एक बड़ी आपदा हमारी प्रतीक्षा कर रही है

punjabkesari.in Sunday, May 30, 2021 - 04:36 AM (IST)

यदि आप यह सोचते हैं कि कोविड-19 की दूसरी लहर सबसे बड़ा संकट थी जो आपने अपने जीवनकाल में देखा है तो आपको निराशा हो सकती है। कोविड-19 का अनुभव संक्रमित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लिए बुरा रहा है।

चाहे लक्षणों के बिना हो या हल्के लक्षणों के साथ, घर पर अथवा कोविड केयर सैंटर या अस्पताल में ऑक्सीजन पर या आई.सी.यू. में वैंटीलेटर पर आइसोलेट किया गया हो, प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति ने मौत के डर के साथ उस अनुभव को जिया है। मई में कुल मृत्युदर (टी.एफ.आर.) 2 प्रतिशत तक पहुंच गई तथा प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति प्रार्थना कर रहा है कि वह मृतकों में शामिल न हो। 

महामारी प्रभावित दुनिया में रहना ऐसे लोगों के लिए भी उतना ही बुरा अनुभव है जो संक्रमित नहीं हुए। जब हर दिन किसी पारिवारिक सदस्य अथवा मित्र या किसी जान-पहचान वाले अथवा किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में कोई बुरी खबर लाता है जिसकी हम प्रशंसा करते हैं तो यह प्रश्न कि ‘क्या मेरी बारी आएगी और कब?’ प्रत्येक को सताता है। यह अनुभव विशेष तौर पर डाक्टरों, नर्सों, पैरामैडिक्स तथा अस्पताल अटैंडैंट्स के लिए बुरा है। बहुत से अपनी ड्यूटी पर ही मारे गए और अपने परिवारों को भी दुख तथा अनिश्चितता में झोंक दिया। कोविड-19 का अनुभव प्रधानमंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, अन्य मंत्रियों तथा नौकरशाहों के लिए बुरा रहा है।  वे यह जानते हैं और आप भी जानते हैं इसलिए मैं इसे और विस्तार से नहीं कहूंगा। 

और भी बुरा निश्चित है
यद्यपि भविष्य के लिए एक चीज यह है कि अब यह अनिश्चित नहीं है। यह देश के लोगों की आॢथक स्थिति के बारे में है। यह जितना होना चाहिए उससे भी बदत्तर होगा। अधिकतर लोग और अधिक गरीब, कर्ज में डूबे तथा नाखुश होंगे।
जी.डी.पी. के बारे में एन.एस.ओ. के अनुमान हालिया तीन वर्षों में इस प्रकार थे (करोड़ों में) :
2018-19 : 1,40,03,316 रुपए
2019-20 : 1,45,69,268 रुपए
2020-21 : 1,34,08,882 रुपए 

एन.एस.ओ. के अनुसार 2019-20 में जी.डी.पी. में केवल 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (महामारी से पहले का वर्ष) लेकिन 2020-21 में यह 8 प्रतिशत गिर गई (महामारी का पहला वर्ष)। अब हम महामारी के दूसरे वर्ष में हैं तथा एक दिन में संक्रमणों का नया शीर्ष (4,14,280) देखा है तथा एक ही दिन में मौतों का नया शीर्ष (4,529) भी। वर्तमान सक्रिय मामलों की सं या 24,23,829 है। 

आगे देखें 2021-22 में क्या जी.डी.पी. में वृद्धि होगी या सपाट रहेगी अथवा गिर जाएगी? अभी तक के अनुमान सरकार द्वारा पेश किए गए अनुमानों के अलावा उत्साहवद्र्धक नहीं हैं। यहां बहुत से लोग अभी भी सकारात्मक वृद्धि का अनुमान लगाते हैं, कुछ अर्थशास्त्रियों को संदेह है। जो बेहतरीन हम कर सकते हैं वह है 2021-22 में शून्य वृद्धि का अनुमान लगाना तथा आशा रखना कि अंतिम परिणाम बेहतर होगा। 

