आज के संदर्भ में हमारा पक्का विचार ‘कब्जाखोरी छोड़ो’ ‘विश्व को खुशहाल बनाओ’

punjabkesari.in Saturday, Nov 07, 2020 - 02:23 AM (IST)

आज विश्व एक अजीब माहौल से गुजर रहा है जब सत्ताधारी और प्रभावशाली लोगों ने अपनी सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है और दुनिया एक तरह से ‘कब्जाखोरों’ से घिर गई है। अमरीका तथा विश्व के अन्यदेशों में एक ‘दीवालिया परम्परा’ है जिसके अंतर्गत लोगों द्वारा मकानों, कारों तथा उधार खरीदी गई अन्य वस्तुओं की किस्तें अदा न करने पर लेनदार उन वस्तुओं पर कब्जा कर लेते हैं। 

इसी प्रकार सत्ताधारी भी अपनी सत्ता बनाए रखने व इसका विस्तार करने के हथकंडे अपना रहे हैं। ऐसा ही हथकंडा अपार सम्पदा के स्वामी अमरीका के राष्ट्रपति ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ 1991 और 2009 के बीच अपने ‘होटल तथा कैसिनो व्यवसाय’ को 6 बार दीवालिया घोषित करके आजमा चुके हैं और उनका कहना है कि, ‘‘मैं चुनावों में भी इसी तरह टोटल विक्ट्री प्राप्त करूंगा।’’दिसम्बर 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रूस के तानाशाह ‘जोसेफ  स्टालिन’ (1878-1953) ने अपने नाम पर बसाए शहर ‘स्टालिनग्राद’ के युद्ध में जर्मन तानाशाह हिटलर की सेनाओं के विरुद्ध पीछे न हटने की जिद में रूसी सेना के 10 लाख से अधिक सैनिक मरवा दिए। हिटलर की सेनाओं को जर्मनी लौट जाने को मजबूर किया और रूसी सेनाएं बर्लिन तक जा पहुंचीं। 

विश्वयुद्ध में जर्मनी को हराने में ‘स्टालिन’ ने भूमिका निभाई व रूसी सेनाओं ने पूर्वी यूरोप के बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। लम्बा शासन करने वाला ‘स्टालिन’ अपने अंतिम दिनों में बेहद शक्की हो गया था। सत्ता लिप्सा में वह अपने कई लोगों को शत्रु मानने लगा व जिस पर भी शक हुआ उसे मरवा दिया। ‘स्टालिन’ के बाद सोवियत संघ अनेक छोटे-छोटे देशों में बंट गया व इस समय ‘स्टालिन’ के पदचिन्हों पर चल रहा ‘व्लादिमीर पुतिन’ राज कर रहा है, उसने भी अगले 16 वर्ष अर्थात 2036 तक राष्ट्रपति के पद पर बने रहने के लिए कानून पारित करवा लिया था, परन्तु अब वह ‘पार्किंसन्स रोग से पीड़ित’ हो गया है तथा जनवरी 2021 में पद छोड़ सकता है। 

नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव, बंगलादेश आदि सहित अनेक देशों की जमीन कब्जाने और अपने कर्ज के जाल में फंसा कर उन्हें भारत विरोधी गतिविधियों के लिए उकसाने वाले चीन के सर्वेसर्वा जिनपिंग ने भी जिंदगी भर राष्ट्रपति रहने की व्यवस्था की है। जहां चीनी नेता शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों पर अत्याचारों को लेकर आलोचना झेल रहे हैं, वहीं उन्होंने ‘नेपाल में कई गांवों पर कब्जा’ कर लिया है और पाकिस्तान में भी अपने कई ठिकाने बना लिए हैं। श्रीलंका को भी जाल में फंसा कर उनकी ‘हम्बनटोटा’ बंदरगाह लीज पर ले ली है और बंगलादेश को भी प्रभाव में लेने के लिए जिनपिंग ने उसे 24 बिलियन डालर सहायता देने के अलावा वहां अनेक निर्माण परियोजनाएं शुरू कर दी हैं। चीन ने भारत के ‘पड़ोसी तिब्बत पर भी कब्जा’ कर लिया है और भारत द्वारा तिब्बतियों के धर्मगुरु ‘दलाई लामा’ को भारत में शरण देने पर भी वह भड़का हुआ है। हालांकि भारत ने भी नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश आदि में निवेश किया है परंतु इसके बावजूद इन देशों का झुकाव चीन की ओर ही अधिक है। 

उत्तर कोरिया के लोग ‘किम-उन-जोंग’ की तानाशाही तले पिस रहे हैं जिसने सत्ता पर पकड़ और मजबूत करने के लिए अपनी बहन ‘जो योंग’ को बड़ी जिम्मेदारियां दे दी हैं परंतु अभी भी सारी ताकत अपने हाथों में ही रखी है। ऐसे हालात में हमारा तो यही मानना है कि इस तरह की ‘कब्जाखोरी’ का रुझान गलत है। आखिर ‘दूसरे देशों के भू-भागों’ पर कब्जा करने का क्या लाभ। जो कुछ अपना है उसी में खुश रहो, अपने इस संसार को ठीक करो जिस प्रकार यूरोप तथा विश्व के अन्य अनेक लोकतांत्रिक देश तरक्की कर रहे हैं। लोग दूसरे देशों में जाकर काम करके खुशहाल हो रहे हैं। पाकिस्तान की गुलामी से आजाद होकर बंगलादेश भी तरक्की कर रहा है। ऐसा ही हर जगह होना चाहिए। 

आज भारत में हमने चुनावों को एक व्यवसाय बना लिया है और अनेक बुराइयां हमारे भीतर भी घर कर गई हैं जिसे कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। आज आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच भयानक युद्ध में हजारों लोग मारे जा चुके हैं और चीन में ‘उइगर मुसलमानों’ पर अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं तथा पाकिस्तान में ‘गृह युद्ध’ जैसी स्थिति बनी हुई है, ऐसे हालात के बीच बार-बार यह चर्चा भी सुनाई देती है कि चीन और पाकिस्तान के साथ जारी विवाद के चलते क्या ‘हमारा भी चीन और पाकिस्तान के मध्य युद्ध होगा’। इस समय अमरीका में वीजा पर प्रतिबंध लगे हुए हैं, विश्व के अनेक भागों अमरीका, चीन, रूस, फ्रांस, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कनाडा, नाइजीरिया, आर्मेनिया और अजरबैजान  आदि में हिंसा फैली हुई है। 

अश्वेतों और मुसलमानों पर हमलों, अत्याचारों और मारकाट के चलते बड़ी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं। भारत में भी, जहां अभी तक सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते आ रहे हैं, लड़ाई-झगड़े के हालात बन गए हैं। अत: इसी डर से कि कहीं हमारे देश में भी ऐसी स्थितियां न बन जाएं, भारत, चीन और पाकिस्तान आपस में कतई युद्ध नहीं करेंगे, ऐसा हमारा पक्के तौर पर मानना है। संभवत: इसी के मद्देनजर पाकिस्तान, जिसने गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब का प्रबंधन अपने हाथों में लेकर उसका नाम ‘प्रोजैक्ट बिजनैस प्लान’ कर दिया था, ने फिर से इसका नाम ‘करतारपुर कॉरीडोर प्रोजैक्ट’ रख दिया है। हालांकि इसकी पहले वाली पूरी स्थिति बहाल करने के लिए प्रयास जारी हैं।—विजय कुमार 


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