5 मंत्र : विदेश मंत्री एस. जयशंकर के

punjabkesari.in Wednesday, Oct 19, 2022 - 04:24 AM (IST)

विश्व की सर्वोच्च एवं श्रेष्ठ महापंचायत संयुक्त राष्ट्र संघ का 77वां सम्मेलन सितंबर के महीने में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के दौरान राष्ट्र अध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों और सरकारी प्रतिनिधियों ने अपने अपने देश के सम्मुख दरपेश समस्याओं का वर्णन किया और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी विचार-विमर्श किया गया। इस जनरल असैंबली में आतंकवाद, उग्रवाद, भिन्न-भिन्न देशों के आपसी संबंधों, खाद्यान्न की समस्या, गुरबत से छुटकारा पाने के उपाय, रूस और यूक्रेन में युद्ध तथा कई अन्य समस्याओं, चिंताओं, चुनौतियों और समाधानों पर विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श किया गया।

भारत के दृष्टिकोण से यह सम्मेलन विशेष महत्व रखता है क्योंकि बहुत सारे देशों के राष्ट्र अध्यक्षों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रूस के प्रैजीडैंट पुतिन को युद्ध पर दिए गए सुझाव की खुलकर प्रशंसा की और साथ ही 8 से अधिक देशों के रहबरों ने संकट ग्रस्त देशों को भारत द्वारा दी गई सहायता के लिए भी धन्यवाद किया गया। हकीकत में 75 वर्षों के लंबे इतिहास में पहली बार यू.एन.ओ. में भारत की भूमिका को खुलकर सराहा गया है। 

यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद करीम अली शागला, स्वर्ण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और कई अन्य विदेश मंत्रियों ने भारत का पक्ष यहां खुलकर रखा और हर जिम्मेदारी को विदेश मंत्री होने के नाते खूबसूरत तरीके से सरअंजाम दिया। परंतु सुब्रामण्यम जयशंकर के सम्मेलन में 14 मिनट के भाषण ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया और समाप्ति पर हाल तालियों से गूंज उठा। 

जिस तरह 1893 में शिकागो में स्वामी विवेकानंद को तालियों से सम्मानित किया गया क्योंकि उनका भाषण बड़ा ही स्पष्ट, विकासवादी, मानवतावादी और समूचे विश्व में शांति स्थापित करने के संबंध में था। उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना उनकी भी खुलकर आलोचना की, जो आतंकवादियों को प्रशिक्षित करते हैं और उनका भी जिक्र किया जो आतंकवाद का समर्थन करते है क्योंकि आतंकवाद विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में 5जी का उद्घाटन कर रहे थे और दूसरी तरफ जयशंकर प्रधानमंत्री के विश्व शांति के पैगाम 5 एस का जिक्र कर रहे  थे यानी सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि। यदि इन 5 शब्दों को विश्व के देश अपना लें तो युद्ध से सदा के लिए लोगों को सुरक्षित रखा जा सकता है। वास्तव में यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा पंचशील के सिद्धांत को दर्शाता है। भारत सुरक्षा परिषद में भी सुधार चाहता है ताकि 1 अरब 40 करोड़ लोगों को इस संस्था में सदस्यता मिल सके। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने भाषण में 75 वर्ष पुरानी घिसीपिटी और जीर्णशीर्ण कश्मीर की समस्या पर राग अलापना शुरू किया। कश्मीर से धारा 370 हटने पर भी रोष प्रकट किया। 

हकीकत में भारतीय जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए केंद्र सरकार अरबों रुपया खर्च कर रही है और इस बार कश्मीर में एक करोड़ 65 लाख टूरिस्ट पहुंचे हैं। क्योंकि लंबे समय के बाद कश्मीर में शांति स्थापित हुई है। जबकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में विकास नाम की किसी चिड़िया का नाम नहीं है। भारत ने संकट के समय श्रीलंका, अफगानिस्तान और म्यांमार की खुलकर सहायता की। अफगानिस्तान में 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं भेजा और 10 हजार मीट्रिक टन म्यांमार को अनाज दिया। कोविड के दौरान 100 से अधिक देशों को मैडिसन प्रदान की। भारत की संस्कृति हमेशा ही सब का भला चाहने वाली है और इसको केंद्र सरकार ने खुलकर अमलीजामा पहनाया और विश्व के लोगों ने भी भारत की सराहना की। 

विदेश मंत्री जयशंकर ने सम्मेलन के बाद अपनी कूटनीतिक योग्यता और कार्यकुशलता के अमरीका की धरती पर झंडे गाड़ दिए। सर्वप्रथम उन्होंने भारत, इसराईल, यू.ए.ई. और अमरीका के प्रतिनिधियों के साथ भिन्न-भिन्न विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया। यू.ए.ई. द्वारा भारत में फूड पार्क बनाने के लिए दो करोड़ डॉलर के खर्च होने, गुजरात में 300 मैगावाट बिजली उत्पादन पर 330 लाख डॉलर खर्च करने के प्रोजैक्ट तथा रूस, यूक्रेन युद्ध के विश्व पर पड़ते हुए प्रभावों पर विचार विमर्श किया गया। 

इसके अलावा गुजरात में बिजली इस प्रोजैक्ट से सोलर और विंड एनर्जी द्वारा पैदा की जाएगी। विदेशमंत्री ने अर्जेंटीना और अन्य देशों के साथ भी अपने मधुर संबंध बनाने के लिए कोशिश की। 32 सदस्यों के सैलक देशों के प्रतिनिधियों के साथ भी वार्तालाप की। परन्तु भारत ने इस सभा में अमरीका, कनाडा, इंगलैंड, फ्रांस, नीदरलैंड्स और डेनमार्क को अलग रखा। भारत ने इस सम्मेलन में भी अपनी गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाए रखा। 

जब दूसरे देश अपने-अपने हितों की रक्षा करते हैं तो भारत भी राष्ट्र के हित में बड़ी मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। भारत ने तुर्की की दुखती नब्ज पर भी हाथ रखा। क्योंकि एक वर्ष पहले तुर्की ने भारत के आंतरिक मामले कश्मीर में दखल देने की कोशिश की थी और भारत ने आर्मेनिया, साइप्रस और ग्रीस के उत्तरी और पूर्वी इलाके पर बातचीत करके प्रत्यक्ष रूप से तुर्की को चेतावनी दे दी और अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को। भारत उदारवादी, मानवतावादी और सुलाहकून की नीति में विश्वास रखता है। इस संबंध में यह शे’र उद्धृत करता हूं जमीन देख, फलक देख, फिजा देख, एशिया में चढ़ते हुए सूरज भारत को देख।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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