चीनी कूटनीति के सिद्धांत

punjabkesari.in Monday, Jun 22, 2020 - 01:58 AM (IST)

‘चीन सरकार जो भी योजना बनाती है, उसे लागू करती है’ यह साम्यवादी चीन का पहला सिद्धांत था जिस पर वे अब भी अमल कर रहे हैं - कोरोना वायरस जैसी गम्भीर महामारी के दौरान भी। हिमालय में 14 से 17 हजार फुट की ऊंचाई पर किसी भी सैन्य दल को गलवान पहुंचकर ऊंचाई के अनुकूल होने में कम से कम एक हफ्ता लगता है। अत्यधिक ठंड और हवा में ऑक्सीजन की कमी के बीच ट्रकों में वहां पहुंचे हजारों सैनिक अपनी-अपनी लकड़ी की झोंपडिय़ों में विश्राम करने पर मजबूर हुए होंगे परंतु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिन सैनिकों ने वे घर बनाए, वे उनसे भी कुछ दिन पहले वहां पहुंच कर विश्राम करने के बाद काम पर लगे होंगे।

हजारों ट्रक, बुलडोजर और अन्य सामान भी सैनिक पहले से ही वहां पहुंचा चुके थे अर्थात इस ऑप्रेशन पर कम से कम एक महीना पहले अमल शुरू हो गया था। चीन में कुछ भी पी.एल.ए. की आज्ञा के बिना नहीं होता तो सवाल उठता है कि क्या चीन सरकार भारत की सीमा पर युद्ध जैसे माहौल की योजना मार्च में ही बना चुकी थी- लगभग उसी समय जब भारत लॉकडाऊन में जा रहा था। तो फिर यह आश्चर्य की बात नहीं कि चीन वहां एक नियमित उद्देश्य  और सुनियोजित रूप से आया है। 

शुरू में कहा गया कि यह एक ध्यान भटकाने वाली रणनीति थी या भारत को ऊंची उड़ान न भरने का एक संदेश भेजने की कोशिश। यह भी महसूस किया गया कि चीन मुख्य जल संसाधनों पर कब्जा करने के लिए गलवान क्षेत्र में था। सभी हिमालयी नदियों का उद्गम स्रोत यहीं है। शायद ये सभी कारण हैं, लेकिन मुख्य रूप से चीन अपने दूसरे स्वयंसिद्ध सिद्धांत ‘पहले कुतरना और फिर चबाना’ पर कायम रहना चाहता है - पहले गलवान के कुछ ही क्षेत्र पर चीन अपना हक जता रहा था किन्तु अब उसने पूरे गलवान को ही अपना बताया है। 

भारत के साथ चीन के वर्तमान झगड़े की तुलना 1960 में चीन-सोवियत संघर्ष से की जा सकती है जब दोनों सेनाओं ने ब्रोलसन की जमी हुई नदी पर हाथापाई और डंडों से लड़ाई लड़ी थी। अन्त में रूसियों ने अपने क्षेत्र के एक बड़े हिस्से को देकर वर्षों बाद चीन के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाया। क्या भारत को यह मान्य होगा? 

हार्वर्ड यूनिटी वैल्फेयर सैंटर की विज्ञान और विदेशी मामलों के लिए मार्च रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना चीनी सेना से अधिक अनुभवी है क्योंकि उसे हर तरह के इलाकों में लडऩे का ज्यादा अनुभव है जबकि चीनी सेना आंकड़ों में बड़ी जरूर है परन्तु वह पिछली बार वियतनाम युद्ध में ही लड़ी थी। भारत का पहला चयन फिर भी शान्तिपूर्वक कूटनीति का रास्ता होगा परन्तु इस बीच राजनीतिक स्तर पर गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी नुक्सानदायक हो सकती है।

मध्यम स्तर के सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत चल रही है परंतु हमारे पास उच्च स्तर पर कूटनीतिक वार्ता और फिर राजनीतिक स्तर पर बातचीत के विकल्प हैं परंतु यह सब जल्द करना होगा क्योंकि चीन का तीसरा सिद्धांत है ‘‘जो हड़प लिया भूल जाओ अब कुछ और लेंगे।’’चीन के लिए यह कहना गलत न होगा : है वही बात यूं भी और यों भी, वो जफा करे या वफा की बात करे।


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