जन शक्ति पर धन शक्ति का हावी होना सचमुच चिंताजनक : उपराष्ट्रपति

punjabkesari.in Saturday, Jan 11, 2020 - 12:55 AM (IST)

जब भी चुनाव निकट आते हैं तो विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्रों में लम्बे-चौड़े वायदे करने के अलावा उन पर प्रलोभनों की बौछार करने लगते हैं जिन्हें पूरा कर पाना संसाधनों की कमी के कारण आमतौर पर संभव नहीं होता। राजनीतिक दलों में बढ़ रहे इस रुझान पर टिप्पणी करते हुए उपराष्ट्रपति श्री वैंकेया नायडू ने ऐसे वायदों पर अकुंश लगाने की आवश्यकता पर बल दिया है। हैदराबाद में ‘फाऊंडेशन फार डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स’ द्वारा ‘राजनीति में धन शक्ति’ विषय पर आयोजित समारोह में जन शक्ति के मुकाबले धन शक्ति के बढ़ते प्रभाव पर बोलते हुए उन्होंने कहा : 

‘‘राजनीतिक दलों द्वारा लम्बे-चौड़े और अव्यावहारिक लोक लुभावन वायदे करने पर अंकुश लगाने के लिए कोई कानून बनाने की जरूरत है क्योंकि ऐसे वायदे गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को हानि पहुंचाते हैं।’’ ‘‘अब इस तरह का कानून बनाने का समय आ गया है क्योंकि यह एक वास्तविकता है कि एक करोड़पति के पास धन शक्ति के बल पर सांसद या विधायक चुने जाने के उन लोगों की तुलना में बेहतर मौके हैं जिनके पास उनसे अधिक योग्यता तो है परंतु धन नहीं है।’’ ‘‘धन शक्ति ऐसे पात्र लोगों के राजनीति में प्रवेश में बाधा बन रही है। विडम्बना है कि गरीब भारत के 80 प्रतिशत लोकसभा सांसद करोड़पति हैं जिस कारण देश की राजनीति में धन शक्ति के बढ़ रहे प्रभाव को लेकर चिंताजनक स्थिति पैदा हो रही है।’’ 

उन्होंने यह भी कहा कि, ‘‘धन शक्ति चुनाव प्रक्रिया को कई तरह से प्रभावित करती है और इससे देश में लोकतंत्र का क्षरण हो रहा है। भारतीय राजनीति के नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट ने धन शक्ति से सम्पन्न लोगों को अनुचित लाभ उठाने का मौका दे दिया है।’’ इसी समारोह में सुप्रीमकोर्ट के जज जे. चेलामेश्वर ने कहा, ‘‘यदि मान भी लिया जाए कि किसी उम्मीदवार ने अपनी पैतृक सम्पत्ति बेच कर चुनाव लडऩे के लिए धन जुटाया है तो फिर वह अगला चुनाव लडऩे के लिए धन कहां से लाएगा जिस पर अनुमानत: 50 करोड़ रुपए खर्च होने हैं?’’ 

नि:संदेह उपराष्ट्रपति तथा न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने राजनीति में धन शक्ति के बढ़ते प्रभाव से पैदा चिंताजनक स्थिति की ओर देश के कर्णधारों का ध्यान दिलाया है जिस पर यदि विचार न किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब वर्तमान राजनीति सेवा न रह कर एक विशुद्ध व्यापार बन कर रह जाएगी और इसका परिणाम धनपतियों की जय-जयकार और गरीबों की हाहाकार के रूप में ही निकलेगा।—विजय कुमार 


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