विवाद सुलझाते-सुलझाते आपस में ही उलझ पड़े संत

punjabkesari.in Thursday, Jun 02, 2022 - 03:57 AM (IST)

धर्म शास्त्रों में बताए गए शाश्वत सिद्धांतों के नतीजे पर पहुंचने या किसी विवाद को सुलझाने के लिए प्राचीन काल से ही भारत में धर्म गुरुओं के बीच ‘शास्त्रार्थ’ की परम्परा चली आ रही है। इसमें दोनों पक्षों द्वारा दिए गए तर्कों की कसौटी पर परख कर शांतिपूर्वक सुलझाया जाता था। ‘शास्त्रार्थ’ की परंपरा को आदि शंकराचार्य जी तथा कुमारिल भट्ट जैसे विद्वानों ने आगे बढ़ाया। आदि शंकराचार्य जी तथा प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र जी का ‘शास्त्रार्थ’ वैदिक सनातन जगत में बहुत प्रसिद्ध है। 

परंतु खेद का विषय है कि आज के दौर के चंद संत-महात्मा ‘शास्त्रार्थ’ द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की बजाय इसके दौरान अपना संयम खो कर आलोचना के पात्र बनने लगे हैं। इसी का एक उदाहरण 31 मई को महाराष्ट्र में नासिक के अंजनेरी गांव में देखने को मिला।

उल्लेखनीय है कि पवन पुत्र हनुमान जी के जन्मस्थान को लेकर विवाद चला आ रहा है। इस संबंध में कर्नाटक के किष्किंधा, महाराष्ट्र के नासिक और आंध्र प्रदेश के तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टी.टी.डी.) के अपने-अपने दावे हैं। इनके अलावा गुजरात, झारखंड और बिहार में भी हनुमान जी का जन्म स्थान होने संबंधी दावा किया जा चुका है। कर्नाटक के आध्यात्मिक नेता एवं किष्किंधा के मठाधिपति स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने कुछ समय पूर्व दावा किया था कि किष्किंधा हनुमान जी का जन्म स्थल है न कि नासिक में अंजनेरी। 

पहले तो एक शोभायात्रा का नेतृत्व करते हुए त्र्यम्बकेश्वर से अंजनेरी पहुंचने की गोविंदानंद सरस्वती की योजना का अंजनेरी के निवासियों और साधुओं ने विरोध किया फिर 30 मई को नासिक-त्र्यम्बकेश्वर मार्ग अवरुद्ध कर दिया ताकि गोविंदानंद के आने पर वे अपना विरोध दर्ज करा सकें। इस विवाद को विराम देकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 31 मई को नासिक में अंजनेरी गांव के काला राम मंदिर में महंत श्रीमंडलाचार्य पीठाधीश्वर स्वामी अनिकेत शास्त्री देशपांडे महाराज ने धर्म संसद का आयोजन किया, जिसमें नासिक, त्र्यम्बकेश्वर, कर्नाटक और शोलापुर से 20-25 विद्वान संत शामिल हुए। 31 मई को धर्म संसद की शुरूआत ही बैठने की व्यवस्था को लेकर तीखी नोक-झोंक के साथ हुई। किष्किंधा में प्रभु हनुमान के जन्मस्थान का दावा करने वाले महंत गोविंद दास एक भगवा कुर्सी पर बैठे थे जबकि ‘शास्त्रार्थ’ में भाग लेने आए संतों के लिए धरती पर बैठने का प्रबंध था। 

इसी बात पर नासिक के संत नाराज हो गए और उन्होंने यह कहते हुए धर्म संसद का बहिष्कार कर दिया कि ‘‘शास्त्रार्थ’ बराबर बैठ कर होता है पर कुछ लोग धर्म संसद में स्वयं को बड़ा मान चुके हैं। ये किसी अखाड़े से भी नहीं जुड़े हैं। ये कैसे कोई आह्वान कर सकते हैं? ये शंकराचार्य हैं क्या?’’ इसके बाद अन्य मुद्दों पर साधुओं ने एक-दूसरे पर कटाक्ष किए तथा काला राम मंदिर के महंत सुधीर दास और कर्नाटक के किष्किंधा के महंत गोविंदानंद सरस्वती के बीच झगड़ा हो गया। नौबत यहां तक आ गई कि महंत सुधीर दास ने गोविंदानंद सरस्वती को मारने के लिए उन्हें धमकी देते हुए वहां मौजूद एक चैनल के रिपोर्टर का माइक छीन कर हाथ में उठा लिया तथा स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती देख पुलिस को शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। कुछ प्रतिभागियों के अनुसार, इस बीच गोविंदानंद सरस्वती के समर्थकों ने दावा किया कि उन्हें सभा में अपने विचार रखने की अनुमति नहीं दी गई जिस कारण कहासुनी और तेज हो गई। 

हालांकि मारपीट शुरू होने से पहले ही पुलिस ने आकर वहां हालात पर काबू पा लिया परंतु इसके बावजूद माहौल तनावपूर्ण तो हो ही गया था तथा धर्म संसद किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बिना ही समाप्त हो गई। महंत गोविंद दास अंजनेरी से अयोध्या तक एक रथ यात्रा भी निकालने वाले थे, जिसकी नासिक पुलिस ने अनुमति नहीं दी। संत-महात्मा तो समाज को अच्छी बातें बता कर सही दिशा देते हैं। अत: नासिक की धर्म संसद में जो कुछ हुआ, उससे संत समाज की प्रतिष्ठा को आघात ही लगा है जो धर्म गुरुओं की प्रचार लिप्सा और लोगों की नजरों में आने की होड़ का ही परिणाम है। 

इस समय जबकि देश में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है, नासिक में एक विवाद को सुलझाने के लिए एकत्रित संत-महात्माओं ने आपस में ही उलझ कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। उल्लेखनीय है कि लोग तो साधु-संतों और विद्ववतजनों के पास अपनी समस्याएं और विवाद सुलझाने की आशा लेकर जाते हैं परंतु यदि ये अपने ही विवाद सुलझाने में विफल रहेंगे तो फिर इनसे आम लोग अपनी समस्याओं और विवादों का समाधान पाने की क्या आशा रख सकते हैं!—विजय कुमार 


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