पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल कर सकती है भारत को प्रभावित

punjabkesari.in Thursday, Mar 31, 2022 - 04:43 AM (IST)

यह एक जाना-माना तथ्य है कि पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में प्रभुत्वशाली भूमिका निभाती है। 75 वर्ष पूर्व देश के निर्माण से लेकर 30 वर्षों से अधिक समय तक पाकिस्तान सीधे सैन्य शासन के अंतर्गत रहा है। यह भी माना जाता है कि देश में कोई भी नागरिक सरकार पाकिस्तानी सेना के समर्थन के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकती।

इसमें कोई हैरानी नहीं कि देश के किसी भी नागरिक प्रधानमंत्री ने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं किया है तथा इसके जन्म के बाद से कम से कम 30 प्रधानमंत्री यहां शासन कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त इस कार्यकाल के दौरान यहां 15 राष्ट्रपति रहे हैं तथा संविधान में 3 बार संशोधन किया गया है। 

2018 में नैशनल असैंबली के लिए गत चुनावों हेतु सारे प्रचार के दौरान यह स्वाभाविक ही था कि सेना क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई.) का समर्थन कर रही थी। उन्होंने अपनी स्थिति न केवल सेना के साथ सांठ-गांठ वाली बनाई बल्कि उसकी भाषा भी बोल रहे थे, बल्कि अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पी.एम.एल.-एन) के नवाज शरीफ को भारत समर्थक तथा सेना विरोधी के तौर पर पेश कर रहे थे। यहां तक कि मतदान वाले दिन उन्होंने यह कहा कि नवाज शरीफ के मन में पाकिस्तान की बजाय ‘भारत के हित’ हैं। 

पाकिस्तानी सेना के सक्रिय समर्थन के साथ इमरान खान की पार्टी की विजय सुनिश्चित हो गई थी। उनकी पार्टी बहुमत के आंकड़े से जरा-सी पीछे लग रही थी लेकिन सेना ने सुनिश्चित किया कि उन्हें छोटे क्षेत्रीय दलों से पर्याप्त समर्थन मिले। अब लगभग साढ़े 3 वर्षों के शासन के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान अब खुद को सेना की पसंद से बाहर पा रहे हैं। उनकी सरकार को खराब प्रशासन तथा चिंताजनक आर्थिक स्थिति के साथ-साथ अप्रत्याशित महंगाई के लिए विपक्ष की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। मगर जिस चीज ने उनकी सरकार के अस्तित्व को संकट में डाला है वह है सेना की गलत तरीके से चापलूसी करना। 

हाल ही में उन्होंने सेना द्वारा प्रस्तावित नए आई.एस.आई. प्रमुख की नियुक्ति में रोड़ा अटकाया तथा ऐसा संदेह था कि वह एक ऐसे अधिकारी का समर्थन कर रहे हैं जो सेना प्रमुख के तौर पर नियुक्ति की कतार में था। वह यह दावा कर रहे थे कि एक विदेशी ताकत उनकी सरकार पर नियुक्ति के लिए दबाव बना रही थी। 

यद्यपि यह स्पष्ट है कि अब वह पाकिस्तानी सेना के पसंदीदा नहीं रहे। अब विपक्षी दलों ने उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आगे बढ़ाने के लिए हाथ मिला लिया है और यहां तक कि उनकी सरकार का समर्थन करने वाले छोटे दल भी धीरे-धीरे इमरान खान सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं। उनकी सरकार द्वारा विश्वास मत प्राप्त करने के शायद ही कोई अवसर हैं तथा ऐसी आशा की जाती है कि वह संभवत: 1 अप्रैल को मतदान होने से पहले इस्तीफा दे देंगे। 

भारत के परिप्रेक्ष्य से इसका अर्थ अपने पड़ोसी के साथ संबंधों को लेकर अनिश्चितताओं का एक अन्य दौर होगा। गत 2 वर्षों के दौरान सीमा पर स्थिति में सुधार दिखाई दे रहा था। सीमा पर गोलाबारी में नाटकीय रूप से कमी आई है तथा सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ के मामले में भी ऐसा ही है। करतारपुर साहिब गलियारे के खुलने,  जो स्पष्ट तौर पर पाकिस्तानी सेना के सुझाव पर किया गया, से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार आया। 

पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बढऩे तथा इमरान खान के उत्तराधिकारी पर प्रश्न को लेकर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। यही वह समय भी है जब पाकिस्तान की सेना पुन: सक्रिय होती दिखाई दे रही है। इसके अतिरिक्त मुद्रास्फीति की उच्च दर तथा अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियों से और अधिक ऋण लेने के कारण देश में गंभीर आर्थिक संकट के चलते संभवत: नई सरकार लोगों का ध्यान दूसरी ओर करने को बाध्य होगी।-विपिन पब्बी
 


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