महबूबा को आतंकियों द्वारा मारे गए मुस्लिम परिवारों का विलाप भी सुनना चाहिए

punjabkesari.in Saturday, Dec 25, 2021 - 05:22 AM (IST)

जम्मू-कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवादियों ने आम लोगों के साथ-साथ सुरक्षा बलों के कश्मीरी मुस्लिम सदस्यों को निशाना बनाना शुरू कर रखा है जिसके मात्र इसी महीने के चंद उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

* 10 दिसम्बर को आतंकवादियों ने बांदीपुरा के गुलशन चौक इलाके में घात लगाकर किए हमले में 2 पुलिस कर्मियों मोहम्मद सुल्तान और फय्याज अहमद को शहीद कर दिया।
* 13 दिसम्बर शाम को श्रीनगर में जेवन के पंथाचौक से गुजर रही जम्मू-कश्मीर सशस्त्र पुलिस की बस पर बाइक सवार आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलियां चला कर 3 जवानों-ए.एस.आई. गुलाम हसन, कांस्टेबलों शफीक अली तथा रमीज अहमद को शहीद कर दिया। 

* 19 दिसम्बर को आतंकवादियों ने पुलवामा जिले के ‘बंदजू’ में जम्मू-कश्मीर पुलिस के सदस्य मुश्ताक अहमद वागे को उसके मकान के निकट ही गोली मार कर घायल कर दिया। 

* 22 दिसम्बर को कश्मीर घाटी में आतंकवाद की 3 घटनाएं हुईं। पहली घटना में बिजबेहाड़ा के निकट आतंकवादियों ने कश्मीर पुलिस के ए.एस.आई. मोहम्मद अशरफ को गोली मार कर शहीद कर दिया। दूसरी घटना में श्रीनगर के ईदगाह इलाके में रऊफ अहमद नामक एक व्यक्ति की जान ले ली तथा एक अन्य घटना में एल.ओ.सी. के निकट बारूदी सुरंग में हुए विस्फोट में मासूमा बानो नामक एक युवती गंभीर रूप से घायल हो गई। घाटी में आतंकवाद की जो अन्य छिटपुट घटनाएं हुई हैं वे इससे अलग हैं। लगातार जारी हिंसा के परिणामस्वरूप जहां बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक पलायन कर गए हैं वहीं स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों को भी आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाए जाने के कारण असुरक्षा का माहौल व्याप्त है। 

एक ओर तो समाज के सभी वर्गों और राजनीतिज्ञों द्वारा इस तरह की घटनाओं की निंदा की जा रही है तथा सरकार द्वारा घाटी में इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों के सफाए के लिए चलाए जा रहे अभियान को सक्रिय करने के लिए कहा जा रहा है परंतु पी.डी.पी. सुप्रीमो तथा जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को ऐसा करना नागवार गुजर रहा है। महबूबा मुफ्ती ने 22 दिसम्बर को परोक्ष रूप से केंद्रीय नेतृत्व को ‘तानाशाह’ बताते हुए कहा, ‘‘हमारे देश में जो हो रहा है उसे सब देख रहे हैं। लोकतंत्र और संविधान को नष्ट किया जा रहा है।’’ महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार पर लोगों के दिमाग में जहर भरने का आरोप लगाया और जम्मू-कश्मीर के युवाओं को ‘अपने खोए हुए सम्मान को वापस पाने के लिए’ एक साथ लडऩे की अपील की। 

भारत सरकार को ‘तानाशाह’ बताने वाली महबूबा मुफ्ती के उक्त बयान को पढ़ कर मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि ऐसा बयान देकर वह क्या कहना चाहती हैं? महबूबा मुफ्ती को आतंकवादियों के हाथों मारे जा रहे निर्दोष मुसलमानों के परिवारों की पीड़ा और सरकार द्वारा बिना किसी भेदभाव के व्यक्त की जा रही उनके प्रति हमदर्दी क्यों नहीं दिखाई देती? क्या महबूबा को मालूम नहीं कि जम्मू-कश्मीर का प्रशासन आतंकवादियों के हाथों मारे जा रहे उनके ही मुस्लिम भाई-बंधुओं के आश्रितों के पुनर्वास के लिए रोजगार प्रदान करके उनकी सहायता में जुटा है। 

महबूबा मुफ्ती को आतंकवादियों के हाथों मारे गए निर्दोष मुसलमानों की विधवाओं और उनके बच्चों का विलाप भी सुनना चाहिए जिन्हें उनके अपनों ने ही तबाह और बर्बाद किया है तथा इनके बारे में भी कुछ बोलना चाहिए। सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पीड़ितों को सुरक्षा बलों तथा अन्य सरकारी विभागों में नौकरियां देने, उनकी सुरक्षा तथा जीवन स्तर के उत्थान के लिए अन्य पग उठाने के बावजूद महबूबा द्वारा उसकी आलोचना करना, उसे ‘तानाशाह’ बताना व भारत में आतंकवादी हिंसा के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान सरकार और उसके पाले हुए आतंकवादियों की निंदा न करना किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता।—विजय कुमार 


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