न्यायमूर्ति बिंदल की ‘टिप्पणी’ ‘सरकारी अधिकारी सो रहे कुंभकर्ण की नींद’
punjabkesari.in Sunday, Dec 13, 2020 - 01:48 AM (IST)
रावण, कुंभकर्ण और विभीषण की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर एक बार ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तो ‘इंद्रासन’ प्राप्त करने के इच्छुक कुंभकर्ण ने भूलवश ‘इंद्रासन’ की बजाय ‘निद्रासन’ का वर मांग लिया।
ब्रह्मा जी के ‘तथास्तु’ कहते ही जब कुंभकर्ण को अपनी भूल का एहसास हुआ तो वह ब्रह्मा जी से यह वरदान वापस लेने के लिए गिड़गिड़ाने लगा तो उन्होंने कहा कि वरदान वापस तो नहीं हो सकता अलबत्ता तुम 6 महीने के बाद एक दिन के लिए निद्रा से जाग सकोगे। जब सीताहरण के बाद रावण का राज्य खतरे में पड़ गया और युद्ध में उसके अनेक परिजन एवं योद्धा मारे गए तब रावण के मन में कुंभकर्ण की सहायता लेने का विचार आया परंतु उस समय वह घोर निद्रा में था।
रावण के अनुचर ढोल-नगाड़े बजाकर और कई अन्य उपाय कर ही कुंभकर्ण को जगा पाए और उसके बाद श्री राम से युद्ध करने के लिए वह रणभूमि में चला गया। तभी से महाआलसी लोगों की तुलना कुंभकर्ण से की जाने लगी। ‘रामायण’ के इसी प्रसंग का उदाहरण 9 दिसम्बर को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह कह कर दिया कि ‘‘लंबित केसों में आपत्तियां और उत्तर दायर करने के मामले में हमारे अधिकारी कुंभकर्ण से कम नहीं हैं।’’
जम्मू-कश्मीर में अप्रैल 2018 में एक सड़क निर्माण के टैंडर पर एक कम्पनी द्वारा लिए गए अंतरिम स्टे आर्डर को समाप्त करवाने के लिए संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर न्यायमूर्ति बिंदल ने सुप्रीमकोर्ट की एक पुरानी टिप्पणी का हवाला देते हुए यह बात कही। इस सड़क निर्माण के लिए उत्तरदायी अधिकारियों द्वारा स्टे आर्डर न तुड़वाने से न सिर्फ उक्त सड़क निर्माण की लागत बढ़ गई बल्कि सड़क न बन पाने के कारण क्षेत्रवासी अभी तक इस सुविधा से वंचित हैं।
न्यायमूर्ति बिंदल ने कहा, ‘‘अधिकारियों की इस तरह की निष्क्रियता का यह कोई अकेला मामला नहीं है न जाने देश में ऐसे कितने मामले होंगे जिस कारण लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।’’ ‘‘जिस प्रकार कुंभकर्ण को जगाने के लिए रावण के अनुचरों को उसके निकट भारी शोर-शराबा करने के अलावा तरह-तरह के उपाय अपनाने पड़े थे, वैसे ही सरकारी अधिकारियों को भी गहरी नींद से जगाने के लिए तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं। अत: इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए उनकी जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है।’’
उल्लेखनीय है कि अधिकारियों की लापरवाही के अनेक मामले सामने आते रहते हैं। देश में आवासीय इलाकों, सड़कों और खेतों आदि के ऊपर से गुजरने वाली बेतरतीब हाई टैंशन बिजली की नंगी तारों से मूल्यवान प्राण जा रहे हैं परंतु अधिकारियों से बार-बार गुहार करने के बावजूद यह समस्या ज्यों की त्यों है और लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं जिसके मात्र 6 दिसम्बर से 11 दिसम्बर तक 6 दिनों के 6 उदाहरण निम्र में दर्ज हैं :
* 6 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश में ‘महाराजगंज’ के ‘बेनीगंज’ गांव में शादी समारोह के लिए टैंट लगा रहा युवक ऊपर से गुजर रही 11000 वोल्ट की तार की चपेट में आने से मारा गया।
* 9 दिसम्बर को लुधियाना में ‘बहादुर के’ रोड चुंगी के निकट एक फैक्टरी में छत पर लोहे की सीढ़ी लगाते हुए ऊपर से गुजर रही हाई वोल्टेज तार से सीढ़ी छू जाने के चलते एक कामगार की मृत्यु हो गई।
* 9 दिसम्बर को झारखंड के ‘पलामू’ जिले में सड़क पर गुजर रही बारातियों की एक बस बहुत नजदीक से गुजर रही 11,000 वोल्ट की बिजली की तार की चपेट में आ गई जिससे एक बाराती की जान चली गई।
* 10 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश में ‘कौशाम्बी’ के ‘गौहानी’ गांव में बांस लेकर जा रहे युवक ने ऊपर से गुजर रही हाईटैंशन तार की चपेट में आकर दम तोड़ दिया।
* 11 दिसम्बर को राजस्थान के ‘बांसवाड़ा’ में सड़क के ऊपर लटक रही हाईटैंशन तार टूट कर वहां से स्कूटी पर जा रही एक महिला पर जा गिरी जिससे वह करंट लगने से तड़प-तड़प कर मर गई।
* 11 दिसम्बर को ‘ग्रेटर नोएडा’ के ‘मकनपुर खादर’ गांव में एक बारात की ‘घुड़चढ़ी’ के दौरान ऊपर लटक रही हाई वोल्टेज तार की चपेट में आने से 3 बाराती बुरी तरह झुलस गए और 13 वर्षीय बच्चे की मृत्यु हो गई।
उक्त घटनाएं बिजली विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और नागरिक आबादी के स्थानों के ऊपर से गुजर रहे ढीले-ढाले तार न हटाने का ही परिणाम हैं। अत: श्री ङ्क्षबदल द्वारा सरकारी अधिकारियों की कुंभकर्ण से तुलना करना सौ फीसदी सही है क्योंकि यह किसी एक प्रदेश की नहीं बल्कि देश के अधिकांश प्रदेशों की यही स्थिति है।
अत: न्यायमूर्ति श्री बिंदल की टिप्पणी का देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संज्ञान लेते हुए संबंधित विभागों के मंत्रियों व विभागाध्यक्षों, पावर कार्पोरेशनों के चेयरमैनों आदि से यह मामला उठाना चाहिए और औचक छापेमारी करके उनके काम की पड़ताल करना तथा आदेशों का पालन न होने की स्थिति में दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि उन्हें नसीहत मिले और वे लापरवाही बरतने से बाज आएं।—विजय कुमार
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