देश में एक प्रभावी विपक्ष का अभाव

punjabkesari.in Tuesday, Feb 08, 2022 - 06:04 AM (IST)

भारत में केंद्र तथा राज्यों में एक प्रभावी विपक्ष का अभाव है क्योंकि यह सत्ताधारी भाजपा के उभार को रोकने का प्रयास कर रहा है। आमतौर पर चुनावों से पूर्व राजनीतिक समीकरण बदल जाते हैं क्योंकि शत्रु मित्र बन जाते हैं तथा मित्र शत्रु। 1996 में बसपा तथा कांग्रेस साथ आई थीं। 90 के दशक के शुरू में सपा तथा बसपा साथ आईं तथा कांग्रेस व समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनावों में हाथ मिलाया। 

जब भी स्थिति विपक्षी दलों की मांग करती है सत्ताधारी पार्टी पर अंकुश लगाने के लिए समझौता करने हेतु इक_े होने में कोई हर्ज नहीं क्योंकि बहुकोणीय स्पर्धाएं केवल सत्ताधारी पार्टी को जीतने का अवसर प्रदान करती हैं क्योंकि वोट बंट जाते हैं। यदि विपक्ष को अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो इसे आवश्यक तौर पर राज्यों से अपना पुनॢनर्माण करना होगा। इस संबंध में पांच राज्यों के वर्तमान चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त उ मीदवार खड़ा करना अथवा विपक्षी दलों के बीच एक सामरिक सूझबूझ विजय दिला सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि सारे विपक्ष को एक-साथ आ जाना चाहिए लेकिन एक व्यापक गठबंधन का दीर्घकालिक असर होगा। 

विपक्षी दलों के बीच एकता न होने के कई कारण हैं। कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर 2014 से विपक्ष का नेतृत्व करने में असफल रही है। पार्टी निरंतर अपने अतीत के गौरव में रह रही है जबकि क्षेत्रीय क्षत्रपों का यह मानना है कि वे अपने-अपने राज्यों में भाजपा का विरोध करने में कहीं अधिक प्रभावशाली है। 

विपक्ष के सामने चुनौती यह है कि भाजपा को पराजित कैसे किया जाए। यद्यपि 2024 के लोकसभा चुनाव अभी अढ़ाई वर्ष दूर हैं, भाजपा ने पहले ही कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। पांच राज्यों के ये विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे भविष्य के लिए दिशा की ओर संकेत करेंगे। भाजपा किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश में बनी रहना चाहती है। कांग्रेस के कमजोर होने से भारत संसद के भीतर तथा बाहर एक मजबूत, विश्वसनीय राष्ट्रीय विपक्ष का अभाव महसूस कर रहा है। जहां व्यक्तिगत तौर पर प्रत्येक विपक्षी दल एकता की जरूरत बारे बात करता है, वे सत्ताधारी भाजपा का सामना करने की बजाय अपनी-अपनी पार्टियों के भीतर ही युद्ध में अधिक दिखाई देते हैं। 

ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ जैसे कई नेता महत्वाकांक्षी हैं तथा उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षाएं पाल रखी हैं। मगर जो चीज महत्वपूर्ण है वह यह कि कौन सी पार्टी भविष्य में भारत के विपक्ष पर प्रभुत्व बनाएगी। कांग्रेस के लिए दुर्भाग्य की बात है कि पार्टी अब गठबंधन में एक जूनियर पार्टनर है जबकि क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यहीं पर स्पर्धा है। कांग्रेस के भीतर एक युद्ध जैसी स्थिति है। पार्टी को धड़ेबंदी तथा अनुशासनहीनता का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में पार्टी के भीतर झगड़े तथा क्षरण है क्योंकि ‘टीम राहुल’ से जीतन प्रसाद तथा आर.पी.एन. सिंह जैसे वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ भाजपा में चले गए हैं। मजाकिया क्रिकेटर नवजोत सिद्धू के लिए गांधी भाई-बहन ने मूर्खतापूर्वक मु यमंत्री  कैप्टन अमरेंद्र सिंह को हटा दिया जबकि पार्टी आसानी से पंजाब को जीत सकती थी। 

गोवा तथा मणिपुर में अकेली सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद भी कांग्रेस को भाजपा ने मात दे दी तथा 2017 में सरकार का गठन कर लिया। कांग्रेस तथा भाजपा उन्हीं समूहों के लिए लड़ रही है। उत्तर प्रदेश में, यह दलित तथा ब्राह्मण वोटों के लिए है। ‘आप’ तथा ‘शिअद’ पंजाब में कांग्रेस की प्रमुख विरोधी हैं। ए.आई.एम.आई.एम. तथा कांग्रेस तेलंगाना में अल्पसं यक वोटों के लिए स्पर्धा में है। ममता बनर्जी कभी भी कांग्रेस के खिलाफ व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करने का कोई मौका नहीं चूकतीं। ऐसा ही मायावती करती हैं लेकिन वह उत्तर प्रदेश में सपा तथा कांग्रेस दोनों पर हमला बोलती हैं। फिर क्षेत्रीय क्षत्रपों में अहं का टकराव है। वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को उत्सुक नहीं हैं। 

विपक्ष को जीतने के लिए एक नए नैरेटिव तथा एक प्रभावी रणनीति की जरूरत है। जहां भाजपा ने प्रतिबद्ध हिन्दू वोटों का धु्रवीकरण कर लिया है बाकी हिन्दू वोट इधर-उधर होते रहते हैं। यह हिन्दुओं के एक वर्ग के समर्थन के बगैर सफल नहीं हो सकती। राहुल गांधी ने संभवत: यह अहसास कर लिया है और यही कारण है कि वह हिन्दुत्व तथा हिन्दूवाद के बीच अंतर की बात कर रहे हैं। एक उचित रणनीति तथा मजबूत नेतृत्व के साथ कांग्रेस अपने खोए हुए गौरव को फिर से हासिल कर सकती थीं। उदाहरण के लिए, लोकसभा में 542 में से 180 सीटें, कांग्रेस तथा भाजपा के बीच लड़ाई सीधी है। 

350 से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व है, इनमें उत्तर प्रदेश (80), महाराष्ट्र (48), पश्चिम बंगाल (42), बिहार (40), तमिलनाडु (39), आंध्र प्रदेश (25), ओडिशा (21), तेलंगाना (17), मध्य प्रदेश (29), कर्नाटक (28), गुजरात (26), राजस्थान (25), असम (14), पंजाब (13), छत्तीसगढ़ (11) तथा हरियाणा (10) आदि शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास एक गुप्त हथियार है। कमजोर कांग्रेस पार्टी तथा खंडित विपक्ष भाजपा को सत्ता में बनाए रखे हैं। इसलिए इसका समाधान विपक्ष के हाथों में ही है। आपस में ही लडऩे की बजाय विपक्ष को एक स्वस्थ लोकतंत्र में एकजुट होने की जरूरत है। यदि विपक्षी दल ऐसा नहीं करते तो भाजपा की 2024 में वापसी की पूरी संभावना है।-कल्याणी शंकर
  
 


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