टीवी, बड़े पर्दे के दर्शक या अब ओटीटी का जमाना !!

punjabkesari.in Sunday, Aug 02, 2020 - 11:54 AM (IST)

कोरोना की वजह से हॉलीवुड की बड़ी फिल्में 'टेनेट' और 'वंडर वुमन 1984' की रिलीज़ होने की तारीख़ बढ़ हो गयी हैं तो बॉलीवुड में 'राधे', 'लाल सिंह चड्डा' और '83' को बड़े पर्दे पर आने के लिए इंतज़ार करना पड़ रहा है। वहीं अमिताभ बच्चन जैसे बड़े अभिनेता की फ़िल्म 'गुलाबो सिताबो' के बाद कुछ अन्य फिल्में भी ओटीटी पर दर्शकों के सामने आने के लिए तैयार हैं जिनमें विद्या बालन जैसी बड़ी अभिनेत्री की फ़िल्म 'शकुंतला देवी' भी है।

दिवंगत अभिनेता सुुुशांत सिंंह राजपूत की अंतिम फ़िल्म 'दिल बेचारा' के रिलीज़ होने से पहले ही उसके ट्रेलर को यूट्यूब पर 78 मिलियन लोगों ने देख लिया है। 2019 क्रिकेट विश्व कप में भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच खेले गए सेमीफाइनल मैच को 25.3 मिलियन लोगों ने हॉटस्टार पर देखा था। स्पेनिश फुटबॉल लीग 'ला लीगा' का भारत में प्रसारण सिर्फ ओटीटी पर किया जा रहा है। सेकर्ड गेम्स, मिर्ज़ापुर, भोकाल और पाताल लोक जैसी वेब श्रृंखलाएं पहले ही ओटीटी पर चर्चा बटोर चुकी हैं।

1930-40 के दशक के दौरान सिनेमा का स्वर्ण युग था। इसके बाद टेलीविजन युग शुरू हुआ, सिनेमा को टेलीविजन पर देखा जाने लगा। साल 1990 के बाद इंटरनेट आम जन के बीच लोकप्रिय होने लगा। पहले आवश्यक कार्यों हेतु भेजे जाने ईमेल के लिए ही इंटरनेट का प्रयोग किया जाता था। उसके बाद फिल्मी गानों, ज्ञानवर्द्धक वेबसाइटों और सोशल मीडिया के प्रयोग के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया जाने लगा।

सस्ते डाटा, सुलभ हैंडसेट, ज्यादा सामग्री, रचनाकारों के लिए बड़ा बाज़ार, थिएटरों के महंगे टिकट और टीवी पर एक जैसे सास-बहू के कार्यक्रमों ने टीवी और सिनेमा के दर्शकों का रुख ओटीटी की ओर किया। 'ओटीटी' शब्द पारम्परिक केबल या सेटेलाइट टीवी सेवाओं के उपयोग के बिना इंटरनेट के माध्यम से फिल्मों, वेब श्रृंखला या किसी अन्य वीडियो सामग्री के वितरण को संदर्भित करता है। 

शुरुआत में यूट्यूब इंटरनेट पर वीडियो सामग्री का अग्रणी प्रदाता था। विकिपीडिया के अनुसार भारत में 40 से ज्यादा ओटीटी प्रदाता अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिन्हें आप स्मार्ट टीवी, लैपटॉप, टेबलेट व अपने मोबाइल पर देख सकते हैं। स्टेटितस्ता के अनुसार मार्च 2018 तक हॉटस्टार का भारत के स्ट्रीमिंग बाज़ार में 69.4 प्रतिशत कब्ज़ा था।

इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट 'डिजिटल इंडिया' के अनुसार भारत में नवंबर 2019 के अंत तक 504 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता थे और 'स्टेटितस्ता' के अनुसार वर्ष 2015-19 तक भारत में प्रति माह प्रति उपयोगकर्ता औसत डाटा की खपत 11,183 मेगाबाइट थी जो कोरोना काल में अवश्य ही दोगुनी हुई होगी।

