‘पाकिस्तान, नेपाल और म्यांमार में’ ‘दम तोड़ रहा लोकतंत्र ’

punjabkesari.in Sunday, Jan 31, 2021 - 04:57 AM (IST)

भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल तथा म्यांमार में इस समय भारी अशांति और उथल-पुथल मची हुई है। इन देशों में लोकतंत्र दम तोड़ रहा है और किसी भी समय वहां कोई बड़ा धमाका हो सकता है। पाकिस्तान में कमरतोड़ महंगाई, गरीबी, कुशासन तथा इमरान खान की सरकार द्वारा चीन के आगे घुटने टेकने पर विपक्षी दलों ने सरकार और सेना के विरुद्ध भारी अभियान छेड़ रखा है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पी.एम.एल. (एन) की नेता मरियम नवाज और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की पार्टी (पी.पी.पी.) के नेता बिलावल भट्टो सहित देश के 11 विरोधी दलों द्वारा इमरान खान के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान लगातार जोर पकड़ता जा रहा है। 

सिंध-ब्लूचिस्तान, पी.ओ.के. तथा गिलगित-बाल्तिस्तान में आजादी की मांग तेज होती जा रही है। सिंध की पुलिस ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा की सेना के विरुद्ध विद्रोह कर रखा है। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार देश की सेना और सिंध की पुलिस के बीच खुली जंग हुई जिसमें सिंध पुलिस के कम से कम 10 पुलिस कर्मी और पाकिस्तानी सेना के एक ब्रिगेडियर सहित 5 सैनिक मारे गए थे। इमरान द्वारा सिंध के दो द्वीप चीन को सौंपने की योजना के विरुद्ध भी सिंध के लोग भड़के हुए हैं। विपक्षी नेताओं के अनुसार चारों ओर से घिरने के बाद इमरान सरकार उनसे वार्ता की भीख मांग रही है परंतु अब विपक्षी दलों ने उनसे बातचीत करने से इंकार कर दिया है और इमरान सरकार को गिराने के लिए विपक्षी सदस्य संसद से त्यागपत्र देने की योजना बना रहे हैं। 

नेपाल में भी स्थिति पाकिस्तान जैसी ही है जहां दिसम्बर 2020 में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली द्वारा मनमाने तौर पर संसद भंग करवा कर नए चुनाव करवाने के निर्णय के विरुद्ध तूफान मचा हुआ है। संसद भंग करने के फैसले के विरुद्ध नेपाल में दर्जन से अधिक लोगों ने वहां की सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां लगाई हैं और 300 से अधिक वकीलों ने इस केस की सुनवाई के लिए अपने नामों का पंजीकरण करवाया है। इस बीच नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के दो-फाड़ होने के बाद पार्टी के एक धड़े ने ओली को पार्टी से बाहर निकाल दिया है और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाला धड़ा अपनी ही सरकार के विरुद्ध रैलियां निकाल कर ‘के.पी. शर्मा ओली’ पर देश की शांति भंग करने का आरोप लगा रहा है। 

एक ओर जहां नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर  लड़ाई शुरू हो गई है तो दूसरी ओर नेपाल को दोबारा राजशाही और हिन्दू देश में बदलने की मांग पर बल देने के लिए भी वहां प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। गत 29 जनवरी को काठमांडू में 25,000 से अधिक लोगों ने ‘के.पी. शर्मा ओली’ के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और उसी दिन देश के अनेक हिस्सों में ओली के विरुद्ध प्रदर्शन हुए। इस बीच जहां ओली द्वारा ‘नेपाली कांग्रेस’ का समर्थन लेकर सत्ता में बने रहने की जुगाड़ करने के संकेत मिल रहे हैं तो दूसरी ओर ‘नेपाली कांग्रेस’ चुनाव होने की स्थिति में बड़ी जीत की आशा लगाए बैठी है। परंतु इसके नेताओं को डर है कि अप्रैल के अंत और मई के शुरू में वर्षा, जन-विरोध और देश में हिंसा की आशंका का बहाना बनाकर ओली चुनावों को टाल सकते हैं। 

जहां नेपाल में होने वाले चुनावों को लेकर आशंका के बादल घिरे हुए हैं तो म्यांमार में एक बार फिर अभी-अभी उदय हुए लोकतंत्र के सूर्य के अस्त होने के संकेत मिलने लगे हैं। जनवरी 1948 में आजाद होने के बाद से अब तक अधिकांश अवधि के दौरान म्यांमार सैन्य तानाशाही की चपेट में रहा है तथा इसकी स्वतंत्रता के लिए वर्षों संघर्ष करने वाली ‘आंग सान सू की’ की पार्टी ‘नैशनल लीग फार डैमोक्रेसी’ ने गत वर्ष 8 नवम्बर के संसदीय चुनावों में भारी विजय प्राप्त की थी। 

अब म्यांमार की सेना ने इन चुनावों के परिणाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है तथा चुनावों में भारी धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए अपनी शिकायतों का निवारण न करने पर ‘कार्रवाई’ की चेतावनी दे दी है। सोमवार 1 फरवरी को शुरू होने वाले संसद के अधिवेशन से पूर्व देश की सिविल सरकार और सेना के बीच बातचीत के दौरान दोनों पक्षों में विद्यमान तनाव दूर नहीं हो पाया है जिससे देश में एक बार फिर सैन्य शासन का खतरा पैदा होता दिखाई दे रहा है। 

इसे देखते हुए अमरीका, आस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा सहित 12 अन्य राष्टों ने संयुक्त राष्ट्र के साथ मिल कर म्यांमार की सेना को चेतावनी दी है कि देश के लोकतांत्रिक स्वरूप धारण करने की प्रक्रिया में वह किसी भी प्रकार की बाधा डालने का प्रयास न करे। कुल मिलाकर आज जहां भारत में तमाम मतभेदों के बीच लोकतंत्र मजबूत हो रहा है वहीं भारत के 3 पड़ोसी देशों में लोकतंत्र लगातार कमजोर हो रहा है और कुछ कहा नहीं जा सकता कि बारूद के ढेर पर बैठे इन देशों में कब क्या हो जाए।—विजय कुमार


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