भाजपा नेतृत्व द्वारा शिअद और जद (यू) को मनाने से, गठबंधन कमजोर होने से बचा

punjabkesari.in Friday, Jan 31, 2020 - 03:51 AM (IST)

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के गठबंधन सहयोगी तेजी से बढ़े और उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया था। श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया परंतु उनके राजनीति से हटने के बाद भाजपा के कई सहयोगी दल विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए। कुछ ही समय पूर्व भाजपा का सर्वाधिक 35 वर्ष पुराना गठबंधन सहयोगी दल ‘शिवसेना’ भाजपा नेतृत्व से मतभेदों के चलते गठबंधन से अलग हो गया और उसके बाद भाजपा के दूसरे सर्वाधिक पुराने गठबंधन सहयोगियों शिरोमणि अकाली दल और जद (यू) के साथ भी इसके संबंधों में एन.आर.सी. सी.ए.ए. और एन.पी.आर. को लेकर तनाव पैदा हो गया था। 

शिअद ने एन.आर.सी. से पूर्ण असहमति जताते हुए 24-25 दिसम्बर, 2019 को कड़े शब्दों में एन.आर.सी. को समाप्त करने की मांग दोहराई और फिर दिल्ली विधानसभा के चुनावों में सीटों के बंटवारे पर गतिरोध के चलते 20 जनवरी, 2020 को दोनों के गठबंधन में मतभेद पैदा हो गए जिसके बाद शिअद ने दिल्ली में चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा कर दी। इस स्थिति का सामना करने के लिए हालांकि भाजपा ने दिल्ली में जद (यू) के साथ पहली बार चुनाव पूर्व गठबंधन करते हुए उसे 2 सीटें दे दीं परंतु संसद में सी.ए.ए. के समर्थन के बावजूद जद (यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार इसके प्रावधानों पर सवाल उठाते रहे। बाद में नीतीश ने एन.पी.आर. (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) पर भी आपत्ति कर दी और कहा कि, ‘‘इसके लिए पहले तय मापदंड को ही आगे बढ़ाना चाहिए तथा मुझे एन.पी.आर. का नया फॉर्मेट मंजूर नहीं है।’’ 

एक ओर शिअद और जद (यू) के तेवरों से भाजपा के लिए कुछ परेशानी की स्थिति पैदा हुई तो दूसरी ओर जद (यू) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर द्वारा सी.ए.ए. और एन.आर.सी. पर केंद्र सरकार का विरोध करने के अलावा जद (यू) के प्रवक्ता पवन वर्मा द्वारा सी.ए.ए. और एन.आर.सी. पर नीतीश के रुख में बदलाव पर सवाल खड़े करने से जद (यू) के भाजपा से संबंधों पर ही नहीं बल्कि स्वयं अपनी पार्टी में संकट के संकेत दिखाई देने लगे। 

बहरहाल, जहां भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार से व्यक्तिगत स्तर पर बात करके उन्हें दिल्ली चुनावों में साझा रैलियां करने के लिए राजी कर लिया वहीं नीतीश ने गठबंधन और पार्टी के लिए ‘परेशानी’ पैदा करने वाले प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को पार्टी से निकालने की घोषणा कर दी। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर को जद (यू) में शामिल करने का फैसला उन्होंने अमित शाह के कहने पर ही किया था। इसी प्रकार जे.पी. नड्डा ने सुखबीर बादल से संपर्क कर उन्हें दिल्ली चुनावों में भाजपा का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया और सुखबीर बादल ने इस आशय की घोषणा करके भाजपा की चिंता कम कर दी। जे.पी. नड्डा के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सुखबीर बादल ने भाजपा के साथ अपने संबंधों को राजनीतिक ही नहीं बल्कि भावनात्मक भी बताया वहीं उन्होंने यह भी कहा कि अब सी.ए.ए. को लेकर दोनों दलों में कोई मतभेद नहीं है। 

दूसरी ओर जे.पी. नड्डा ने भाजपा-शिअद का गठबंधन सबसे पुराना और मजबूत बताते हुए यह कह कर शिअद की तारीफ की कि ‘‘देश की जरूरतों के समय शिअद हमेशा आगे आता रहा है।’’ अमित शाह और जे.पी. नड्डा द्वारा अपने 2 महत्वपूर्ण नाराज गठबंधन सहयोगियों को मना लेने का निश्चित ही भाजपा को लाभ पहुंचेगा। जहां भाजपा नेताओं द्वारा नीतीश कुमार के साथ साझा रैलियां करने से अप्रवासी बिहारियों और पूर्वांचलियों में महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश जाएगा वहीं शिअद के समर्थन से भाजपा को सिख बहुल क्षेत्रों वाली लगभग आधा दर्जन सीटों पर लाभ मिलने की संभावना है। निश्चय ही भाजपा के दो महत्वपूर्ण सहयोगियों की नाराजगी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए चिंता की स्थिति पैदा करने वाली थी जिसे दूर करके पूर्व अध्यक्ष अमित शाह और नए भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने सही काम किया है और इससे भाजपा नीत गठबंधन कमजोर होने से बचा है। हम तो पहले ही लिखते रहे हैं कि मित्र दलों की नाराजगी निश्चय ही भाजपा के हित में नहीं। अत: भाजपा नेतृत्व अपने गठबंधन सहयोगियों को अपने साथ जितना जोड़ कर रखेगा गठबंधन उतना ही मजबूत होगा और वे देश की बेहतर सेवा कर सकेंगे।—विजय कुमार 


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