सफर करने के दौरान हो या काम के बीच में आप कहीं भी ओटीटी की मदद से अपनी पसंदीदा फ़िल्म, कार्यक्रम या खेल देख सकते हैं। ओटीटी में दर्शकों को टेलीविजन के कार्यक्रमों की अपेक्षा कम विज्ञापन मिलते हैं। कॉर्डकटिंग डॉट कॉम का कहना है कि नेटफ्लिक्स ने 2017 में औसतन अपने प्रत्येक ग्राहक को 160 घण्टे विज्ञापनों से बचाया।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब के ओटीटी पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार 63 प्रतिशत दर्शक इसको मुफ़्त में ही इस्तेमाल करना चाहते हैं। इंटरनेट की गति और महंगे होते डाटा पैक ओटीटी की सफलता के सामने बड़ी चुनौती हैं। सिनेमा की पायरेसी की तरह ही वेब श्रृंखलाओं के सामने भी पायरेसी एक समस्या है। मोबाइल ही ओटीटी देखने के सबसे सुगम्य साधन हैं पर मोबाइल जगत में सिर्फ एंड्रॉइड और एप्पल प्लेटफॉर्म का ही दबदबा है , अन्य प्लेटफॉर्म पर लोकप्रियता हासिल कर अपना विस्तार करना भी इन ओटीटी सेवा प्रदाताओं के सामने एक मुश्किल कार्य है। ओटीटी कार्यक्रमों के सामने अभी बहुत सी कानूनी समस्याएं भी हैं क्योंकि शैशवावस्था में होने के कारण इन को लेकर कानून अभी स्पष्ट नही हैं।

ओटीटी की बढ़ती हुई संख्या के बीच खुद को लोकप्रिय बनाए रखने के लिए इसके कंटेंट में अश्लीलता, हिंसा और अपशब्दों का जमकर प्रयोग किया जा रहा है। अश्लीलता और हिंसा को ओटीटी पर क्रांतिकारी बदलाव समझने की भूल की जा रही है जबकि यह भूल टेलीविजन द्वारा वर्षों पहले की जा चुकी है।

पाताल लोक, लस्ट स्टोरीज़ जैसी वेब श्रृंखलाओं पर जमकर विवाद भी हुआ। कुछ लोग रचनात्मक स्वतंत्रता से छेड़छाड़ के पक्ष में नही हैं क्योंकि यही मुख्य वजह है कि इस प्लेटफॉर्म को ज्यादा पसंद किया जा रहा है। दर्शक इसकी सामग्री को खुद से जुड़ा हुआ पाते हैं। मनोरंजन जगत में नया खिलाड़ी होने के कारण अभी ओटीटी को लेकर कोई स्पष्ट कानून नही बने हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर ओटीटी सेवाओं पर सेंसर लगाने की मांग की है| यह एक प्रश्न है कि निजी तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म भी सार्वजनिक प्रदर्शनी के दायरे में आ सकते हैं या नही।

हॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक स्टीवन स्पिलबर्ग नेटफ्लिक्स सहित अन्य ओटीटी प्लेटफॉर्म को ऑस्कर में आने से रोकने के लिए ऑस्कर के नियमों में बदलाव की पैरवी करते आए हैं। उनके अनुसार सिनेमाघरों में फिल्मों को रिलीज़ होना ही फिल्मों का वास्तविक अनुभव है।

नेटफ्लिक्स ने इसके जवाब में कहा था कि वह सिनेमा से प्यार करता है। यह कला साझा करने के लिए अधिक अवसर प्रदान करता है। यह ऐसे लोगों के लिए है जो उन कस्बों में रहते हैं जहाँ थिएटर नही है। इनकी वजह से हर किसी को हर जगह एक साथ फ़िल्म रिलीज़ का आनंद मिलता है।  नेटफ्लिक्स और कान्स फ़िल्म महोत्सव के मध्य का विवाद भी फ़िल्म उद्योग के भविष्य के लिए निर्णायक था। नेटफ्लिक्स ने दो ऑस्कर अवॉर्ड जीत कर इन सब विवादों को दरकिनार भी किया।

