कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा ‘लिखित पत्र ने’ पार्टी के अंदर ‘की हलचल पैदा’

punjabkesari.in Tuesday, Aug 25, 2020 - 04:45 AM (IST)

देश की ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कहलाने वाली कांग्रेस तथा देश की राजनीति पर लम्बे समय तक नेहरू-गांधी परिवार का दबदबा रहा। 1993 में 18 राज्यों पर कांग्रेस का शासन था परंतु बाद में जैसे-जैसे भाजपा का उद्भव होता गया, कांग्रेस का जनाधार घटता चला गया। इस समय इसकी सत्ता देश के मात्र 6 राज्यों तक ही सिमट गई है। 

सोनिया गांधी 1998 से 2017 तक 19 वर्ष कांग्रेस अध्यक्ष रहीं और फिर राहुल गांधी 16 दिसम्बर, 2017 को अध्यक्ष बनाए गए परन्तु लोकसभा चुनावों में भारी हार के बाद उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया तो अगस्त, 2019 में सोनिया पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनीं। त्यागपत्र देने के समय राहुल ने कहा था कि ‘‘कांग्रेस अध्यक्ष कोई गैर गांधी-नेहरू परिवार से बने।’’

गत सप्ताह रिलीज हुई पुस्तक ‘इंडिया टूमारो : कन्वरसेशन विद द नैक्स्ट पालीटिकल लीडर्स’ में प्रकाशित प्रियंका गांधी का एक इंटरव्यू काफी चर्चित हुआ जिसमें उन्होंने भी गांधी-नेहरू परिवार के बाहर से किसी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की वकालत करते हुए कहा था कि ‘‘पार्टी में ढेरों ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने की सामथ्र्य रखते हैं।’’ प्रियंका का उक्त बयान सामने आने के बाद शुरू हुए ‘विवाद’ को शांत करने के लिए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुर्जेवाला ने कहा कि यह इंटरव्यू एक वर्ष पुराना है जो उन्होंने राहुल के बयान के समर्थन में दिया था। 

अभी यह चर्चा थमी भी नहीं थी कि 24 अगस्त को प्रस्तावित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले अचानक 23 अगस्त को गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, एम. वीरप्पा मोइली, शशि थरूर, मनीष तिवारी आदि सहित 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को भेजे गए पत्र के रहस्योद्घाटन से पार्टी में बवंडर मच गया। इस पत्र में उक्त नेताओं ने पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर देते हुए पूर्णकालिक और जमीनी स्तर पर सक्रिय कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त करने एवं संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव की मांग की है।

सोनिया इस पत्र से इतनी आहत हुईं कि उन्होंने उसी दिन पद छोडऩे की इच्छा व्यक्त कर दी। हालांकि पार्टी नेतृत्व के एक वर्ग ने इसे नकारते हुए सोनिया और राहुल के नेतृत्व में भरोसा जताया और इस बात पर जोर दिया कि गांधी-नेहरू पारिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है तथा राहुल की अध्यक्ष के रूप में वापसी के लिए जोरदार वकालत की जाने लगी। 24 अगस्त को कार्यसमिति की बैठक में ‘पत्र’ का मुद्दा ही छाया रहा जिसमें सोनिया ने गुलाम नबी आजाद तथा पत्र लिखने वाले कुछ नेताओं के उठाए हुए मुद्दों का हवाला देते हुए त्यागपत्र की पेशकश दोहराई परंतु पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत अनेक वरिष्ठ नेताओं ने उनसे ऐसा न करने का अनुरोध किया। 

बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि जिस समय पत्र भेजा गया उस समय सोनिया गांधी बीमार थीं और जब कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान के राजनीतिक संकट का सामना कर रही थी उसी समय चिट्ठी क्यों भेजी गई? बैठक में कथित रूप से राहुल ने यह संदेह भी व्यक्त किया कि ‘‘भाजपा की सांठगांठ से पत्र उस समय लिखा गया जब पार्टी संघर्ष की स्थिति में थी।’’ मीडिया में यह बयान आने पर कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद भड़क उठे और कपिल सिब्बल ने नाराजगी जताते हुए ट्वीट किया कि ‘‘राहुल गांधी कहते हैं कि हमारी भाजपा से सांठगांठ है। (हमने) राजस्थान हाईकोर्ट में पार्टी को सफलता दिलाई, मणिपुर में भाजपा के विरुद्ध पूरी ताकत से पार्टी का बचाव किया। पिछले 30 वर्षों में भाजपा के पक्ष में एक भी बयान नहीं दिया फिर भी हम पर भाजपा से सांठगांठ का आरोप लग रहा है।’’ 

पर बाद में कपिल सिब्बल ने यह कहते हुए ट्वीट वापस ले लिया कि राहुल ने खुद उन्हें बताया कि उनके हवाले से जो बताया गया है वैसा उन्होंने कभी नहीं कहा। मीडिया खबरों के अनुसार गुलाम नबी आजाद ने भी कहा था कि अगर यह साबित हो जाए कि वह किसी भी तरह भाजपा से मिले हुए हैं तो वह सभी पदों से त्यागपत्र दे देंगे परन्तु बाद में उन्होंने भी  ट्वीट कर कहा कि ‘‘मीडिया का एक हिस्सा यह गलत खबर दे रहा है कि मैंने राहुल गांधी से ऐसा कहा है।’’ सोनिया गांधी ने अब कार्यसमिति को नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा है, पर अभी वह अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी। वरिष्ठï नेता पी.एल. पुनिया के अनुसार, ‘‘नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए अगली बैठक जल्द बुलाई जाएगी।’’ 

यदि कुछ समय गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी का नेतृत्व सौंप भी दिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं। इससे बाहरी अध्यक्ष की क्षमताओं का भी पता चल जाएगा। हालांकि पार्टी में इस पर सहमति होना कठिन दिखाई देता है। मतभेद लोकतंत्र का हिस्सा हैं और कांग्रेस पार्टी के लिए ‘विद्रोह’ कोई नई बात नहीं है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर ‘फारवर्ड ब्लाक’ कायम किया, इसी प्रकार जय प्रकाश नारायण, विनोबा भावे, आचार्य नरेंद्र देव और जे.बी. कृपलानी ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई और मई, 1999 में  शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक अनवर ने कांग्रेस को अलविदा कह कर ‘राकांपा’ का गठन किया था। 

वर्तमान घटनाक्रम का परिणाम चाहे जो भी निकले, अंतत: इस घटनाक्रम में पार्टी की आंतरिक हलचल और पार्टी के एक वर्ग में कुलबुला रहा असंतोष उजागर हुआ है जिसे संभाला जाना चाहिए। पार्टी नेतृत्व इस समस्या का जितनी जल्दी समाधान खोजेगा देश और पार्टी के हित में उतना ही अच्छा होगा। हमारे विचार में जो कुछ भी हुआ है उसे गलत नहीं समझना चाहिए क्योंकि इससे कांग्रेस के अंदर हलचल पैदा हुई है। आज देश को मजबूत विपक्ष की जरूरत है जो सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है। इन हालात में जरूरी है कि कांग्रेस के नेतृत्व पर परस्पर सहमति से फैसला करके इसे मजबूत किया जाए ताकि यह सशक्त विपक्ष के रूप में देश को दरपेश समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना करने में योगदान दे सके।—विजय कुमार 


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