ममता की जीत भाजपा के लिए एक संदेश

punjabkesari.in Tuesday, Oct 05, 2021 - 05:45 AM (IST)

इस वर्ष पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीत कर भाजपा को करारी पराजय दी परंतु ममता बनर्जी स्वयं चुनाव में नहीं जीत पाईं। हालांकि उन्हें 3 मई को विधायक दल की नेता चुन लिया गया और 5 मई को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ग्रहण कर ली परंतु इस पद पर बने रहने के लिए ममता को 6 महीनों के भीतर चुनाव जीतना जरूरी था। 

इसीलिए उन्होंने अपनी पुरानी भवानीपुर सीट से पार्टी के विधायक शोभन चट्टोपाध्याय से त्यागपत्र दिलवा कर उपचुनाव लड़ा जिसमें उन्होंने भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल को 58,835 वोटों के भारी अंतर से हरा कर 2011 में इसी सीट पर दर्ज अपना जीत का रिकार्ड तोड़ दिया। इस बीच प्रियंका टिबरेवाल ने इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस पर फर्जी मतदान का आरोप लगाया है, वहीं ममता बनर्जी ने इस जीत को उस साजिश के विरुद्ध बताया जो नंदीग्राम में उन्हें हराने के लिए रची गई थी। चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस में मची भगदड़ के चलते बड़ी संख्या में विधायक व अन्य नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए थे परंतु भाजपा ने 34 दलबदलू विधायकों में से जिन 13 विधायकों को टिकट देकर चुनाव में उतारा, उनमें से केवल 5 ही जीत पाए थे। 

इसके बाद तृणमूल कांग्रेस से दलबदलुओं को शामिल करने पर भाजपा नेतृत्व की आलोचना भी हुई थी तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत राय की टिप्पणियों से विवाद खड़ा हो गया था। 7 मई को तथागत राय ने कहा, ‘‘80 के दशक के बाद बंगाल में पार्टी का आधार बनाने के लिए मेहनत करने वाले वर्करों की उपेक्षा की गई। मुझे अब इसी बात की आशंका है कि जो कचरा तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में आया है वह वापस जाएगा और हो सकता है कि यदि भाजपा कार्यकत्र्ताओं को पार्टी में बदलाव नजर न आया तो वे भी चले जाएंगे। इस प्रकार यह बंगाल भाजपा का अंत होगा।’’ 

बंगाल चुनावों के बाद का घटनाक्रम साक्षी है कि तथागत राय का उक्त कथन सही सिद्ध हुआ है तथा अधिकांश दलबदलू वापस तृणमूल कांग्रेस में लौट चुके हैं। पुराने समय से ही यह कहावत चली आ रही है हमें बुजुर्गों की बात सुननी चाहिए। इसीलिए पुराने जमाने में लोग अपने बुजुर्गों को विवाह-शादी आदि के अवसर पर अपने साथ जरूर लेकर जाते थे ताकि जरूरत पडऩे पर उनकी सलाह ले सकें। ममता की जीत भाजपा के लिए एक संदेश है कि इसके नेताओं को तथागत राय (76) जैसे अपने नेताओं की बात सुननी चाहिए और उन्हें अपने साथ रखना चाहिए ताकि आने वाले चुनावों में पार्टी को इस तरह की हानि न उठानी पड़े।—विजय कुमार


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