कोरोना की वजह से सिनेमाघर बन्द हैं जिसकी वजह से 93 वें ऑस्कर अवार्ड में स्ट्रीम की गई फिल्में ही समारोह में शामिल होने योग्य होंगी और यह भविष्य के सिनेमा और टेलीविजन के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव है।

एक्सेंचर के अनुसार पूरे विश्व भर में टीवी दर्शकों की कमी हो रही है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 200 से अधिक ओटीटी सेवाएं हैं।आंकड़ों के अनुसार  4.1 प्रतिशत टीवी दर्शक कम हुए हैं।  लॉकडाउन की वजह से टेलीविजन में पुराने कार्यक्रम ही चल रहे हैं और बिना दर्शकों के लाइव खेल अभी शुरू ही हुए हैं। नए की तलाश में लोग टीवी से विमुख हो ओटीटी की तरफ रुख कर रहे हैं।  भविष्य में भी कोरोना से बचाव के उपाय शारीरिक दूरी को अपनाते हुए कितने कार्यक्रम और फिल्में बनेंगी यह कहना मुश्किल है और मुँह को ढके अभिनेताओं का दर्शकों पर कितना असर पड़ेगा यह कहना मुश्किल है।
 
थिएटर अगर सरकार के आदेश के बाद खुल भी जाएं तो शायद दर्शक वहां जाने का जोखिम उठाने के लिए जल्दी तैयार होंगे। बड़े पर्दे के कर्ताधर्त्ताओं को यह समझना होगा कि समय अब ओटीटी के पक्ष में है और उन्हें इस चुनौती से निपटने के लिए कमर कसनी होगी। 
थिएटर के टिकटों के बढ़ते दामों को देखकर लोग ओटीटी पर ही फिल्में देखना बेहतर समझते हैं और अगर कोई उन थिएटर में चले भी जाए तो वहाँ के स्नैक्स का दाम थिएटर के टिकट से ज्यादा होता है। 

टेलीविजन कार्यक्रमों को भी ओटीटी से टक्कर लेने के लिए अब अपनी घिसीपिटी कहानियों से बाहर आना होगा। केबल और सेटेलाइट टीवी को दर्शकों की जेब पर बढ़ते बोझ को कम करना होगा। जहां प्रमुख सेटेलाइट और केबल टीवी ऑपरेटर का मासिक किराया 150 रुपए से कम नही है वहीं ओटीटी का वार्षिक सब्सक्रिप्शन मात्र 999 रुपए तक में उपलब्ध है।

भारतीय सिनेमा और क्रिकेट को अपना धर्म समझते हैं तो हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि कोरोना की वजह से फ़िल्म जगत की जो बुरी स्थिति हुई है वह कोरोना की समाप्ति के बाद जल्द ठीक होगी। छात्रों के सामने कोरोना की वजह से गम्भीर संकट पैदा हो गया है। शिक्षण संस्थान सामाजिक दूरी रखने में असमर्थ होंगे जिस वजह से वह अनिश्चितकालीन समय के लिए बन्द हैं। ऐसे में छात्रों की शिक्षा के लिए ऑनलाइन पढ़ाई में अन्य साधनों के साथ ओटीटी में भी नए प्रयोग हो रहे हैं। ओटीटी के पुराने खिलाड़ी यूट्यूब में तो शिक्षण सामग्री की भरमार है ही तो वहीं 'वूट किड्स' जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में उतरे हैं।

जो भी है मनोरंजन, शिक्षण और जागरूकता के क्षेत्र की इस नई जंग का फ़ायदा दर्शकों को मिल रहा है जिनके पास अब पहले से अधिक गुड़वत्ता वाले और सस्ते विकल्प उपलब्ध हैं।

(हिमांशु जोशी)


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Riya bawa

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