घृणा भरे बयान देने वालों के विरुद्ध पार्टियां भी कार्रवाई करें और सरकार भी

punjabkesari.in Tuesday, Feb 25, 2020 - 03:37 AM (IST)

देश की राजनीति कुछ ऐसे असुखद दौर में पहुंच चुकी है जहां विभिन्न दलों के छोटे-बड़े नेता आपत्तिजनक बयान देकर देश का सौहार्द बिगाड़ रहे हैं। विशेष रूप से चंद भाजपा नेताओं द्वारा दिल्ली के चुनावों में दिए गए घृणा भरे बयानों की मतदाताओं पर हुई नकारात्मक प्रतिक्रिया भाजपा उम्मीदवारों पर भारी पड़ी जिसे गृह मंत्री अमित शाह ने भी स्वीकार किया है परंतु चुनावों के बाद भी भाजपा नेताओं पर इसका कोई असर हुआ दिखाई नहीं देता। 

इसका प्रमाण 22 फरवरी को यू.पी. के राज्यमंत्री आनंद शुक्ला ने ए.आई.एम.आई.एम. के नेता वारिस पठान के इस बयान के जवाब में दिया कि ‘‘15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिन्दुओं पर भारी पड़ेंगे।’’ शुक्ला ने कहा, ‘‘जिस दिन एक भी हिन्दू अपने पर आ गया तो उस दिन 15 करोड़ हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में दिखाई देंगे और इसे (ए.आई.एम.आई.एम. के प्रधान) ओवैसी के अब्बा भी नहीं रोक पाएंगे।’’

इसी प्रकार नागपुर से भाजपा प्रवक्ता गिरीश व्यास बोले, ‘‘मुसलमानों को  याद रखना चाहिए कि गुजरात में क्या हुआ था।’’ (फरवरी-मार्च 2002 में गुजरात के गोधरा के दंगों में 1044 लोग मारे गए थे जिनमें 790 मुसलमान थे।) भाजपा नेताओं के अवांछित बयानों पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 19 दिसम्बर, 2017 को कहा था कि ‘‘भाजपा में कुछ लोगों को कम बोलने की जरूरत है। बड़बोले भाजपा नेताओं के मुंह में कपड़ा ठूंस देना चाहिए।’’ 

और अब दिल्ली-भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि नफरत भरे बयान देने वालों के चुनाव लडऩे पर रोक लगा देनी चाहिए। एक कार्यक्रम में वह बोले, ‘‘हम तो चाहते हैं कि ऐसे हेट स्पीच वाले को परमानैंटली हटा दिया जाए। एक ऐसा सिस्टम बने कि जो भी हेट स्पीच दिया हो उसकी वैधानिक मान्यता ही समाप्त कर दी जाए।’’ अब जबकि भाजपा नेतृत्व ने स्वयं ही अपने नेताओं द्वारा नफरत भरे भाषणों के दुष्परिणामों को महसूस कर लिया है, उन्हें तथा अन्य दलों के नेताओं को भी ऐसे नियम बनाने की कवायद अवश्य करनी चाहिए जिससे घृणा भरे भाषण देकर देश का वातावरण खराब करने वाले नेताओं को प्रभावशाली ढंग से दंडित किया जा सके।—विजय कुमार  


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