‘राजस्थान संकट टला’लेकिन अभी ‘दिलों का मेल होना बाकी’

punjabkesari.in Wednesday, Aug 12, 2020 - 02:14 AM (IST)

सचिन पायलट तथा उनके 18 साथी विधायकों के विद्रोह के बाद कांग्रेस नेतृत्व द्वारा 14 जुलाई को उन्हें राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं उप-मुख्यमंत्री पद से हटाने, उनके समर्थक तीन मंत्रियों को मंत्रिमंडल से निकालने और विधायकों को अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया शुरू करने से अशोक गहलोत सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे।

इस बीच जहां दोनों पक्षों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हुई, वहीं सचिन पायलट के भाजपा में शामिल होने की अटकलें भी सुनाई देने लगीं जिसका सचिन पायलट ने खंडन किया। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी चल निकला। जहां पायलट ने गहलोत पर उनकी उपेक्षा करने का आरोप लगाया वहीं गहलोत द्वारा पायलट के विरुद्ध कटु टिप्पणियों से दोनों पक्षों में तनाव बढ़ा। 

पायलट को ‘निकम्मा’ और ‘नाकारा’ बताते हुए गहलोत ने यहां तक कह दिया कि ‘‘सचिन पायलट सरकार गिराने की डील कर रहे थे...अच्छी हिंदी और अंग्रेजी बोलना, अच्छी स्माइल देना ही सब कुछ नहीं होता है।’’ उन्होंने सचिन का नाम लिए बगैर कहा कि वह ‘हार्स ट्रेडिंग’ में शामिल थे। ऐसे घटनाक्रम के बीच 14 अगस्त से बुलाए जाने वाले राजस्थान विधानसभा के अधिवेशन से 4 दिन पूर्व 10 अगस्त को दोनों पक्षों के बीच तनाव समाप्त होता दिखाई दिया। 

राहुल तथा प्रियंका गांधी से 2 घंटे चली लम्बी भेंट के बाद सचिन पायलट और असंतुष्ट विधायकों ने ‘युद्ध विराम’ का संकेत दे दिया। पार्टी के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि ‘‘सचिन पायलट और उनके साथियों ने कांग्रेस और राजस्थान सरकार के हित में काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।’’ उधर सोनिया गांधी ने गहलोत से बात करने के बाद दोनों में जारी विवाद समाप्त करने के लिए प्रियंका गांधी, अहमद पटेल तथा के.सी. वेणुगोपाल पर आधारित एक तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी है। 

11 अगस्त को जयपुर पहुंचने पर सचिन पायलट ने कहा कि दोनों नेताओं राहुल और प्रियंका गांधी ने उनकी बात बड़े ध्यानपूर्वक सुनी और कांग्रेस नेतृत्व ने उनके एवं समर्थक विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों का समयबद्ध तरीके से निराकरण करने का आश्वासन दिया है। सचिन ने यह भी कहा कि उन्होंने किसी पद की या दूसरी कोई मांग नहीं रखी है, ‘‘परन्तु जिनकी मेहनत से सरकार बनी है उनकी अनदेखी नहीं होनी चाहिए।’’ 

इस घटनाक्रम में जहां राहुल और प्रियंका पायलट के साथ खड़े दिखाई दिए और उनसे पहले कपिल सिब्बल और पी. चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ केन्द्रीय नेताओं ने उनसे बात की वहीं कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अधिक पायलट समर्थकों को मंत्रिमंडल में जगह देने और सचिन को उनके पुराने पदों पर बहाल करने पर सहमति हुई बताई जाती है। हालांकि इस संकट के जारी रहने के दौरान अंदरखाने भाजपा द्वारा सरकार बनाने के प्रयास किए जाने की चर्चा भी सुनाई दी परन्तु पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस मामले में मौन धारण किए रखा और साफ कह दिया कि बागियों के सहारे कांग्रेस की सरकार गिराने की योजना में वह साथ नहीं देंगी। 

भाजपा ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बैठक भी बुलाई थी परन्तु वसुंधरा राजे इसमें भाग लेने के लिए पहुंची ही नहीं। राजनीति में कब क्या हो जाए कहना मुश्किल है। फिलहाल तो यही लगता है कि इस खेल में गहलोत जीत गए हैं क्योंकि पायलट के पास घर वापसी के सिवाय अन्य विकल्प बहुत कम रह गए थे। हालांकि गहलोत ने यह भी कहा है कि ‘‘राजनीति में कभी-कभी दिल पर पत्थर रख कर फैसले करने पड़ते हैं और जहर का घूंट भी भरना पड़ता है।’’ 

अब जबकि यह संकट टल गया है तो सभी संबंधित पक्षों को अपने मतभेद भूल प्रदेश और देश की सेवा के लिए स्वयं को समॢपत करना चाहिए। कोरोना संकट के दौर में इस प्रकार की राजनीतिक लड़ाई को जनता ने कतई पसंद नहीं किया। इस मामले को आगे बढऩे देने के लिए गहलोत की कटुभाषा, सचिन पायलट की जल्दबाजी, कांग्रेस हाईकमान की चुप्पी और चंद भाजपा नेताओं द्वारा इसमें दिलचस्पी लेना जिम्मेदार है।—विजय कुमार


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