पोप फ्रांसिस ने पादरियों द्वारा यौन शोषण रोकने के लिए उठाया गया सबसे बड़ा कदम

punjabkesari.in Saturday, Jun 05, 2021 - 04:44 AM (IST)

संत-महात्मा देश और समाज को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं परंतु कुछ तथाकथित संत-महात्मा और बाबा लोग इसके विपरीत आचरण करके सच्चे संत-महात्माओं की बदनामी का कारण भी बन रहे हैं। 

इसी सिलसिले में आसाराम बापू, फलाहारी बाबा, गुरमीत राम रहीम सिंह, इच्छाधारी संत स्वामी भीमानंद, स्वामी विकासानंद, बाबा परमानंद, स्वामी प्रेमानंद, स्वामी अमृत चैतन्य, फादर रोबिन वादकुमचेरी, जैन संत आचार्य शांति सागर, वीरेंद्र देव दीक्षित आदि की यौन शोषण व अन्य आरोपों में गिर तारी के बाद उन पर मुकद्दमे चल रहे हैं।

यह बुराई किसी एक धर्म तक सीमित न रह कर कैथोलिक ईसाइयों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ ‘वैटिकन’ में भी व्याप्त है जिसके पादरियों पर बच्चों और वयस्कों के यौन शोषण के समय-समय पर आरोप लगते आ रहे हैं। इसी को देखते हुए 13 मार्च, 2013 को वैटिकन के 266वें पोप का पद संभालते ही पोप फ्रांसिस ने अनेक सुधारवादी कदम उठाने शुरू कर दिए जिसके अंतर्गत उन्होंने :

* 12 जून, 2013 को पहली बार स्वीकार किया कि वैटिकन में ‘गे’ (समलैंगिक) समर्थक लॉबी व भारी भ्रष्टाचार मौजूद है।
* 14 जून, 2013 को शादी से पूर्व सहमति स बन्ध और बिना विवाह किए इकट्ठे रहने (लिव इन रिलेशनशिप) को अनुचित बताया।
* 5 मार्च, 2014 को अमरीका में ‘मैरोनाइट कैथोलिक गिरजाघर’ में एक शादीशुदा व्यक्ति को पादरी बनाकर एक नई पहल की।
* 25 दिस बर, 2014 को कहा, ‘‘पादरी और बिशप आदि अपना रुतबा बढ़ाने के लिए लोभ की भावनाओं से ग्रस्त हो गए हैं। 

* 18 मई, 2018 को पोप फ्रांसिस द्वारा चिली के कई कैथोलिक पादरियों को अपने यौन अपराध छिपाने व इसमें संलिप्त लोगों को बचाने का दोषी बताए जाने के बाद सैक्स स्कैंडल में फंसे अनेक पादरियों ने त्यागपत्र देने की घोषणा की।
* 14 अक्तूबर, 2018 को पहली बार नाबालिगों के यौन शोषण के मामले में चिली के पूर्व आर्कबिशप ‘फ्रांसिस्को’ तथा पूर्व बिशप ‘एंटोनियो’ को पादरी पद से हटाने के आदेश दिए। 

* 11 जनवरी, 2021 को महिलाओं को कैथोलिक चर्च में बराबरी का दर्जा और उन्हें चर्च की प्रार्थना करवाने की प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार देने का निर्णय लेते हुए कहा कि प्रार्थना प्रक्रिया में शामिल महिलाएं किसी दिन पादरी का दर्जा भी प्राप्त करेंगी। 
* और अब 1 जून को इन्होंने 40 वर्ष के बाद कैथोलिक चर्च के कानूनों में संशोधन करते हुए यौन शोषण के मामलों में कड़े दंड के नियम बनाए हैं। इसके अंतर्गत अब अपने पद व रुतबे का दुरुपयोग करने वाले पादरियों आदि को बच्चों व वयस्कों के यौन उत्पीडऩ के लिए कड़ी सजा दी जाएगी।

संशोधित कानून में बिशप और अन्य ईसाई धर्मगुरुओं को प्राप्त उस विशेषाधिकार को भी समाप्त कर दिया गया है, जिसका दुरुपयोग कर वे यौन उत्पीडऩ के मामलों पर पर्दा डालने की कोशिश करते थे। 

अब बिशप को आरोपी पादरियों के विरुद्ध सही जांच न करने या उनके विरुद्ध अभियोग की अनुमति न देने के लिए दोषी ठहराया जाएगा। इसके अंतर्गत बिशप को लापरवाही बरतने, यौन अपराधों बारे चर्च के अधिकारियों को सूचना नहीं देने या उनमें संलिप्त पाए जाने पर पद से हटाया जा सकेगा। वैटिकन के गिरजाघरों को संचालित करने वाले कानूनों में संशोधन 14 वर्षों से विचाराधीन थे तथा पोप फ्रांसिस द्वारा जारी उक्त आदेशों को गत 40 वर्षों में पादरियों द्वारा यौन शोषण को रोकने के लिए उठाया गया सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है। 

इस कानून द्वारा यह भी स्वीकार कर लिया गया है कि अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाले ‘संत’ वयस्कों का भी शोषण कर सकते हैं। यह पहला मौका है जब वैटिकन ने बच्चों को पोर्नोग्राफी में धकेलने तथा यौन शोषण करने वालों को आधिकारिक तौर पर अपराधी माना है। पिछले 8 वर्षों में पोप फ्रांसिस द्वारा वैटिकन के कामकाज में किए जा रहे सुधारों में यह नवीनतम है जिसे वैटिकन में यौन शोषण समाप्त करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस कानून के लागू होने से पादरियों द्वारा यौन शोषण पर रोक लगेगी और चर्च की प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

हालांकि सभी संत बुरे नहीं हैं पर निश्चय ही चंद धर्मगुरुओं द्वारा किए जाने वाले अनैतिक कृत्यों के परिणामस्वरूप संत समाज की बदनामी हो रही है। अन्य धर्मों के गुरुओं को भी ये बुराइयां रोकने के लिए वैटिकन जैसी ही आचार संहिता लागू करनी चाहिए।—विजय कुमार 
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News