तानाशाही की और बढ़ते सरकारों के कदम

punjabkesari.in Monday, May 31, 2021 - 03:42 AM (IST)

बेलारूस ने राष्ट्रपति अलैग्जैंडर लुकाशेन्को के आलोचक पत्रकार रोमान प्रोतेसेविच को जिस अप्रत्याशित ढंग से गिर तार किया गया है उसकी हर ओर से कड़ी आलोचना हो रही है। रोमान 2019 से ही अपने देश में सरकार की ओर से जारी दमनकारी कार्रवाइयों के कारण कई अन्य पत्रकारों की तरह ग्रीस में निर्वासित जीवन जी रहे थे और पिछली अगस्त में चुनावों में धांधली के जवाब में देश भर में अभूतपूर्व सामूहिक विरोध प्रदर्शनों की लहर उठी थी।

देश की जेलों में व्यवस्थित रूप से पिटाई और प्रताडऩा के बाद करीब 35,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया। करीब 400 राजनीतिक कैदी इस समय सलाखों के पीछे हैं। ग्रीस से लिथुआनिया जा रहे जिस विमान में रोमान सवार थे, उसके बेलारूस के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते ही उसमें बम होने की झूठी अफवाह फैलाकर जबरन राजधानी मिंस्क ले जाया गया जहां रोमान को गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना के बाद से यूरोप के कई देशों ने बेलारूस के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। 

बेशक, इस तरह के किसी देश के विमान को जबरन उतार कर सरकार के किसी विरोधी को गिरफ्तार करना एक अप्रत्याशित तथा दुर्लभ घटना है परंतु सरकारों द्वारा विरोधियों को दबाने और मौत के घाट तक उतार देने की घटनाएं पहले से जारी हैं। ‘फ्रीडम हाऊस’ की 2021 रिपोर्ट के अनुसार 2014 से अब तक कम से कम 608 मामले ऐसे दर्ज हो चुके हैं जिनमें विरोधियों को विदेशों में जाकर निशाना बनाया गया है। इनमें गिर तारी, डिपोर्ट करने से लेकर हत्याएं तक शामिल हैं। 

1982 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने निर्वासित कार्यकत्र्ता रुथ फस्र्ट को  मोजा बीक में उनके दफ्तर में पार्सल बम भिजवा कर मरवाया था। अधिक समय नहीं बीता है जब 2018 में जमाल खाशोगी को इस्तांबुल के सऊदी कांसुलेट में बुला कर हत्या करने के बाद उनकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। जमाल खाशोगी सऊदी अरब सरकार के पहले आलोचक नहीं थे जिन्हें मारा गया। 2017 में कार्यकत्र्ता मोह मद अब्दुल्ला-अल-ओतेबी को नार्वे की उड़ान के लिए दोहा एयरपोर्ट पर प्रतीक्षा करते समय गिर तार करके सऊदी अरब को सौंप दिया गया जहां उन्हें 17 वर्ष की सजा सुना दी गई। एक वर्ष बाद कवि नावाफ अल-रशीद को भी इसी तरह कुवैत के एक एयरपोर्ट से गिर तार करके लगभग एक वर्ष तक सऊदी अरब में कैद रखा गया। 

वहीं ईरान भी अपने आलोचकों को मिटाने के लिए किसी हद तक जाने के लिए कु यात है। फिर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हों। 2019 में फ्रांस में शरण ले चुके कार्यकत्र्ता तथा पत्रकार रूहोल्ला जाम को ईराक यात्रा के दौरान अगवा करके ईरान लाया गया और मुकद्दमा चला कर गत वर्ष फांसी पर लटका दिया गया। चीन सरकार उईगर तथा तिब्बती अल्पसं यकों को निर्दयता से कुचलने से लेकर अन्य देशों में रह रहे अपने विरोधियों को निशाना बना चुकी है। 2015 में ऐसे ही एक मामले में चीनी नेताओं की आलोचना वाली किताबें बेचने वाले हांगकांग में बसे दो विक्रेताओं को अगवा करके चीन लाकर उन पर मुकद्दमा चलाया गया। 

