‘कश्मीरी युवा पत्थरबाजी छोड़ें’‘काश! महबूबा ने यह सलाह पहले दी होती’

punjabkesari.in Tuesday, Mar 02, 2021 - 02:34 AM (IST)

महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन रूबिया सईद का 7 दिसम्बर, 1989 को  ‘जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ (जे.के.एल.एफ.) के सदस्यों  ने उस समय अपहरण कर लिया था जब वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की केंद्रीय सरकार में इनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री थे। 

आतंकवादियों से रूबिया को छुड़वाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 5 खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने की मांग स्वीकार कर लेने के बाद से ही घाटी में हालात तेजी से खराब होने शुरू हुए। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1999 में महबूबा को साथ लेकर पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.) का गठन किया और महबूबा ने उनकी मृत्यु के बाद 4 अप्रैल, 2016 को भाजपा के सहयोग से जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई। 

भाजपा द्वारा पी.डी.पी. से समर्थन वापस लेने पर 19 जून, 2018 को महबूबा ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया और अगले वर्ष 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 समाप्त करनेे से पूर्व 4-5 अगस्त की मध्य रात्रि को उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती को उनके घरों में नजरबंद कर दिया। 

13 अक्तूबर, 2020 को अपनी रिहाई के तुरंत बाद महबूबा ने धारा-370 हटाने के सरकार के फैसले को ‘काला फैसला’ बताया और 14 अक्तूबर को अपने विरोधी नैशनल कांफ्रैंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला तथा उनके बेटे उमर अब्दुल्ला से भेंट की और उनके नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर की 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति को बहाल करवाने के लिए गठित 6 राजनीतिक दलों के ‘गुपकार गठबंधन’ में शामिल हो गई। 

अपना भारत विरोधी एजैंडा आगे बढ़ाती आ रही महबूबा ने 23 अक्तूबर, 2020 को एक बयान देते हुए कह दिया कि वह प्रदेश में धारा-370 दोबारा लागू होने तक कोई दूसरा झंडा (भारत का तिरंगा) नहीं उठाएगी और ‘‘धारा 370 समाप्त किए जाने से पहले का जम्मू-कश्मीर का दर्जा बहाल करने के लिए हम जमीन-आसमान एक कर देंगे।’’ महबूबा के उक्त बयान को लेकर जम्मू तथा अन्य स्थानों पर महबूबा के विरुद्ध प्रदर्शन भी हुए और उसके पुतले भी फूंके गए। इस समय जबकि भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों और अन्य समाज विरोधी तत्वों के विरुद्ध अभियान जारी है, अचानक महबूबा मुफ्ती ने एक और बयान में घाटी के हथियार थामने वाले युवाओं को किसानों जैसा आंदोलन चलाने की सलाह दी है : 

‘‘किसानों के हाथ में न बंदूक है और न पत्थर, फिर भी पूरी दुनिया उनके साथ है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को खोया हुआ राज्य का दर्जा पाने के लिए ऐसी ही कोशिश और संघर्ष करना चाहिए। कश्मीर में छोटे-छोटे बच्चे बंदूक उठा रहे हैं जोकि मुठभेड़ में मारे भी जा रहे हैं। बंदूक और पत्थर से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।’’ अब जबकि सुरक्षा बल जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित हिंसा पर काबू पा रहे हैं, महबूबा को भी लगने लगा है कि अपनी गर्मख्याली विचारधारा से वह अपनी राजनीति आगे नहीं चला सकती लिहाजा उसने युवाओं को पत्थरबाजी छोड़ने व शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने की सलाह दी है। 

काश! महबूबा ने यह बयान उस समय दिया होता  जब कश्मीर में पत्थरबाज युवक अलगाववादियों की उकसाहट में आकर मामूली पैसों के बदले में भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करके प्रदेश में ङ्क्षहसा और रक्तपात कर रहे थे। वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार उस वर्ष घाटी में पत्थरबाजी की कम से कम 2600 घटनाएं हुई थीं। अब महबूबा द्वारा यह बयान देने का कारण पाकिस्तान और चीन के भारत से तनाव घटाने और संबंध सामान्य करने की इच्छा जताने से उसे अलगाववादियों और पत्थरबाजों के समर्थन का लाभ न मिलता दिखाई देना और अपनी पार्टी पी.डी.पी. में पड़ी फूट भी हो सकता है। 

अत: न तो उसे पत्थरबाजों का समर्थन करना चाहिए था और न ही राज्य के पहले वाले दर्जे की बहाली के लिए अपने विरोधी फारूक अब्दुल्ला के ‘गुपकार गठबंधन’ में शामिल होना चाहिए था, जिनकी परिवारवाद की राजनीति को समाप्त करने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद तथा उसने मिल कर ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ कायम की थी।-विजय कुमार


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