जसवंत सिंह के रूप में भारत ने खोया एक और जुझारू, प्रतिबद्ध और कर्मठ नेता

punjabkesari.in Tuesday, Sep 29, 2020 - 03:05 AM (IST)

पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री जसवंत सिंह (82) का लम्बी बीमारी के बाद 27 सितम्बर को सुबह 6.55 बजे सैनिक अस्पताल में निधन हो गया जहां वह 25 जून से उपचाराधीन थे। भारतीय सेना में मेजर रहे श्री जसवंत सिंह अगस्त 2014 में अपने घर के बाथरूम में गिरने के बाद कोमा में चले गए थे। 3 जनवरी, 1938 को बाड़मेर के जसौल गांव में जन्मे व भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक श्री जसवंत सिंह उन गिने-चुने पार्टी नेताओं में से थे जो आर.एस.एस. की पृष्ठभूमि से न आने के बावजूद श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार (1998-2004) में विदेश, वित्त एवं रक्षा मंत्री रहे। 

श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा श्री लाल कृष्ण अडवानी के प्रिय एवं विश्वस्त श्री जसवंत सिंह की श्री वाजपेयी से गहरी घनिष्ठता थी तथा वर्तमान राजनीतिज्ञों में वह श्री नितिन गडकरी के निकट थे। प्रभावशाली व्यक्तित्व और हंसमुख स्वभाव के स्वामी श्री जसवंत सिंह 1980 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश के बाद 4 बार लोकसभा व 5 बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते श्री जसवंत सिंह को मोहम्मद अली जिन्ना पर पुस्तक लिखने के कारण 2009 में भाजपा से निकाल दिया गया था परंतु 10 महीने के बाद ही नितिन गडकरी उन्हें वापस ले आए थे। तब जसवंत सिंह ने कहा था कि ‘‘भाजपा चापलूसों की पार्टी बनती जा रही है।’’ दूसरी बार जसवंत सिंह को 2014 में पार्टी से निकाला गया जब बाड़मेर से लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण उन्होंने पार्टी को अलविदा कह कर निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गए। 

श्री जसवंत सिंह की मृत्यु का समाचार पढ़ कर मुझे 1991 का वह दिन याद आ रहा है जब वह श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर ‘ङ्क्षहद समाचार भवन’ में पंजाब के हालात की जानकारी प्राप्त करने आए थे। उस दिन अचानक मुझे भाजपा नेता तथा पूर्व विधायक वैद्य ओम प्रकाश दत्त का फोन आया और उन्होंने कहा कि ‘‘जसवंत सिंह जी आपसे मिलने और पंजाब के हालात की जानकारी प्राप्त करने आ रहे हैं तथा हम लोग भोजन भी आपके यहां ही करेंगे। अत: आप उसकी भी व्यवस्था कर लें।’’ तय समय पर वैद्य ओम प्रकाश दत्त तथा अन्य चंद लोगों के साथ जसवंत सिंह जी हमारे यहां पधारे। भोजन किया और फिर हम सब उन्हें घेर कर बैठ गए और उनसे भविष्य के संभावित घटनाक्रम पर चर्चा करने लगे और हमने उन्हें यह भी बताया कि आतंकवाद के विरुद्ध इस संग्राम में कितने लोग शहीद हो चुके हैं। 

उन्होंने बातचीत के दौरान कहा कि श्री वाजपेयी जी पंजाब के हालात के बारे में बहुत अधिक ङ्क्षचतित हैं और उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं आपसे पंजाब के हालात के बारे में जानकारी प्राप्त करके आऊं। उन दिनों केंद्र और पंजाब में कांग्रेस पार्टी का शासन था और बोफोर्स तोप की खरीद में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा गर्म था। हमने उनसे बोफोर्स तोप खरीद में कथित घोटाले के बारे में कुछ जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि ‘‘चाहे इस तोप की खरीद में कुछ पैसा खाया गया हो या न खाया गया हो, एक बात तो पक्की है कि कोई अन्य तोप इस तोप जैसी नहीं है और ऐसी तोप हर हालत में खरीदी ही जानी चाहिए।’’ श्री जसवंत सिंह एकमात्र विधि निर्माता थे जिन्हें सैन्य उपकरणों के साथ-साथ इस तोप के बारे में गहन जानकारी थी। कांग्रेस की ओर से आयोजित इस तोप के ट्रायल में इसकी पड़ताल करने के बाद जसवंत सिंह जी ने खुल कर इसकी सराहना की थी जिसने कारगिल युद्ध जीतने में बड़ी भूमिका निभाई। 

जहां श्री जसवंत सिंह ने 1998 में भारत द्वारा पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद अमरीकी प्रतिबंधों और अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का सामना किया, वहीं उसी वर्ष हुए कारगिल युद्ध में भारत की विजय और 2001 के आगरा शिखर सम्मेलन आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बहरहाल विदेश, वित्त और रक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अनेक महत्वपूर्ण दायित्व निभाने वाले श्री जसवंत सिंह को कुछ अग्नि परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ा।

24 दिसम्बर, 1999 को नई दिल्ली से 150 यात्रियों को लेकर काठमांडू जा रहे एयर इंडिया के विमान का अपहरण करके आतंकवादी अफगानिस्तान के कंधार शहर में ले गए तथा वहां एक अपहृत की हत्या भी कर दी और इसके साथ ही यह चुनौती दे दी कि भारत में बंद आतंकवादी मसूद अजहर तथा 2 अन्य आतंकवादियों को रिहा करने के बाद ही विमान छोड़ा जाएगा। अपहृत यात्रियों के परिजनों द्वारा श्री वाजपेयी जी से सहायता की गुहार करने पर अपहृतों के परिजनों की पीड़ा से द्रवित श्री वाजपेयी ने आतंकवादियों की मांग स्वीकार करने का फैसला कर लिया। 

श्री जसवंत सिंह, जो उस समय विदेश मंत्री थे, ने श्री वाजपेयी जी की बात का विरोध किया परंतु अंतत: उन्हें श्री वाजपेयी जी की बात मानते हुए अपहृत विमान छुड़वाने के लिए उक्त तीनों आतंकवादियों को लेकर कंधार जाना पड़ा था। हालांकि इसके लिए उन्हें विरोधी दलों की भारी आलोचना का सामना भी करना पड़ा था और इससे उनकी छवि को आघात भी लगा। रौबीले व्यक्तित्व के स्वामी होने के अलावा श्री जसवंत सिंह की हास्य की भावना भी गजब की थी जिसका एक नमूना उन्होंने जुलाई, 2009 में संसद में बजट पर बहस करते हुए यह कह कर पेश किया था कि ‘‘वरिष्ठ नागरिकों को आयकर में दी गई छूट की रकम इतनी भी नहीं है कि उससे व्हिस्की की एक बोतल भी खरीदी जा सके।’’ 

यह विडम्बना ही है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान खरी सोच वाले और देश को जोड़ कर रखने वाले सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी, जार्ज फर्नांडीज, मदन लाल खुराना, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और अरुण जेतली जैसे अनेक नेताओं को खो दिया है। देश और जनता को साथ लेकर चलने वाले नेताओं की शृंखला में अब श्री जसवंत सिंह का बिछुडऩा देश की स्वच्छ राजनीति के लिए अपूर्णीय क्षति है और उनकी मृत्यु से देश ने एक और कर्मठ, प्रतिबद्ध और जुझारू नेता खो दिया है।—विजय कुमार  


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