सरकार को कोरोना के बारे में पारदर्शी नीति बनानी चाहिए : राहुल गांधी

punjabkesari.in Monday, May 18, 2020 - 04:08 PM (IST)

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने पत्रकारों से पिछले दिनों बात करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को पारदर्शिता अपनाते हुए लॉकडाउन को उठा लेना चाहिए और आर्थिक गतिविधियां शुरू करनी चाहिए। वास्तव में लॉकडाउन के बारे में पारदर्शी नीति होनी चाहिए, जिससे लॉकडाउन से संबंधित सभी विस्तृत विवरण दिया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना के खि़लाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई की वास्तविक तस्वीर कोई नहीं जानता। यह एक हास्यास्पद बात है कि सरकार ने लॉकडाउन लागू कर दिया और देश के तमाम नागरिकों को यह निर्देश दे दिया कि लॉकडाउन खत्म होने तक स्वयं को घरों में कैद कर लें और सभी आर्थिक गतिविधियां बंद कर दें। अब जबकि देशवासियों को लॉकडाउन का तीसरा चरण झेलना पड़ रहा है ऐसी स्थिति में सरकार कोरोना को काबू करने में बुरी तरह विफल हुई है। इसका सबूत यह है कि अब तक भारत में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी़ से बढ़कर 90,927 हो गई है और जबकि इससे मरने वालों की संख्या 2,872 हो गई है। कोरोना से होने वाली कैज़ुअल्टी का जो हमने अंदाजा लगाया था, वह गलत साबित हुआ। 

इस प्रकार कोरोना महामारी ने जब हमारे दरवाज़े पर दस्तक दिया तो उस समय हमारी सरकार कोरोना महामारी के ख़तरे को लेकर लापरवाह थी। इसका अंदाजा़ इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि उस समय केंद्र सरकार मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को गिराने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनवाने में दिलचस्पी ले रही थी और भारत में अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने पर उनके स्वागत की तैयारियों में जुटी हुई थी। यही कारण है कि कोरोना के भारत में आते ही इसको नियंत्रण करने की कोशिश नहीं की गई। यहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस बयान का ज़िक्र करना अप्रसांगिक नहीं होगा जिन्होंने 12 फरवरी को कोरोना से होने वाली पहली मौत पर भारत सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। उस समय तक कोरोना ने चीन में तबाही मचा रखी थी जिसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि चीन में हजारों लोग कोरोना महामारी से मर गए। मोदी सरकार कोरोना महामारी के ख़तरे को लेकर मार्च के आखि़री सप्ताह में जागी जब कोरोना ने हमारे देश को अपने शिकंजे में जकड़ लिया। उस वक्त तक हमारे देश में 9 लोगों की मृत्यु कोरोना से हो गई थी और कोरोना के मरीजों की संख्या 468 पहुंच गई थी। 

कोरोना के ख़तरे को भाँपने के बाद मोदी सरकार ने आनन-फा़नन में देशभर में लॉकडाउन लागू करने का फैसला इसके नतीजे पर विचार किए बिना ले लिया। जब लॉकडाउन लागू किया गया तब विभिन्न समस्याएं सामने आईं जिनमें प्रवासी भारतीयों की समस्याएं प्रमुख हैं। लॉकडाउन के 53 दिन बीत जाने के बाद भी प्रवासी मज़दूरों की समस्याएं जस का तस हैं। प्रवासी मज़दूरों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनमें रहने, खाने-पीने और अपने मूल स्थान को जाने के लिए यातायात साधन की अनुपलब्धता की समस्याएं शामिल है। लाखों प्रवासी मज़दूरों को पूरे देश में इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यद्यपि केंद्र और राज्य सरकारें इस बात का दावा कर रही है कि प्रवासी मजदूरों के भोजन और रहने-सहने का प्रबंध किया जा रहा है और साथ मेें उन्हें वित्तीय मदद भी दी जा रही है। लेकिन इनके इन दावों में आधी सच्चाई ही पाई जाती है क्योंकि देश के विभिन्न भागों में प्रवासी मज़दूर सड़कों पर आ गए हैं और स्वयं को अपने मूल निवास तक पहुँचाए जाने की यह शिकायत करते हुए मांग करने लगे कि उनके खाने-पीन औरे रहने-सहने का कोई प्रबंध नहीं है। 

यह स्थिति लॉकडाउन से पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने से संबंधित सरकार की आधी-अधूरी तैयारियों का नतीजा है। कोरोना महामारी के खि़लाफ लड़ाई लड़ने के बारे में केंद्र सरकार द्वारा बहुत विचार-विमर्श नहीं किया गया। ज्ञात हो कि उन देशों में लॉकडाउन लागू कर दिया गया जहाँ हजारों लोग कोरोना महामारी से मर गए। इस प्रकार हमारी केंद्र सरकार ने भी कोरोना महामारी से लड़ने के लिए लॉकडाउन का रास्ता अपनाया और इस तरह पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया। वें टीवी चैनल जो मोदी सरकार की चाटुकारिता करते थकते नहीं वें लॉकडाउन को लगाए जाने के सरकार के कदम की प्रशंसा कर रहे हैं और मोदी की छवि को कोरोना महामारी से बचाने वाला हीरो के रूप में पेश कर रही हैं। 

