अच्छा संकेत है आई.टी. सैक्टर में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी

punjabkesari.in Monday, Feb 14, 2022 - 04:13 AM (IST)

भारत में महिलाओं की ‘श्रमिक सहभागिता दर’ विश्व के अनुपात में बहुत कम है और हाल के वर्षों में इसमें तेजी से गिरावट आई है। गत वर्ष आई वल्र्ड इकोनोमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक अंतर सूचकांक में 150 देशों में भारत 28 स्थान खिसक कर 140वें स्थान पर पहुंच गया। इस मामले में हमारा देश पड़ोसी देशों बंगलादेश, नेपाल और भूटान तक से पीछे है। देश की जनसं या में महिलाओं की सं या 48 प्रतिशत है लेकिन आर्थिक वृद्धि का लाभ महिलाओं को उतना नहीं मिल पाया। शिक्षा में ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों की महिलाओं की सं या बढ़ रही है परंतु वे रोजगार में उतना योगदान नहीं दे पा रही हैं। 

हालांकि, एक उम्मीद की किरण आई.टी. सैक्टर की ओर से नजर आ रही है जहां कर्मचारियों में ‘जैंडर गैप’ यानी लैंगिक अंतर कम हो रहा है। टाटा कंसल्टैंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो, टैक महिंद्रा, एम्फैसिस और माइंडट्री जैसी भारत की टॉप इंफार्मेशन टैक्नोलॉजी क पनियों में 31 दिसंबर, 2021 तक 10 कर्मचारियों में कम से कम 3 महिलाएं थीं।अधिकांश कंपनियों ने अगामी तिमाहियों में अपने कुल कर्मचारियों की सं या में महिला कर्मचारियों की संख्या को 45-50 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कई तरह की पहल की जा रही हैं जैसे कि कै पस व लैटरल भर्ती से लेकर लीडरशिप के लिए महिलाओं को तैयार करना। 

कंपनियां लैंगिक अंतर को कम करने के लिए तेजी से प्रयास कर रही हैं। उदाहरण के लिए टैक महिंद्रा ने पिछली दो तिमाहियों में लिंग विविधता अनुपात में 5 प्रतिशत का सुधार किया है। लगभग डेढ़ लाख कर्मचारियों की संख्या में अब लगभग 34.2 प्रतिशत महिलाएं हैं। विप्रो के 2,31,000 कर्मचारियों में 36.3 प्रतिशत महिलाएं हैं। क पनी अपनी कै पस रिक्रूटमैंट के दौरान 50 प्रतिशत महिलाओं को नियुक्त करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। 

भारत की सबसे बड़ी आई.टी. सेवा क पनी टी.सी.एस. में गत 4 वर्षों से महिला कर्मचारियों की संख्या लगातार औसतन 34 से 40 प्रतिशत के बीच रही है। इसके कुल कर्मचारियों में 36.5 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। वहीं इन्फोसिस में महिला कर्मचारियों की सं या 40 प्रतिशत है तो ए फैसिस में महिलाओं की संख्या 35 प्रतिशत है। इस समय कै पस प्लेसमैंट के दौरान 50 प्रतिशत महिलाओं को भर्ती करने की कोशिश की जा रही है परंतु मिडल लैवल पर लैंगिक अंतर अभी भी अधिक है अत: कंपनियां अब वहां भी सुधार की कोशिश कर रही हैं। आशा है कि यह प्रयास सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों तथा सरकारी उपक्रमों में भी नजर आएगा। वहां पर भी लैंगिक अंतर कम करने की जरूरत है।
 


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