यूरोपीय संघ हो गया चीन से नाराज

punjabkesari.in Monday, Jun 29, 2020 - 03:12 AM (IST)

दुनिया भर में चीन विरोधी भावनाएं लोगों में बढ़ रही हैं लेकिन अब आधिकारिक स्तर पर भी यूरोप में चीन विरोधी भावनाओं के संकेत दिखने लगे हैं। चीन के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध स्थापित करने के वर्षों बाद यूरोपीय संघ (ई.यू.) अब बीजिंग के आर्थिक तथा मानवाधिकार शोषण पर आवाज उठाते हुए उसे सांझेदार नहीं बल्कि प्रतिद्वंद्वी पुकारने लगा है। इस सप्ताह हुए शिखर सम्मेलन में बीजिंग की ज्यादतियों पर अंकुश लगाने के लिए यूरोपीय संघ में एक प्रस्ताव पारित किया गया जो नई पहल का एक हिस्सा है। गत सप्ताह ई.यू. ने एक नई योजना शुरू की जिसका उद्देश्य चीन द्वारा अपने प्रतिष्ठानों को उनके यूरोपियन प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी सबसिडियों के इस्तेमाल का मुकाबला करना था।

इसी कारण उन्होंने एक दीर्घ नियोजित निवेश पड़ताल प्रणाली शुरू की ताकि यूरोपियन प्रतिष्ठानों को चीन द्वारा शिकारी अधिग्रहण से बचाया जा सके। हालांकि इन नीतियों के अंतर्गत नाममात्र तौर पर सभी गैर ई.यू. देशों को लक्षित किया गया परन्तु इनका मुख्य निशाना चीन ही है। एक साथ लिए गए इन फैसलों से यूरोपीय संघ यह दिखाना चाहता है कि यह बदलाव और रिश्ते की समीक्षा का समय है। यह कितना ऐतिहासिक कदम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक दशक से यूरोप और चीन आर्थिक रूप से लगातार करीब आ रहे थे। माल और सेवाओं में दोतरफा व्यापार पिछले दशक में लगभग 60 प्रतिशत बढ़ कर आधा ट्रिलियन यूरो वार्षिक से अधिक हो गया था। 

ब्रिटेन जब तक यूरोपीय संघ का हिस्सा रहा, चीनी निवेश के लिए ‘लाल कालीन बिछाने’ को तैयार रहता था और पिछले पांच वर्षों से बीजिंग के साथ खुद को अंतव्र्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा था। इस वर्ष से वह उसे पलटने की चेष्टा में लगा है। 

यूरोप के अनेक हिस्सों में बंदरगाहों, रेलवे, दूरसंचार और पावर ग्रिड में बड़े स्तर पर चीनी निवेश है। ग्रीस, इटली और पुर्तगाल जैसे देशों में बहुत अधिक चीनी निवेश द्वारा अब 27 देशों के ब्लॉक के अंदर चीन का प्रभावशाली गढ़ बन गया है। इटली ने बुनियादी ढांचे के निवेश के चीन के ट्रिलियन-डॉलर ‘बैल्ट एंड रोड’ कार्यक्रम पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर भी किए थे। लेकिन दोनों के बीच आॢथक संबंधों के बहुत गहरे होने पर भी अब यह संदेह और चिंता पैदा हो गई है कि चीन यूरोप के ‘ताज के कुछ गहनों’ (मुख्य बंदरगाह और भारी उद्योग) को नियंत्रित कर रहा है। फ्रांस और जर्मनी के नेता विशेष रूप से चिंतित हैं कि यूरोप की प्रमुख कम्पनियों के चीनी अधिग्रहण राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं। 

यूरोपीय संघ के देशों में इस बात पर भी चर्चा है कि चीन के हुवावेई को उन्नत पांचवीं पीढ़ी के मोबाइल फोन नैटवर्क यानी 5जी के विकास में भाग लेने की अनुमति दी भी जाए या नहीं। अवैध औद्योगिक सहायता के लिए आंतरिक रूप से लागू होने वाले समान सख्त नियमों के साथ विदेशी औद्योगिक सब्सिडी का इलाज करने के लिए यूरोपीय संघ की अनावरण योजना सिर्फ नवीनतम संकेत है कि चीन के सरकारी नेतृत्व वाले आर्थिक मॉडल ने यूरोप के धैर्य को टूटने की सीमा तक पहुंचा दिया है। 


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