एयर इंडिया की सफलता के लिए एक नया अध्याय शुरू

punjabkesari.in Friday, Oct 15, 2021 - 04:03 AM (IST)

68 वर्षों बाद एयर इंडिया का महाराजा 18,000 करोड़ रुपए की बोली के साथ टाटा समूह के पास वापस लौट आया है जिनमें से 2700 करोड़ रुपए नकद है। इस सौदे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आॢथक नीति में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम स्थापित किया है। यह दो दशकों बाद किसी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के निजीकरण की ओर पहला प्रमुख कदम है।

टाटा सन्स फिर से एयर इंडिया का नियंत्रण प्राप्त कर लेगा जिसे बड़े घाटे तथा कर्जों  व सरकार द्वारा बड़े कोष उपलब्ध करवाने के बावजूद बेच पाना बड़ा कठिन बना हुआ है। राष्ट्रीय विमान सेवा को चलाने में यह सत्ताधारी सरकार में व्यावसायिकता के अभाव का स्पष्ट मामला है। सरकार के साथ समस्या यह है कि उसने कर्ज से लदी एयरलाइन से कभी भी व्यावसायिक तरीके से नहीं निपटा। अपने सफर के लगभग 6 दशकों के दौरान इसने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। 

ऐतिहासिक तौर पर कहें तो एयरलाइन की स्थापना 1932 में जे.आर.डी. टाटा ने की थी। तब इसे टाटा एयर लाइन्स कहा जाता था। 1946 में टाटा सन्स के विमानन खंड को एयर इंडिया के तौर पर सूचीबद्ध किया गया है। 1948 में कुछ यूरोपियन देशों के लिए उड़ानों के साथ एयर इंडिया इंटरनैशनल लांच की गई। यह अंतर्राष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी सांझेदारियों में से एक थी। 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण हो गया और लगभग 40 वर्षों के लिए इसका घरेलू वायु क्षेत्र पर प्रभुत्व रहा। इसके बाद 1994-1995 में  निजी एयर लाइन्स घरेलू बाजार में प्रविष्ट हुईं जिन्होंने सस्ती टिकटें ऑफर कीं। उस प्रतिस्पर्धी बाजार में एयर इंडिया ने अपनी बाजार हिस्सेदारी गंवानी शुरू कर दी। इसके बाद पूरा वैमानिक परिदृश्य नाटकीय रूप से बदलना शुरू हो गया। 

टाटा की एयर इंडिया में 100 फीसदी हिस्सेदारी है। उन्हें इसकी एयर इंडिया एक्सप्रैस नामक कम लागत की इकाई में भी 100 फीसदी हिस्सेदारी मिली तथा संयुक्त उपक्रम एयर इंडिया सैट्स (एस.ए.टी.एस.) की जमीनी देख-रेख में 50 फीसदी हिस्सेदारी। 141 विमानों के अतिरिक्त इसे 173 गंतव्यों का एक नैटवर्क भी प्राप्त हुआ है। इनमें 55 अंतर्राष्ट्रीय गंतव्य शामिल हैं। इस तरह से टाटा को एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइन्स तथा महाराजा जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड्स का मालिकाना हक मिल गया। यह स्पष्ट है कि टाटा समूह एयरलाइन को वापस प्राप्त करने के लिए काफी उत्सुक था जिसका संचालन मूल रूप से इसके पास था। यह समझ में आता है क्योंकि समूह की जड़ें इतिहास में हैं और एक विरासत है। अंग्रेजी के एक अखबार के अनुसार राजग सरकार का राजनीतिक नेतृत्व एयरलाइन का निजीकरण करने को उत्सुक था, इसके बावजूद एयरलाइन बिक्री प्रक्रिया काफी कठिन तथा थकाऊ थी। आखिरकार यह करदाताओं का धन था जो आधिकारिक तौर पर एयर इंडिया को चलाए रखे हुए था। 

टाटा सन्स के सेवामुक्त चेयरमैन रतन टाटा का कहना है कि हम एयर इंडिया को दोबारा खड़ा करने के लिए काफी प्रयास करेंगे, आशा है कि यह विमानन उद्योग में टाटा समूह की उपस्थिति को एक बहुत मजबूत बाजार अवसर उपलब्ध करवाएगा। यह निश्चित तौर पर बहुत बड़े दावे नहीं हैं। हम टाटा ग्रुप की व्यावसायिक विशेषज्ञता से वाकिफ हैं। हम एयर इंडिया को बहुत बढिय़ा तरीके से संचालित करने के लिए समूह पर निर्भर कर सकते हैं। अनुभवी विमानन विशेषज्ञ मानते हैं कि टाटा ग्रुप के साथ एयर इंडिया के पास अपने पुराने वैभव तक लौटने के अवसर हैं। यहां विशेषज्ञ संगठन के भीतर लाल फीताशाही तथा कुप्रबंधन की ओर इशारा करते हैं, वहीं कई बाहरी कारकों ने एयर इंडिया के लिए चीजों को और भी खराब बना दिया। 

ये कारक हैं : रुपए का अवमूल्यन, कर्ज की बढ़ती लागत, एविएशन टर्बाइन फ्यूल की ऊंची कीमत। एयर इंडिया के फायदे वाली चीजों में से एक है इसके अंतर्राष्ट्रीय स्लॉट, जो सही हाथों में होने पर वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों को स्पर्धा दे सकती है। खैर, सब कुछ भविष्य के व्यावसायिक माडल के विकास पर निर्भर करता है। मुझे विश्वास है कि टाटा सन्स के पास इस दिशा में जरूरी विशेषज्ञता है। जो भी हो, एयर इंडिया के लिए अब एक नया अध्याय शुरू हुआ है।

मुझे विश्वास है कि टाटा समूह की प्रतिष्ठित व्यवस्था इसे नई ऊंचाइयों की ओर ले जाएगी। इसके विमानन पोर्टफोलियो में एयर इंडिया के शामिल होने से टाटा समूह को इसके अंतर्राष्ट्रीय संचालनों में एक महत्वपूर्ण बढ़त मिलेगी क्योंकि इसे 1800 अंतर्राष्ट्रीय लैंडिंग तथा घरेलू हवाई अड्डों के पार्किंग स्लॉट्स तक पहुंच के अतिरिक्त विदेशी हवाई अड्डों पर 900 स्लॉट्स तथा 4400 घरेलू स्लॉट्स तक पहुंच मिलेगी। इनमें लंदन तथा न्यूयार्क जैसे प्राइम गंतव्यों तक रूट  तथा स्लॉट शामिल हैं। अब हम यह कह सकते हैं कि ‘नमस्ते टाटा’। गुडलक।-हरि जयसिंह


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