शहरी-नक्सली उनके समर्थक और प्रवर्तक हैं जो भारत के शहरी नागरिकों के बीच विचारों, प्रचार और व्याख्यानों के माध्यम से लड़ने का दावा करते हैं। हथियारों और गोला-बारूद के साथ ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जमीन पर लडऩे वाले असली नक्सलियों के विपरीत, शहरी-नक्सल शहरी जीवन की विलासिता में रहते हैं और राष्ट्र की गतिशीलता को बाधित करने का लक्ष्य रखते हैं जहां वे अपने आतंकवाद के साथ रहते हैं। उनका मानना है कि हर चीज केवल आर्थिक-संरचना का एक प्रतिबिंब है और नाते, धर्म, राष्ट्रवाद, संस्कृति जैसे अन्य सभी पहलुओं को वे झूठा मानते हैं और गरीबों के लिए एक अफीम के रूप में परिभाषित करते हैं। 

शहरी-नक्सली कम्युनिस्ट विचारक ग्राम्स्की से अपनी वैचारिक-जड़ें जोड़ते हैं, जो कहते हैं कि राष्ट्र अपनी जनसंख्या को न केवल राजनीतिक-सैन्य ‘संरचना के बल पर, बल्कि संस्कृति की सहमति’ यानी आधिपत्य द्वारा नियंत्रित करता है। इसलिए न केवल राष्ट्र को नष्ट किया जाना चाहिए, बल्कि जो विचार ‘राष्ट्र की भावना’ को बढ़ावा देता है, उसको भी नष्ट कर देना चाहिए। उनका अंतिम उद्देश्य मौजूदा राष्ट्र-राज्यों और राष्ट्रीयता की भावना को उखाड़ फैंकना और उन्हें वर्ग-चेतना की भावना में बदलना है। जब तक वे साम्यवाद को लाने में सफल नहीं होते हैं, तब तक वे अपनी विचारधारा से मौजूदा राष्ट्र राज्य को अस्थिर करने और अराजकता को प्रोत्साहित करते रहेंगे ताकि वे सत्ता का मुकाबला कर सकें और माक्र्सवादी-ईको-सिस्टम को स्थापित कर सकें। 

इसके लिए वे कोई भी रास्ता अपना सकते हैं; अतिरिक्त-संवैधानिक, गैर-कानूनी, झूठ फैलाना, गलत सूचना और विघटन, सोशल-मीडिया, कानूनी मुकद्दमे और कानूनी व्यवस्था में खामियों का उपयोग आदि। वे हिंसक और आतंकवादी साधनों को सही ठहराने से बाज नहीं आते। हैरानी की बात है कि वे धार्मिक, जातिगत, क्षेत्रीयता या जनजातीय जैसी निष्ठा से घृणा करते हैं, लेकिन वे हिंसा भड़काने, अराजकता पैदा करने और राष्ट्र को अस्थिर करने के लिए इन धार्मिक-जातिगत उपायों का उपयोग करते हैं। वे सरकार का विरोध करने का दावा करते हैं लेकिन सरकार का विरोध करने की आड़ में वे देश का विरोध करते हैं। वास्तव में यह आतंकवादी हैं क्योंकि वे अलगाव और अराजकता के विचार को फैलाते हैं। 

शहरी-नक्सलियों की दो श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी में वे हैं जो सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं और सरकार का हिस्सा न होकर सिस्टम के बाहर से आख्यान निर्धारित करते हैं। उनके पास फिल्म निर्माताओं, महंगे-वकीलों, पुरस्कृत निर्माता, विश्वविद्यालय-प्रोफैसर, इतिहासकार, समाचार-चैनलों के एंकर, लेखक, तथाकथित बुद्धिजीवी, कार्यकत्र्ता, कवि, नागरिक अधिकार कार्यकत्र्ता, पर्यावरणविद् और बहुत से लोग होते हैं। शहरी-नक्सली भारत के खिलाफ एक ‘विचार-युद्ध’ लड़ रहे हैं, हमें एक राष्ट्र के रूप में उनके विचारों और मंशा को उजागर करना है।-तरुण चुघ (भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री)


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