दक्षिण चीन सागर: सुरक्षा, शक्ति संतुलन या नव शीत युद्ध ?

punjabkesari.in Sunday, Jul 19, 2020 - 03:41 PM (IST)

भूमिका
हाल ही के कुछ पिछले वर्षो में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में तनाव की स्थिति उभरती हुई नजर आयी है, जिसके  कारण यहां विभिन्न देशो के युद्धपोतों की आवाजाही के कारण वातावरण गरमाया हुआ है। इस सागर में इसके विभिन्न क्षेत्रीय देशो के अनेक दावे है जिसमे चीन, फिलीपींस, वियतनाम, लाओस, मलेशिया, ताइवान आदि देश इसके परसेल, स्प्राटले, प्रतास, स्कारबरो शॉल आदि द्वीप समूहों पर अपना दावा करते है। इनमे चीन सबसे बड़ा देश होने का फायदा उठाकर यहाँ बाकि के दावेदारों के दावों पर प्रतिबंध लगाता है, क्योकि वह यहां नाइन डैश लाइन के माध्यम से पुरे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर अपना दावा करता है। 

चीन के इन्ही प्रभुत्वकारी दावों को सीमित करने के लिए विभिन्न गैर-दावेदार देशो के द्वारा इस विवादित अंतराष्ट्रीय क्षेत्र में सकारात्मक हस्तक्षेप किया जा रहा है। अमेरिका और भारत द्वारा इस क्षेत्र में हस्तक्षेप उसकी यहाँ के छोटे छोटे देशो को चीनी प्रभुत्व से सुरक्षा प्रदान करने की मंशा को दर्शाता है, वही दूसरी तरफ अमेरिकी विचारधारा की एक और मंशा इस क्षेत्र में साम्यवादी प्रभाव को भी कम करना है। वही दूसरी तरफ भारत भी अपनी एक्ट-ईस्ट नीति के बल पर विभिन्न दक्षिणपूर्व एशिया के देशो के साथ सम्बन्धो को मजबूत कर रहा है।

दक्षिण चीन सागर विवाद और अमेरिका
इस सागर में अमेरिका, चीन द्वारा किये गए दावों से पहले से ही आवाजाही कर रहा है, जिसके बल पर उसने विभिन्न दक्षिणपूर्व एशिया के देशो के साथ सम्बन्ध बनाये हुए है ताकि अमेरिका की इस सागर में आवाजाही कायम रहे। परन्तु चीन अपने ऐतिहासिक दावों के बल पर अमेरिका को यहाँ हस्तक्षेप करने से रोकता है और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून की भी अवमानना करता है। इस क्षेत्र में अमेरिका अपना विचारधारात्मक कदम कायम कर रहा है परन्तु दूसरी तरफ वह चीन के साम्यवादी प्रभाव को भी काम करना चाहता है। क्योकि शीतयुद्ध के समय से ही अमेरिकी पूंजीवादी विचारधारा और रुसी साम्यवादी विचारधारा में द्व्न्द जारी रहा है अभी इस द्व्न्द का रुख रूस से चीन की तरफ हो गया है तथा वही अब दोनों देशो में हथियारों की होड़ के साथ साथ इस क्षेत्र में स्वःअर्थव्यवस्था में अत्यधिक प्रगति की होड़ का भी द्व्न्द जारी है।

