चुनावों से पहले देश में राजनीतिक यात्राओं की बाढ़

punjabkesari.in Thursday, Aug 19, 2021 - 04:49 AM (IST)

चुनाव आते ही देश में मतदाताओं के वोट बटोरने के लिए सरकारें रियायतों की घोषणाएं शुरू कर देती हैं। इसी शृंखला में अगले वर्ष होने वाले चुनावों से पहले चंद सरकारों ने अनेक सुविधाओं की घोषणा की है और अब मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक यात्राओं की बाढ़ आ गई है। भाजपा ने 16 अगस्त से अपने जनसंपर्क अभियान के तहत ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ शुरू कर रखी है। इसके तहत जहां हरियाणा में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव व हिमाचल में अनुराग ठाकुर को इन जन आशीर्वाद यात्राओं में शामिल किया गया है वहीं उत्तर प्रदेश पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ लखनऊ से शुरू हुई, जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार में शामिल मंत्रियों पंकज चौधरी, कौशल किशोर, अजय मिश्र आदि जनता का आशीर्वाद लेने के लिए रवाना हुए। 

भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के  सहयोगी दल ‘रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया’ (आर.पी.आई.) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में अनुसूचित जाति के मतदाताओं को ‘राजग’ की ओर आकॢषत करने के लिए ‘बहुजन कल्याण यात्रा’ निकालने की घोषणा की है, जो 26 सितम्बर को गाजियाबाद से शुरू होकर 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर लखनऊ में समाप्त होगी। समाजवादी पार्टी का समर्थन करने वाले 2 दल ‘जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट)’ और ‘महान दल’ 2 यात्राएं निकाल रहे हैं। ‘जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट)’ द्वारा 16 अगस्त से बलिया से शुरू ‘भाजपा हटाओ प्रदेश बचाओ जनवादी क्रांति यात्रा’ का जिला कार्यकत्र्ता सम्मेलन 31 अगस्त को अयोध्या में समाप्त होगा तथा क्रांति यात्रा की समाप्ति लखनऊ के रामाबाई मैदान में होगी। ‘महान दल’ के नेता केशव देव मौर्य के नेतृत्व में पीलीभीत से निकाली जा रही ‘जन आक्रोष यात्रा’ 27 अगस्त को इटावा में समाप्त होगी। 

कांग्रेस 19 अगस्त से उत्तर प्रदेश में ‘जय भारत महासंपर्क अभियान’ की शुरूआत करने जा रही है, जिसके जरिए उसने तीन दिनों में 90 लाख लोगों से सीधे संपर्क करने का लक्ष्य रखा है। जहां इन यात्राओं आदि ने संबंधित राज्यों में राजनीतिक माहौल गर्मा दिया है, वहीं इन यात्राओं के दौरान कुछ रोचक दृश्य भी देखने को मिल रहे हैं : 

महाराष्ट्र के पालघर में जन आशीर्वाद यात्रा के पहले दिन केंद्रीय राज्यमंत्री भारती पवार और उनके साथी भाजपा नेताओं के पालघर में प्रवेश करते ही आदिवासी समुदाय के सदस्यों ने नृत्य के साथ उनका स्वागत किया तो स्वयं भारती पवार ने भी उनके साथ नाचना शुरू कर दिया। महाराष्ट्र के ठाणे में केंद्रीय मंत्री कपिल पाटिल की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान कोविड नियमों के उल्लंघन को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई है। गुजरात में कांग्रेस ने भाजपा की ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ के जवाब में ‘कोविड-19 न्याय अभियान’ चलाने का निर्णय किया है। पंजाब में अगले वर्ष के चुनावों को देखते हुए शिअद सुप्रीमो सुखबीर सिंह बादल ने 18 अगस्त से ‘मिशन 100’ की शुरूआत की है। ‘गल्ल पंजाब दी’ अभियान के अंतर्गत वह 100 दिनों की यात्रा के दौरान राज्य के 100 विधानसभा क्षेत्रों में 700 जनसभाएं करेंगे। 

बिहार में निकट भविष्य में चुनाव तो नहीं हैं परंतु वहां भी राजनीतिक यात्राएं जारी हैं। हाल ही में वहां जद (यू) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी बिहार यात्रा का चौथा चरण पूरा किया। उनका कहना है कि वह पार्टी को फिर से नम्बर वन बनाने के लिए राज्य के दौरे कर रहे हैं। इन सब यात्राओं से हट कर ‘अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद’ ने  व्यापार, वृद्धावस्था पैंशन, जी.एस.टी. में सुधार आदि मांगों पर बल देने के लिए 5 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से ‘राजनीतिक अधिकार रथयात्रा’ निकालने का निर्णय लिया है, जो प्रदेश के 106 वैश्य बहुल क्षेत्रों में जाएगी। वैसे तो हमारे नेतागण आम दिनों में जनता से कम मिलते हैं, परंतु इन यात्राओं के दौरान आम लोगों की इनसे मुलाकात हो जाती है और इस दौरान लोगों को चाहिए कि वे नेताओं को उनके किए हुए पुराने और अधूरे वायदों की याद दिलाने के अलावा अपनी तकलीफें बताएं तथा उनसे पूछें कि उन्होंने अतीत में जो वायदे किए थे उन्हें पूरा क्यों नहीं किया। 

लोगों को इस तरह के अभियानों पर निकलने वाले नेताओं के भाषण अपने मोबाइल फोनों में रिकार्ड कर लेने चाहिएं, ताकि समय आने पर वे उनसे इस बारे में जवाबतलबी कर सकें। इसी प्रकार इन यात्राओं के दौरान नेताओं को भी अपने क्षेत्रों में अपने पार्टी वर्करों तथा अन्य लोगों से मिल कर उस क्षेत्र में अपनी पार्टी की जीत-हार के कारणों का पता लगाना और अक्षम तथा गलत काम करने वाले उम्मीदवारों को बदलना चाहिए। इससे उन्हें भविष्य में बेहतर उम्मीदवार चुनने में मदद मिलेगी। इससे लोगों का भी भला होगा और देश भी आगे बढ़ेगा। 

चुनावों से पूर्व मतदाताओं को लुभाने के इसी तरह के प्रयासों के दृष्टिगत हम बार-बार लिखते रहते हैं कि चुनाव पांच वर्ष की बजाय अमरीका और जर्मनी जैसे विकसित देशों की भांति हर चार वर्ष के बाद ही होने चाहिएं। इससे जहां पहला वर्ष सरकारों को अपना कामकाज सुधारने में लग जाएगा वहीं चौथा वर्ष अपनी सरकार बचाने के लिए जनता को सुविधाएं व रियायतें देने में लगेगा। इससे सरकारों के कामों में चुस्ती आएगी और लोगों को सुविधाएं मिलने से उनके काम जल्दी होने लगेंगे।—विजय कुमार    


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