लोकतंत्र के मामले में भारत 10 पायदान फिसला

punjabkesari.in Friday, Jan 24, 2020 - 01:48 AM (IST)

‘द इकोनॉमिस्ट इंटैलीजैंस यूनिट’ (ई.आई.यू.) द्वारा तैयार किए गए ‘लोकतंत्र गुणवत्ता सूचकांक’ में 165 स्वतंत्र देशों और 2 क्षेत्रों की सूची में भारत लगातार पिछड़ते हुए 10 पायदान फिसल कर 51वीं पायदान पर आ गया है। 2006 में इस रैंकिंग के शुरू होने के 13 वर्षों में लगातार तीसरे वर्ष भारत की रैंकिंग गिरी है। वर्ष 2017 में भारत 42वें और 2018 में 41वें स्थान पर था और अब 51वीं पायदान पर फिसल कर पहली बार शीर्ष 50 देशों की सूची से बाहर हो गया है जो भारत के लिए अब तक की सर्वाधिक खराब स्थिति है। 

रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र की गुणवत्ता के मामले में नार्वे शीर्ष पर कायम है जबकि दूसरा और तीसरा स्थान क्रमश: आइसलैंड और स्वीडन को मिला है। इसके बाद न्यूजीलैंड, फिनलैंड, आयरलैंड, डेनमार्क, कनाडा, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड का स्थान है। सूचकांक में सबसे नीचे की 167वीं पायदान पर उत्तर कोरिया है। 5 श्रेणियों-चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद (प्लूरलिज्म), सरकार के कामकाज, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता के मापदंडों के आधार पर निर्मित इस सूचकांक में भारत को ‘दोषपूर्ण लोकतंत्र’ की श्रेणी में रखा गया है। 

रिपोर्ट के अनुसार 2019 का वर्ष विश्व में लोकतंत्र के लिए सबसे खराब तथा एशियाई लोकतंत्रों के लिए ‘उथल-पुथल’ भरा रहा। भारत की रैंकिंग में गिरावट का कारण बताते हुए कहा गया कि भारत में जम्मू-कश्मीर में लाए गए बदलाव और सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. पर सरकार के ऐतिहासिक फैसलों ने राजनीतिक टकराव पैदा किया तथा सी.ए.ए. को भेदभावपूर्ण कानून के रूप में देखा गया जिसका प्रभाव देश में सामाजिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक स्थिति पर पड़ा। हमारे विचार में भारत की रैंकिंग में गिरावट सरकार द्वारा अपने गठबंधन सहयोगियों और विरोधियों के साथ सलाह-मशविरा किए बिना लिए गए निर्णयों का नतीजा है जिनके कारण विवाद पैदा हुए परंतु अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है और यदि सरकार भविष्य में महत्वपूर्ण मामलों में सभी पक्षों के साथ सलाह-मशविरा करके चले तो स्थिति बेहतर हो सकती है।—विजय कुमार 


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