मिग-21 विमानों की विदाई 3 वर्षों में पूरी हो जाएगी

punjabkesari.in Monday, Aug 01, 2022 - 04:22 AM (IST)

लम्बे समय तक भारतीय वायुसेना का मुख्य आधार रहे लड़ाकू विमानों मिग-21 की सुरक्षा को लेकर उस समय एक बार फिर सवाल खड़े होने लगे जब राजस्थान के बाड़मेर में वीरवार को एक मिग-21 बाइसन ट्रेनिंग एयरक्रॉफ्ट दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसे उड़ा रहे वायुसेना के 2 पायलट शहीद हो गए। 

1960 के दशक से ही भारतीय वायुसेना इस रूसी विमान का इस्तेमाल कर रही है। इनमें से पहले विमान रूस में बने थे। इन्हें असैम्बल करने का अधिकार और तकनीक हासिल करने के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने भारत में 1967 से मिग-21 लड़ाकू विमानों का निर्माण शुरू कर दिया था। रूस ने 1985 में इनका निर्माण बंद कर दिया पर भारत इसके अपग्रेडेड वर्शन मिग-21 बाइसन का इस्तेमाल आज भी कर रहा है जबकि इसकी सुरक्षा को लेकर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं। वायुसेना के इतिहास में सर्वाधिक यही विमान क्रैश होने के कारण इन्हें ‘उड़ता ताबूत’ कहा जाने लगा। 

आंकड़ों के अनुसार गत 20 महीनों में ही 6 मिग-21 बाइसन क्रैश हो चुके हैं। इनमें से गत वर्ष 5 और इस वर्ष अब तक 1 मिग-21 विमान क्रैश हुआ है। इन 6 दुर्घटनाओं में 5 पायलटों की मौत हुई है। मार्च में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट ने राज्यसभा में बताया था कि गत 5 वर्षों में वायुसेना, नौसेना तथा सेना की तीनों सेवाओं के विमान और हैलीकॉप्टरों की दुर्घटनाओं में 42 जवानों की मौत हो गई। गत 5 वर्षों में कुल हवाई दुर्घटनाओं की संख्या 45 थी, जिनमें से 29 में भारतीय वायुसेना के विमान शामिल थे। इस समय देश में 70 मिग-21 और 50 मिग-29 इस्तेमाल में हैं। बताया जा रहा है कि 30 सितम्बर तक मिग-21 बाइसन की श्रीनगर स्थित 51 स्क्वाड्रन को रिटायर कर दिया जाएगा। 

इस स्क्वाड्रन के रिटायर होने के बाद देश में इसकी 3 स्क्वाड्रन रह जाएंगी जिन्हें इन्हें भी चरणबद्ध तरीके से हर साल एक स्क्वाड्रन को हटाते हुए वर्ष 2025 तक पूरी तरह से खत्म करने की योजना है परंतु इन्हें विदा करने का निर्णय काफी पहले ही ले लेना चाहिए था एयरफोर्स के बेड़े में इनकी जगह सुखोई-30 लेंगे। मिग-21 बाइसन को काफी पहले रिटायर किया जाना था लेकिन एल.सी.ए. तेजस को शामिल करने में देरी के चलते वायुसेना को इनका इस्तेमाल करना पड़ रहा है। वर्तमान में वायुसेना के पास 50 मिग-29 भी हैं और इनके बेड़ों को भी रिटायर करने की योजना बनाई जा रही है और वह प्रक्रिया अगले 5 वर्ष में शुरू हो जाएगी। 

अपने पुराने लड़ाकू बेड़े को बदलने में मदद करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने गत वर्ष फरवरी में 83 तेजस लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ के साथ 48,000 करोड़ रुपए का सौदा किया था। वायुसेना 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रक्रिया में भी है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वर्तमान योजनाओं के अंतर्गत सभी विमान हासिल करने के बावजूद भारतीय वायुसेना अगले 10-15 वर्षों में 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत संख्या तक नहीं पहुंच पाएगी क्योंकि बड़ी संख्या में विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है। 

भारत अपनी वायु शक्ति क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए पांचवीं पीढ़ी के मध्यम-वजन के गहरे पैठ वाले लड़ाकू जैट को विकसित करने के लिए 5 बिलियन डॉलर की महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी काम कर रहा है परंतु अभी निर्माण कार्य तो शुरू भी नहीं हुआ जबकि पाकिस्तान और चीनी वायुसेना से निरंतर खतरा बढ़ता जा रहा हैै। आखिर कब तक हम इन विमानों को अपने जांबाज पायलटों की बलि लेने देते रहेंगे! 


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