इनमें से एक को जब उठाया गया तब वह थाईलैंड में छुट्टियां मना रहा था। वर्ष 2016 में चीन ने विदेशों में छुपे विरोधियों पर कार्रवाई के लिए बाकायदा  ‘ओवरसीज यूजिटिव अफेयर्स’ नामक एक अलग विभाग बनाया। रवांडा ने भी 2014 से अब तक दर्जन भर देशों में अपने आलोचकों को निशाना बनाया है। रवांडा सरकार 1994 के जनसंहार पर सरकार के विचारों का विरोध करने वालों का निर्दयता से दमन कर रही है। गत वर्ष फिल्म ‘होटल रवांडा’ के हीरो पॉल रूसेसाबागिना को दुबई से किगाली की एक उड़ान से गिर तार किया गया और अब उस पर आतंकवाद के आरोप में मुकद्दमा चलाया जा रहा है। 

रूस भी ऐसे मामलों में काफी आगे है। ब्रिटेन जैसे देशों में शरण ले चुके अपने पूर्व गुप्तचर अधिकारियों को नर्व गैस तो कभी पोलोनियम जहर देकर मारने के उसके प्रयास चॢचत रहे हैं। पुतिन विरोधी एलैक्सी नवेलनी को पहले जहर देने की कोशिश की गई। जेल में बीमार होने पर भी उसे छोड़ा नहीं गया और विरोध होने पर डॉक्टर से मिलने की हल्की-सी छूट दी गई। उसका अपराध यही है उसने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है। चेचेन्या सरकार के विरोधी भी सुरक्षित नहीं हैं। जनवरी 2020 में चेचन ब्लॉगर तथा सत्ता के आलोचक इमरान एलियेव को फ्रांस के लिले में एक होटल के कमरे में 135 बार चाकू से गोद दिया गया। 

एक महीने बाद ही चेचन ब्लॉगर तुमसो स्वीडन में खुद पर हथौड़े से हुए हमले में बाल-बाल बचे। गिर तार हमलावरों ने स्वीकार किया कि वे चेचन सरकार के इशारे पर हमला करने आए थे। उस वर्ष वियना में हुए तीसरे हमले में ब्लॉगर मामीखान उमारोव मारे गए। ऐसी घटनाएं और हाल ही में जो बेलारूस ने किया है, उसके यही संकेत हैं कि वर्तमान में अधिक देश तानाशाही रवैया अपनाते जा रहे हैं परंतु प्रश्न उठता है कि इसके कारण क्या हैं? 

कोरोना महामारी के दौरान सरकारों का नागरिकों पर नियंत्रण बढ़ता जा रहा है और अच्छे-खासे लोकतांत्रिक देश भी तानाशाहों जैसा रुख अपनाने लगे हैं। एक कारण हर हाल में सत्ता में बने रहने का लालच भी है। इसके लिए चुनावों में हर तरह की धांधली से भी संकोच नहीं किया जा रहा। लोगों की निजी स्वतंत्रता को कम किया जा रहा है और खुल कर अपने विचार व्यक्त करने वालों पर चाबुक चलाया जा रहा है। सरकारें इतनी संवेदनशील या महत्वाकांक्षी हो गई हैं कि वे रत्ती भर भी अपनी आलोचना नहीं सुन सकतीं। 

एक अन्य कारण है कि इंटरनैट तथा सोशल मीडिया की वजह से दूसरे देशों में शरण लेने के बाद भी आलोचक अपने देशवासियों को प्रभावित कर सकते हैं और उनकी आवाज दबाने के लिए सरकारें उन्हें ही अपराधी बना कर गिरफ्तार करने से लेकर खत्म करने से भी कतराती नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने भी बेलारूस के इस कदम की कड़े शब्दों में निंदा की है। मगर इसकी निंदा ही नहीं बल्कि बेलारूस की इस कार्रवाई के खिलाफ कड़े पग उठाने की जरूरत भी है। यूरोपियन यूनियन का भी मानना है कि यदि इस तरह की विमान अपहरण की घटनाएं शुरू हो गईं तो फिर कई देशों के लिए मुश्किल हो जाएगा। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही और इसके विरुद्ध सभी एकजुट नहीं हुए तो यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए बड़ा खतरा बन सकती हैं।


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