अमेरिका इस क्षेत्र में विभिन्न छोटे छोटे देशो को चीन की प्रभुत्वकारी प्रक्रति से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहा है जिसके लिए उसने फिलीपींस के साथ रणनीतिक सम्बन्ध बनाये है अमेरिका चाहता है की इस क्षेत्र में सभी देश UNCLOS द्वारा बनाये गए नियमो और कानूनों का पालन करे और अपने 200 NM से ज्यादा के क्षेत्र पर दावा न करे जैसा चीन कर रहा है। अमेरिका द्वारा इस क्षेत्र में अत्यधिक रणनीतिक आवाजाही अप्रत्यक्ष रूप से चीनी प्रभाव को सिमित करना है। क्योकि चीन इस क्षेत्र में दूसरे देशो के क्षेत्रीय दावों पर अपना रणनीतिक विकास कर रहा है। जिसके तहत उसने 2016 तक पानी में दुबे काफी सारे रीफ एरिया को आइलैंड में तब्दील कर दिया था, जिसका एक उदाहरण 2012 में स्कारबोरो शॉल में था जो फिलीपींस द्वारा किये जाने वाले दावे के क्षेत्र में आता था, इसीलिए फिलीपींस ने 2012 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर चीन के इस व्यवहार के प्रति केस किया और अंतः निर्णय फिलीपींस के पक्ष में आया। अमरीकी युद्धपोत और जंगी जहाज की इस क्षेत्र में मौजूदगी दक्षिणपूर्व एशिया के देशो को चीन से सुरक्षित वातावरण प्रदान करके यहां शक्ति संतुलन की स्तिथि को कायम करना है।

दक्षिण चीन सागर और भारत
दक्षिणपूर्व एशिया के देशो को दक्षिण चीन सागर में अपने दावों को सुरक्षित रखने के लिए अमरीकी सहायता चाहिए ताकि एक संतुलन की स्तिथि कायम रहे, परन्तु दूसरी तरफ यह देश चीनी अर्थव्यवस्था के बल पर विकास कर रहे है। ऐसे में दक्षिणपूर्व एशिया के देश तनाव की स्तिथि में है क्योकि चीन और अमेरिका के मध्य दक्षिण चीन सागर में शीत युद्ध जैसी स्तिथि कायम है। भारत का पक्ष यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बन जाता है क्योकि ASEAN के देश भी चाहते है, की भारत का इस मुद्दे पर क्या रवैया रहता है। सर्वप्रथम भारत के लिए दक्षिण चीन सागर आर्थिक और रणनीतिक दोनों परिप्रेक्ष्यों से काफी महत्वपूर्ण है, क्योकि भारत आर्थिक नज़रिये से यहाँ ASEAN के देशो के साथ व्यापर करता है जिससे उसके स्ट्रेट ऑफ़ मलक्का से दक्षिण चीन सागर के बीच सयोजकता कायम रह सके साथ ही इसका भारत प्रशांत महासागर से भी सम्बन्ध कायम हो सके।

दक्षिण चीन सागर की तरफ भारत का रवैया अमेरिका जैसा नहीं है इसलिए अभी तक तक भारत ने प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र के प्रति चीन को सीमित करने का कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन चीन ने जिस तरह से भारत की सीमाओं में हस्तक्षेप किया है और पाकिस्तान भी चीन के बल पर भारत पर दबाव बनता है, उसी प्रकार भारत भी वियतनाम को रणनीतिक सहायता देकर दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी कायम करने का प्रयास कर रहा है, ताकि एक शक्ति संतुलन की स्तिथि को कायम किया जा सके। इसके लिए भारत नेवियतनाम के साथ मधुर सम्बन्ध कायम कर रखे है जिसके लिए भारत इसे 2011 से ही भ्रह्मोस मिसाइल बेचने की तैयारी कर रहा है। वही दूसरी तरफ फ़िलीपीन्स ने भी अमेरिका की तरह भारत को भी दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर अपना मत रखने का सुझाव दिया है ताकि चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती हुई शक्ति को सीमित किया जा सके।

भारत द्वारा दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर कोई भी कदम उठाया जाना एक तीर से दो निशाने लगाने के  बराबर है, जिसमे भारत यदि दक्षिणपूर्व ऐसा के देशो के साथ मजबूत सम्बन्ध कायम कर लेता है तो एक इस क्षेत्र में भारत अपनी स्तिथि को मजबूत कर लेगा वही दूसरी तरफ भारतीय सीमा में चीन की दखलअंदाज़ी और उसके स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स की नीति को भी सीमित किया जा सकता है। साथ ही साथ दक्षिणपूर्व एशिया के देश भी इस क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व और उसकी आक्रामक नीतियों से छुटकारा पा सकेंगे।

(हिमांशु)


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Author

Riya bawa

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