अब कोरोना हमारे देश में बहुत तेजी़ से फैल रहा है और वर्तमान में कोरोना मरीजों की संख्या 90,000 तक हो गई है और यह रुझान लगातार जारी हैं। जो टीवी चैनल प्रधानमंत्री मोदी को कोरोना महामारी को ख़त्म करने के सिलसिले में विश्व का नायक मान रहे थें और कोरोना से पीड़ित देशों को संजीवनी बांट रहे थे तो सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी उस संजीवनी का प्रयोग अपने देश में क्यों नहीं कर रहे हैं? जबकि उस संजीवनी की देश में कोरोना महामारी के तेजी से बढ़ने के कारण सख्त जरूरत है। अनुमान लगाया जा रहा है कि देश में कोरोना मरीजों की संख्या जुलाई के अंत तक करीब 1.5 लाख हो जाएगी। इसके बावजूद जो चैनल मोदी की चाटुकारिता कर रहे हैं, वह अभी भी उसी नीति को अपनाए हुए हैं। यह आश्चर्य की बात है कि यें चैनल भारत में कोरोना से लड़ाई के तरीके को बेशर्मी से विश्व का मॉडल बता रहे हैं और उन देशों का उल्लेख तक नहीं कर रहे हैं जो कोरोना से लड़ाई के संबंध में वास्तव में विश्व मॉडल हैं। इन देशों में दक्षिण कोरिया और ताईवान मुख्य रूप से शामिल हैं। 

वास्तव में यें चैनल मोदी की चाटुकारिता करने के कारण संकीर्ण मानसिकता रखते हैं। इसलिए जो देश कोरोना के खि़लाफ लड़ाई में विश्व मॉडल बने हुए हैं उन्हें देख पाने में यें चैनल असमर्थ हैं। दक्षिण कोरिया में कोरोना के मरीजों की संख्या 10,000 थी जबकि कोरोना से मरने वालों की संख्या केवल 259 थीं। इसी तरह ताईवान कोरोना के खि़लाफ लड़ाई में विश्व का सबसे बेहतर मॉडल माना जा रहा है क्योंकि यहां कोरोना महामारी समाज में अपने वायरस को फैलाने में सफल नहीं हो पाई। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ताईवान में कोरोना महामारी के मात्र 440 मरीज़ पाए गए जबकि इससे मरने वालों की संख्या कुल 7 थीं। यह नतीजा दक्षिण कोरिया और ताईवान में कोरोना के खि़लाफ लड़ाई में उक्त नतीजा बिना लॉकडाउन लगाए हासिल हुआ। ज्ञात रहे कि यह दोनों देश भारत की तरह चाईना से सटे हुए हैं। 

सच्चाई यह है कि कोरोना के खि़लाफ लडे़ जाने वाले हमारे तरीके की कोई देश प्रशंसा नहीं कर रहा है क्योंकि कोरोना महामारी से लड़ाई के संबंध में हम कोई प्रशंसनीय तरीके विश्व के सामने पेश नहीं कर सके हैं। लॉकडाउन के तीसरे दौर का ख़ात्मा आगामी 17 मई को हो रहा है और इसे और आगे बढ़ाया जाएगा जिसमें बहुत सारी रियायतें इसलिए दी जाएंगी ताकि लॉकडाउन के कारण पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाया जा सके। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है जिसका मकसद भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के तरीके की व्याख्या की है।

 यह अच्छी बात है और हम सभी भारतीयों को प्रधानमंत्री के सपने को सच करने के संबंध में प्रयास करना चाहिए। प्रधानमंत्री के आर्थिक पैकेज के बारे में यह कहा जा रहा है कि इसको बड़ा दिखाने के लिए उन्होंने सरकार द्वारा पहले से चलाई जा रही योजनाओं को भी अपनी 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में शामिल कर दिया है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज भारतवासियों के लिए कोई नया पैकेज नहीं है क्योंकि इस तरह के पैकेज का ऐलान कोरोना महामारी से पीड़ित जनता के लिए विश्व के कई देश पहले से ही कर चुके हैं। जिनका मकसद वास्तव में अपनी जनता की भलाई है ना कि दिखावा। हमारे देश के आर्थिक पैकेज से उन 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों का कोई भला होने वाला नहीं जो देश के विभिन्न हिस्सों से अपने मूल स्थान पहुँचने के लिए पैदल सफ़र करते हुए नजर आ रहे हैं।

(रोहित शर्मा )


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Riya bawa

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