मात्रात्मक मामलों में जी.डी.पी. का प्रदर्शन स्थिति पर बेहतर रोशनी डालेगा। हमने 2019-20 में मोटे तौर पर 2.8 लाख करोड़ रुपए का संभावित उत्पादन गंवा दिया है। हमने महामारी के पहले वर्ष (2020-21) में 11 लाख करोड़  रुपए का उत्पादन (वास्तविक) गंवा दिया है। शून्य वृद्धि बारे सोचते हुए निरंतर कीमतों पर जी.डी.पी. 2021-22 में 134 लाख करोड़ पर रहेगी। चूंकि भारत को एक विकासशील अर्थव्यवस्था होना चाहिए तथा मामूली 5 प्रतिशत के साथ संभावित वृद्धि बारे सोचने पर 6.7 लाख करोड़ रुपए के उत्पादन का राष्ट्रीय घाटा होगा जिसे जी.डी.पी.में शामिल किया जाना चाहिए। यह सं याएं 3 वर्षों में 20 लाख करोड़ रुपए के उत्पादन के घाटे में शामिल है। 

3 वर्षों में इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन में घाटे का अर्थ नौकरियों में कमी, आय/वेतन में कमी, बचत में कमी, आवासों में कमी, निवेश में कमी, शिक्षा में कमी, स्वास्थ्य देख-रेख में कमी तथा अन्य कमियां होगा। सी.एम.आई.ई. रिपोर्ट के अनुसार  26 मई 2021 को बेरोजगारी दर 11.17 प्रतिशत थी-13.52 प्रतिशत (शहरी) तथा 10.12 प्रतिशत (ग्रामीण)। 2020-21 में हमने लगभग 1 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां गंवा दीं। 

दूसरी लहर में, जो ग्रामीण क्षेत्रों में फैली, का छोटे नगरों तथा गांवों में नौकरियों पर असर पड़ेगा। आंकड़े शहरों से बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास तथा कृषि क्षेत्र में लगभग 90 लाख नौकरियों की वृद्धि का भी संकेत देते हैं : यह एक ऐसे क्षेत्र में नियमित नौकरियां नहीं हो सकतीं जिस पर कामगारों का पहले ही अतिरिक्त बोझ है। इसके अतिरिक्त नौकरियों में कमी एक ऐसे समय पर हो रही है जब कामगारों की प्रतिभागी दर गिर रही है (स्रोत सी.एम.आई.ई.)। 

अधिक लोग गरीब हुए
नौकरियां खोने का अर्थ आय तथा वेतनों में कमी है। आर.बी.आई. के मई 2021 के लिए बुलेटिन में ‘डिमांड शॉक’, विवेकाधीन खर्चों तथा सूची संचय में गिरावट की बात कही गई है। प्रत्येक बाजार में इसका सबूत है।  सी.एम.आई.ई. के प्रबंध निदेशक महेश व्यास का कहना है कि गत 13 माह के दौरान 90 प्रतिशत परिवारों ने अपनी आय में कमी का सामना किया है। अजीम प्रेम जी यूनिवॢसटी द्वारा प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि गृहस्थों को स पत्तियों के खरीदने तथा बेचने और खाद्यान्न उपभोग में कटौती के झटके का सामना करना पड़ा है। विश्वविद्यालय पर किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में दिखाया गया है कि गरीब परिवारों ने अपनी कमाई की तुलना में कहीं अधिक ऋण लिए। 

मई 2021 में अजीम प्रेम जी विश्वविद्यालय ने यह भी रिपोर्ट दी कि अन्य 23 करोड़ लोग 375 रुपए प्रतिदिन की गरीबी सीमा रेखा के नीचे धकेल दिए गए। यह 2005 तथा 2015 के बीच गरीबी से बाहर निकाले गए 27 करोड़ लोगों के बिल्कुल विपरीत है (स्रोत विश्व बैंक)। कुल मिलाकर यह काफी स्पष्ट है कि एक ठोस अर्थव्यवस्था के प्रमुख सूचक नकारात्मक हैं। आॢथक स्थितियों का रहन-सहन पर विपरीत असर पड़ेगा तथा महामारी के साथ मिलकर हमारे जीवन पर भी। यही वह स्थिति है जिसे मैं एक बड़ी आपदा के रूप में उल्लेखित करूंगा जो 2021-22 में हमारी प्रतीक्षा कर रही है।-पी. चिदरंबरम


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