अब कोरोना योद्धाओं के लिए वेतन भी नहीं?

punjabkesari.in Monday, Jun 15, 2020 - 11:07 AM (IST)

‘न्यूयॉर्क की मदद करें’-2 अप्रैल को न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू कुओमो का सभी डॉक्टरों और नर्सों को यह आह्वान था, जब न्यूयॉर्क में कोरोना के 92,300 मामले दिख रहे थे जो तब तक वहां कोरोना पॉजीटिव केसों के सबसे अधिक आंकड़े थे। ‘आप हमें मदद दें, हम आपकी मदद करेंगे’-यह था गवर्नर का आश्वासन! साथ ही उन्होंने 10 हजार डालर प्रति सप्ताह वेतन (जोकि उनके सामान्य वेतन से 3 गुना अधिक था) का प्रस्ताव नॄसग स्टाफ को दिया। बाद में उन्हें बोनस, मुफ्त रहने के लिए आवास और खाना भी दिया। उनका कहना था कि इतनी बड़ी आपदा केवल बैड्स और वैंटीलेटर बढ़ाने से नहीं सुलझेगी, इसके लिए कुशल और अनुभवी स्टाफ की भी जरूरत होगी। ऐसे में हैल्थ वर्करों को बेहतरीन सुविधाएं भी दिलवाई गईं। अब चलें भारत की ओर जहां कोरोना के केस 10 हजार प्रतिदिन से भी अधिक की गति से बढ़ते जा रहे हैं। मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, चेन्नई में अब यह आपदा एक खतरनाक स्तर तक पहुंच रही है और इसका मुकाबला करने की तैयारी का हाल यह है कि हमारे डॉक्टर और अन्य मैडीकल स्टाफ न केवल थके हुए हैं बल्कि हताश भी हैं।

दिल्ली में कई अस्पतालों में डाक्टरों को तीन-तीन महीनों से वेतन ही नहीं दिया गया। ऐसे में न केवल दिल्ली और मुम्बई के डाक्टरों, चेन्नई की नर्सों ने भी वेतन न मिलने को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला लिया है। उनका कहना है कि न तो हैल्थकेयर वर्करों के लिए कोई क्वारंटाइन फैसिलिटी है, न ही वेतन की उम्मीद और न ही उन्हें उच्चकोटि की पी.पी.ई. किटें उपलब्ध हैं। कई राज्य सरकारों ने यह घोषणा की है कि यदि डॉक्टर या अन्य मैडीकल स्टाफअपनी शिकायत के बारे में  प्रैस को या ऑनलाइन कुछ बताएंगे या लिखेंगे तो उन पर कड़ी कार्रवाई होगी। ऐसे में अपनी मुश्किलों के साथ उन्हें काम करना होगा क्योंकि इस्तीफा देने और हड़ताल पर जाना-दोनों की मनाही है। उनका कहना है कि केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों के रवैये में विसंगति और अनियमितता है और यह भी उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है जैसे कि वक्त-बेवक्त दिल्ली का बॉर्डर अलग-अलग सरकारों द्वारा बंद करना जिस कारण मैडीकल स्टाफ को आने-जाने में मुश्किलें पेश आती हैं।

ऐसे में जस्टिस अशोक भूषण, एस.के. कौल और एम.आर. शाह की बैंच ने कहा, ‘‘यह एक तरह का युद्ध है (कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ) और आप युद्ध के दौरान सैनिकों को दुखी नहीं रख सकते। कोरोना योद्धाओं (डॉक्टर, नर्स, मैडीकल स्टाफ) को सुरक्षित महसूस कराने के लिए सरकार अतिरिक्त मील चले।’’ इन तथ्यों को ङ्क्षचता के साथ देखते हुए पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘इन मुद्दों पर हमारा ध्यान नहीं जाना चाहिए, इसे आप (सरकार) द्वारा निपटाया जाना चाहिए।’’ तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकत्र्ताओं द्वारा व्यक्त ङ्क्षचताएं तदर्थ प्रतीत होती हैं लेकिन उन्हें समस्याओं को उजागर करने वाले एक प्रतिनिधित्व को फ्रेम करने के बाद सरकार इसका समाधान करेगी। अर्थात सुनवाई की अगली तारीख बुधवार तक डॉक्टरों और नर्सों को कोई राहत नहीं मिलेगी। वायरस के सम्भावित जोखिम के संदर्भ में सरकार ने कम देखभाल और उच्च जोखिम वाले स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों को वर्गीकृत भी किया है। केन्द्र के हलफनामे के जवाब में याचिकाकत्र्ताओं ने जवाब दिया कि कोविड केन्द्रों और अस्पतालों में सेवा कर रहे सभी स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता इस बीमारी की संक्रामक प्रकृति के कारण उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं। उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह मामले में पक्षकारों के रूप में राज्यों को जोड़े।

कानूनी दांव-पेच करने का समय इन कोरोना वॉरियर्स के पास नहीं परन्तु क्या इसका आभास राज्य और केन्द्र सरकारों को नहीं है? भारत शायद इकलौता देश है जिसकी जनता और सरकार दोनों ने इस आपदा के समय अपने मैडीकल स्टाफ की सराहना तो दूर, साथ तक नहीं दिया। ऐसा तो कभी सुनने में भी नहीं आया कि राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा या किसी म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के किसी भी सदस्य को कभी वेतन न मिला हो। अगर्चे किसी सरकार को टैक्स कम आया हो या बजट कम हो तो केंद्र सरकार को मदद के लिए आग्रह किया जा सकता है।  सरकारों को समझना होगा कि केवल डॉक्टरों को अस्पताल भेजना ही इस समस्या का हल नहीं, उनका ध्यान रखना भी जरूरी है। आखिर वे ही तो हमारे और आपदा के बीच खड़े हैं।


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