‘जजों की नियुक्ति के लिए’ ‘केंद्र सरकार एक निश्चित अवधि तय करे’

punjabkesari.in Friday, Jan 29, 2021 - 03:49 AM (IST)

आज जबकि भारतीय लोकतंत्र के मुख्य स्तम्भों में से कार्यपालिका और विधायिका जनता से जुड़े मुद्दों पर लगभग निष्क्रिय हो चुकी हैं, मात्र न्यायपालिका और मीडिया ही विभिन्न मुद्दों पर जनता की आवाज सरकार तक पहुंचाने और उसे झिझोडऩे का काम कर रहे हैं परन्तु न्यायालयों में लगातार चली आ रही जजों की कमी के चलते आम आदमी को न्याय मिलने में विलम्ब हो रहा है। इसी कारण 13 अप्रैल, 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था, ‘‘देर से मिलने वाला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है।’’ 

देश में एक लाख से अधिक मामले 30 वर्ष से अधिक समय से लटक रहे हैं। देश की 25 हाईकोर्टों में जजों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 1079 है जिनमें से 411 पद इस समय रिक्त हैं। ‘नैशनल ज्यूडीशियल डाटा ग्रिड’ के आंकड़ों के अनुसार देश भर में 3.71 करोड़ मामले इस समय लंबित हैंं। न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी के कारण देर से सुनाए गए मामलों के तीन उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

* 20 फरवरी, 2020 को सुप्रीमकोर्ट ने 36 साल पहले अपने दोस्त की हत्या के आरोप में सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी किया। 
* 6 जनवरी, 2021 को 4 लोगों की हत्या के अक्तूबर 2008 के मामले में जुलाई, 2015 में ट्रायल कोर्ट द्वारा मौत की सजा प्राप्त व्यक्ति को सुप्रीमकोर्ट ने बरी किया।
* 21 जनवरी को हत्या के आरोप में 5 वर्ष से जेल में बंद दम्पति को अदालत ने बरी कर दिया और जेल से बाहर आने पर उन्हें पता चला कि उनके दोनों बच्चे अलग-अलग आश्रयगृहों में भटक रहे हैं। 

ये तो मात्र 3 उदाहरण हैं वास्तव में नीचे से लेकर शीर्ष अदालत तक में जजों की समय पर नियुक्तियां न होने के कारण न्याय के मंदिर से न्याय की प्रतीक्षा करने वालों की सूची लम्बी होती जा रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा करने की गुहार लगाने वाली एक अर्जी में ऐसे अनेक उदाहरण दिए गए हैं।

एक उदाहरण के अनुसार जौनपुर के एक ‘गिफ्ट डीड’ विवाद में याचिकाकत्र्ता को 1985 से अब तक 400 तारीखें मिल चुकी हैं व मामला अभी पैंडिंग है। लंबित मामलों के लिहाज से उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब देश का दूसरा सर्वाधिक मामलों वाला राज्य है क्योंकि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में लगभग 33 जजों की नियुक्तियां अभी भी होनी हैं। यहां एक वर्ष में लंबित मामलों की संख्या लगभग एक लाख बढ़ गई है। यहां इस समय 8 लाख 31 हजार मामले लंबित हैं जिनमें 3,04,471 मामले एक वर्ष से अधिक पुराने हैं। 

देश में हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति संविधान की धारा 217 के अंतर्गत  ‘मैमोरैंडम आफ प्रोसीजर’ के अंतर्गत होती है जिनमें नामों की सिफारिश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा योग्यता के आधार पर की जाती है। पहले यह सिफारिश राज्यपाल के माध्यम से कानून मंत्रालय को भेजी जाती है, जो इसे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजता है। वह अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों के साथ चर्चा और सभी औपचारिकताएं और पड़ताल पूरी करने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। इसके बाद कहीं जाकर जजों की नियुक्ति होती है और यह एक लम्बी प्रक्रिया है। न्यायाधीशों की नियुक्तियों संबंधी नया ‘मैमोरैंडम आफ प्रोसीजर’ चार वर्षों से लटका होने के कारण सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि सुप्रीमकोर्ट के साथ-साथ देश की हाईकोर्टों में जजों की नियुक्ति के संबंध में ‘कोलेजियम’ से सिफारिशें प्राप्त होने के बाद उन पर फैसला लेने के लिए निश्चत अवधि निर्धारित की जाए। 

न्यायालय ने कहा है कि 31 दिसम्बर, 2020 को सरकार के पास जजों की नियुक्तियों संबंधी 189 प्रस्ताव लंबित पड़े थे जिनमें से अनेक प्रस्ताव तो 6 महीने से भी अधिक पुराने हैं। इसी ‘धीमी गति’ के कारण मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने कहा है कि नियुक्तियां एक समयबद्ध ढंग से होनी चाहिएं। सुप्रीमकोर्ट के उक्त निर्देश को देखते हुए केंद्र सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देकर लम्बी नियुक्ति प्रक्रिया में कमी लाकर जजों की नियुक्ति का तुरंत फैसला करना चाहिए ताकि अदालतों में न्याय की आशा में जाने वालों को ‘न्याय’ मिले ‘तारीख’ नहीं।—विजय कुमार   


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