भारत के अस्पताल जहां लापरवाही और इलाज के अभाव में होती हैं मौतें

punjabkesari.in Tuesday, Aug 31, 2021 - 04:11 AM (IST)

लोगों को सस्ती और उच्च स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु सरकारें इसमें विफल हो रही हैं। इसीलिए सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने तथा सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने से हर कोई संकोच करता है। सरकारी अस्पतालों की बदहाली का अनुमान मात्र एक सप्ताह के निम्र उदाहरणों से लगाया जा सकता है : 

* 13 अगस्त को हिमाचल के टांडा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद मैडीकल कालेज में एक नवजात की मृत्यु के संबंध में उसके परिजनों ने आप्रेशन के दौरान नवजात के सिर पर गहरा कट लगने से मौत होने का आरोप लगाया।
* 24 अगस्त को उत्तर प्रदेश में रायबरेली के जिला अस्पताल में इलाज के लिए लाए गए मरीज को दाखिल करने में विलम्ब और समय रहते इलाज शुरू न करने से एक रोगी की मृत्यु हो गई। मृतक के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल के स्टाफ ने रोगी की मौत के बाद उसे ऑक्सीजन लगाने और उसके खून के नमूने लेने का नाटक शुरू कर दिया। 

* 28 अगस्त को पंजाब में बठिंडा के सरकारी अस्पताल के स्टाफ द्वारा संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने से एड्स की शिकार हुई महिला की 3 वर्षीय बेटी और पति के भी एच.आई.वी. संक्रमित होने का सनसनीखेज खुलासा हुआ। 
* 28 अगस्त को उत्तर प्रदेश के बांदा जिला अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती मरीज को ड्रिप लगाने की बजाय अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ ड्यूटी रूम का दरवाजा अंदर से बंद करके सो गया और सुबह 7 बजे तक कोई नहीं उठा। इस बीच मरीज की हालत बिगड़ती गई और अंतत: इलाज के अभाव में उसकी मृत्यु हो गई। 
* 29 अगस्त को मध्य प्रदेश के नीमच जिले में रामपुरा स्थित सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए लाई गई प्रसूता का रात भर अस्पताल के स्टाफ द्वारा इलाज न किए जाने के कारण सुबह होते-होते उसने दम तोड़ दिया। 
* 29 अगस्त को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की अम्बाह तहसील में 16 वर्षीय एक नाबालिग को कोरोना की वैक्सीन लगा देने से उसका सिर घूम गया और मुंह से झाग निकलने लगी। गंभीर हालत में उसे इलाज के लिए ग्वालियर भेजना पड़ा। 

* 29 अगस्त को बिहार में बेतिया के सरकारी अस्पताल में रात 2 बजे एक बच्चे को इलाज के लिए लाया गया परंतु इस दौरान अस्पताल के डाक्टर एवं अन्य स्टाफ सोए हुए थे और जगाने पर बार-बार इलाज का अनुरोध करने पर भी डाक्टरों ने कोई ध्यान नहीं दिया तथा समय पर इलाज न मिलने से बच्चे की मृत्यु हो गई। करोड़ों रुपयों की लागत से निर्मित सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ, दवाओं और बुनियादी ढांचे की कमी निश्चय ही एक ज्वलंत समस्या है जिसका समाधान यथाशीघ्र ढूंढा जाना चाहिए। नहीं तो इसी प्रकार अस्पतालों में अप्रिय घटनाएं होती रहेंगी और लोग बेमौत मरते रहेंगे।—विजय कुमार


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News