विस्तारवादी नीतियों के अंतर्गत चीन कर रहा नेपाल की धरती पर कब्जा

punjabkesari.in Saturday, Jun 27, 2020 - 11:17 AM (IST)

एक ओर जहां चीन के शासक अपने भारत विरोधी एजैंडे के अंतर्गत भारत के निकटतम पड़ोसियों पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका को भारत के विरुद्ध उकसा रहे हैं तो दूसरी ओर चीन इन देशों में भी अपनी विस्तारवादी चालें चल रहा है। इसकी ताजा मिसाल नेपाल है जहां चीन ने 2 वर्षों के दौरान योजनाबद्ध तरीके से वहां के ‘गोरखा’ जिले के गांव ‘रूई’ पर कब्जा कर लिया है और इसे वैध दर्शाने के लिए वहां लगे सभी सीमा स्तम्भ उखाड़ दिए हैं। यह गांव अब चीन के पूर्ण नियंत्रण में है तथा इस गांव के 72 घरों के निवासी अपनी मूल पहचान कायम रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यही नहीं चीन ने तिब्बत में सड़क बनाने के बहाने नेपाल की भूमि पर भी कब्जा कर रखा है। पूरी तरह हड़पने की नीयत से चीन ने नेपाल में 10 स्थानों पर धीरे-धीरे कब्जा जमा लिया है तथा नेपाल की 33 हैक्टेयर भूमि पर नदियों की धारा बदल कर प्राकृतिक सीमा बना दी है। 

चीन द्वारा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टी.ए.आर.) में सड़क नैटवर्क के निर्माण के चलते नदियों का रास्ता बदल देने से वे नेपाल की ओर बहने लगी हैं जिससे वहां बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है और यदि यह सिलसिला जारी रहा तो नेपाल का बड़ा हिस्सा ‘टी.ए.आर.’ में चला जाएगा। चीन के उक्त पग एक-दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप न करने के कूटनीतिक स्टैंड के सर्वथा विपरीत हैं। इस मामले में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और अन्य की चुप्पी से स्पष्टï है कि किस प्रकार नेपाल के वर्तमान कम्युनिस्ट शासकों ने चीन के आगे घुटने टेक दिए हैं और उसी के उकसावे पर भारत विरोधी गतिविधियों व बयानबाजी में संलिप्त हैं। 

स्पष्टïत: चीन के शासक उसी प्रकार अपनी विस्तारवादी योजनाओं के अंतर्गत नेपाल को धीरे-धीरे अपना उपनिवेश बनाने और वहां मानवाधिकारों का हनन करने की ओर अग्रसर हैं जिस प्रकार वे हांगकांग तथा अपने कब्जे वाले अन्य देशों तथा अपने शिनजियांग प्रांत में लाखों मुसलमानों को जेलों में बंद करके कर रहे हैं। इस पृष्ठïभूमि में राजनीतिक प्रेक्षकों को संदेह है कि कहीं चीन की सहायता के प्रलोभन में फंस कर गरीब और साधनहीन नेपाल भी चीन का एक उपनिवेश बन कर न रह जाए।     —विजय कुमार  


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